सतत और व्यापक मूल्यांकन, इसके उद्देश्य और स्वरूप Continuous and Comprehensive Evaluation, its objectives and nature

Safalta Experts Published by: Blog Safalta Updated Tue, 14 Sep 2021 06:52 PM IST

सतत और व्यापक मूल्यांकन में 'सतत' शब्द का उद्देश्य इस बात पर बल देता है कि बच्चों को संवृद्धि और विकास के अभिज्ञान पहलुओं का मूल्यांकन एक घटना होने के बजाय एक सतत प्रक्रिया है, जो शिक्षा प्राप्ति की संपूर्ण प्रक्रिया के अंदर निर्मित है और शैक्षिक सत्रों की समूची अवधि में फैली होती है। इसमें सतत अध्यापन अधिगम प्रक्रिया(teaching learning process). के घटक के बजाय शैक्षिक सत्र की पूरी अवधि में होने वाली एक सतत मूल्यांकन प्रक्रिया है। जिसमे निम्नाकिंत मुख्य बिंदुओं को सम्मिलित किया गया है-

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1. मूल्यांकन की नियमितता
2. इकाई परीक्षण की आवृति
3. सीखने के अंतराल का निदान
4. सुधारात्मक उपायों का प्रयोग
5. पुनः परीक्षण
6. उनके आत्म मूल्यांकन के लिए शिक्षकों और छात्रों के लिए प्रमाण की प्रतिक्रिया।

दूसरे शब्दों में 'व्यापक' का अर्थ है कि - यह योजना विद्यार्थियों की संवृद्धि और विकास की शैक्षिक और सह -शैक्षिक दोनों क्षेत्रों में समाहित करने का प्रयास करती है। इसमें बालक के सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखकर «संज्ञानात्मक योग्यताएं, सृजनात्मकता, अभिवृतियां, अभिरुचियाँ, और कौशल» का पता लगाया जाता है। यह उपकरण और तकनीक (दोनो परीक्षण और गैर परीक्षण) के विभिन्न प्रकारों को संदर्भित करता है और सीखने के क्षेत्रों में एक विद्यार्थी के विकास आकलन निम्न प्रकार से करता है- 1.ज्ञान 2.  समझ 3. अनुप्रयोग 4. विश्लेषण 5. मूल्यांकन और  6.सृजन/निर्माण करना।
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सतत और व्यापक मूल्यांकन के उद्देश्य–


सतत और व्यापक मूल्यांकन के उद्देश्य निम्मलिखित है-
1.संज्ञान्त्मक,मनोप्रेणक(psychomoto), और प्रभावकारी कैशलों का विकास करने में सहायता देना
2. विषयवस्तु को कंठस्थ करने की अपेक्षा चिंतन की प्रक्रिया पर जोर देना
3. मूल्यांकन को शिक्षा-प्राप्ति की अध्यापन अधिगम प्रक्रिया का अभिन्न अंग बनाना
4. मूल्यांकन का उपयोग नियमित निदान और उसके बाद उपचारात्मक अनुदेश के आधार पर विधार्थियों की उपलब्धियों और अध्यापन शिक्षा प्राप्ति की कार्य नीतियों सुधार करना
5. कार्य निष्पादन का वांछित स्तर बनांये रखने  के लिए मूल्यांकन का उपयोग 6.गुणवता नियंत्रण में एक साधन के रूप में करना
7. किसी कार्यक्रम की समाजिक उपयोगिता, वांछनीयता अथवा प्रभावकारिता निर्धारित करना और शिक्षार्थी, शिक्षाप्राप्ति की प्रक्रिया और शिक्षा प्राप्ति के वातावरण के बारे में उपर्युक्त निर्णय लेना
8. अध्यापन और शिक्षा प्राप्ति की प्रक्रिया को शिक्षार्थी- केंद्रित गतिविधि बनाना।
 

सतत और व्यापक मूल्यांकन का स्वरूप–


शिक्षा बच्चो को समाज के जिम्मेदार, उत्पादक और उपयोगी सदस्य बनाने में सक्षम करना है। ज्ञान, कौशल और व्यवहार   सीखने के अनुभव और अवसरों में शिक्षार्थियों के लिए बनाया जाता है। सतत और व्यापक मूल्यांकन विद्यालय आधारित कार्यक्रमों के मूल्यांकन की एक प्रणाली है। विभिन्न आयोगों और समितियों के द्वारा परीक्षा सुधारों की आवश्यकता महसूस की गई। हंटर आयोग(1882),  कलकता विश्वविद्यालय आयोग अथवा सेडेलर आयोग(1917-1919), हारटोग समिति रिर्पोट(1929), केंद्रीय सलाहकार बोर्ड/सार्जेंट योजना(1944), माध्यमिक शिक्षा आयोग/मुदालियर आयोग(1952-53) आदि ने बाह्य परीक्षाओं पर दिए जाने वाले जोर को घटाने और सतत और व्यापक मूल्यांकन के जरिए आंतरिक मूल्यांकन को प्रोत्साहन देने के बारे में सिफारिशें दी है।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इस पहलू को पूरी तरह से ध्यान में रखा गया है। इसमें कहा गया है, सतत और व्यापक मूल्यांकन जिसमे मूल्यांकन के शैक्षिक और गैर शैक्षिक दोनों पहलू शामिल हो और जो शिक्षा के सम्पूर्ण अवधि के लिए हो ।
  • सी.सी. ई. का मुख्य उद्देश्य स्कूल में उनकी उपस्थिति के दौरान बच्चे के हर पहलू पर उनका मूल्यांकन करना है। यह परीक्षा से पहले व परीक्षा के दौरान बच्चे पर दबाव करने में मदद करता है। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा मंडल इसे सतत और व्यापक मूल्यांकन की योजना में अपने परीक्षा सुधार कार्यक्रम में एक भाग के रूप में लाया है।
  • सतत और व्यापक मूल्यांकन छात्रों के विकास हेतु एक समग्र मूल्यांकन प्रणाली के संप्रत्यय को दर्शाता है।
  • सतत और व्यापक मूल्यांकन प्रणाली का आशय– विधार्थियों को विद्यालयों आधारित मूल्यांकन की उस प्रणाली के बारे में है, जिसमे विद्यार्थियों को विकास के सभी पहलुओं की ओर ध्यान दिया जाता है। यह निर्धारण की विकासात्मक प्रक्रिया है जो व्यापक आधार वाली शिक्षा प्राप्ति और आचरणतम्क परिणामों के मूल्यांकन और निर्धारण संबंधी दोहरे लक्ष्यों पर बल देती है। इसमें सतत शब्द मूल्यांकन में अवधि और नियमितता को संदर्भित करता है, और व्यापक शब्द विद्यायल पाठ्यगामी और सह पाठ्यगामी गतिविधियों में शिक्षार्थियों के समग्र मूल्यांकन करने से है  

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