Source: Validity Foundation
हर गर्भवती स्त्री को चाहिए कि वह प्रसूतिगृह में नियमित रूप से जाए , जहां उसकी समय - समय पर पूर्ण रूप से जांच हो। इससे बच्चे की स्थिति का ज्ञान होता है। और यदि स्थिति ठीक नहीं हो तो उसे ठीक किया जाए ताकि जन्म के समय बच्चे के मस्तिष्क पर चोट ना लगे । यदि किसी अन्य रोग के कारण इलाज चले तो यह स्त्री गर्भावस्था के प्रारंभ में किसी डॉक्टर को अपनी इस अवस्था का ज्ञान करा देना चाहिए, ताकि वह कोई ऐसी औषधि न दे दे जिससे बच्चे का मानसिक विकास रुक जाए।
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बुद्धि लब्धि ( Intelligence Quotient)
सन 1908 में बिने साइमन ने मानसिक आयु का सर्वप्रथम विचार किया। बिने का मानसिक आयु से तात्पर्य उस आयु से था जो बुद्धि या मानसिक परीक्षणों के औसत से प्राप्त होती है। बिने के अनुसार यदि एक सामान्य बुद्धि का बालक अपनी से अधिक आयु के बालकों के निर्धारित प्रश्नों को हल कर लेता है तो वह श्रेष्ठ बुद्धि बालक कहलाएगा । यदि बालक अपनी आयु से कम आयु के बालकों के प्रश्नों को हल नहीं कर लेता है तो वह बालक मंद बुद्धि कहलाएगा। टरमन ने बिने के मानसिक आयु के विचार को स्वीकार किया और बुद्धि लब्धि ज्ञात करने हेतु निम्न सूत्र का आरंभ में प्रयोग किया गया -
बुद्धि लब्धि = मानसिक आयु (MA)
वास्तविक आयु (CA)
इस सूत्र में सबसे बड़ा दोष यह था कि बुद्धि लब्धि प्राय: अपूर्ण संख्याओं अर्थात दशमलव में आती थी । स्टर्न ने इस दोष को दूर करने हेतु निम्नलिखित सूत्र के द्वारा बुद्धि लब्धि ज्ञात की -
बुद्धि लब्धि = मानसिक आयु
वास्तविक आयु ×100
इस सूत्र के अनुसार सर्वप्रथम बालक की मानसिक आयु ज्ञात कर लेते हैं। फिर बालक की वास्तविक आयु से भाग देते है और भागफल से 100 का गुणा कर देते हैं। इसमें हमें जो गुणनफल प्राप्त होता है वही वास्तविक बुद्धि लब्धि (I.Q.) होती है। उदाहरण के लिए यदि किसी बालक की वास्तविक जीवन आयु 10 वर्ष है और किसी बुद्धि परीक्षण के आधार पर उसकी मानसिक आयु 12 वर्ष निकलती है तो उनकी बुद्धिलब्धि निम्नलिखित होगी -
बुद्धिलब्धि(I.Q.) = 12/10×100= 120
अन्य विद्वानों ने भी इसी प्रकार के वर्गीकरण प्रस्तुत किए किंतु इस सभी वर्गीकरण से एक सामान्य बात स्पष्ट है कि जिसकी बुद्धिलब्धि अधिक होगी वह उतना ही अधिक योग्य होगा ।