गेस्टाल्ट का सीखने का सिद्धांत, सिद्धांत और शिक्षा Gestalt's Theory of Learning, Theory and Education

Safalta Experts Published by: Blog Safalta Updated Mon, 20 Sep 2021 02:36 PM IST

 गेस्टाल्ट का अर्थ समग्र रूप से है।  पूर्णाकार के अनुसार व्यक्ति किसी वस्तु की आंशिक रूप से नहीं, अपितु पूर्ण रूप से सीखता है। अधिगम के गेस्टाल्टवाद सिद्धांत का जन्मदाता जर्मनी के मनोवैज्ञानिक मेक्स वर्दीमीर को माना जाता है "। वर्दीमीर के सिद्धांत का फोकस बिंदु यह है कि जब मानवीय आंख एक के बाद दो दृश्य उद्दीपनों को देखती हैं तो उसकी प्रतिक्रिया ऐसी होती हैं कि उन उद्दीपनों का पैटर्न युगपत बनता है "। वर्दीमीर के गेस्टाल्टवाद सिद्धांत को आगे बढ़ाने में काॅफ्का तथा कोहलर ने योग दिया हैं। साथ ही अगर आप भी इस पात्रता परीक्षा में शामिल होने जा रहे हैं और इसमें सफल होकर शिक्षक बनने के अपने सपने को साकार करना चाहते हैं, तो आपको तुरंत इसकी बेहतर तैयारी के लिए सफलता द्वारा चलाए जा रहे CTET टीचिंग चैंपियन बैच- Join Now से जुड़ जाना चाहिए।

Source: NA



गेस्टाल्टवाद के नियम 
पूर्णाकारवाद के नियम इस प्रकार है : 

1) संरचनात्मक : पूर्णाकारवाद में अधिगम की संपूर्ण प्रक्रिया उस समय पूर्ण मानी जाती है जब प्रक्रिया का निश्चित रूप प्रकट होता है। 

2) समरूपता : जो वस्तुएं आकार से समान होती हैं, उनका पूर्णाकार रूप उसी प्रकार अंतर्दृष्टि में होता है ।

3) समीपता : इस नियम के अनुसार जो वस्तुएं आकार में समान होती है , वे एक दूसरे के समरूप प्रकट होती हैं।

4) समापन : मानव मस्तिष्क में स्थित क्षेत्र को बंद करने की प्रक्रिया इस नियम में पाई जाती है। किसी एक समस्या पर ध्यान केंद्रित करना इसी नियम के अंतर्गत आता है।

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 गेस्टाल्ट का सिद्धांत तथा शिक्षा

गेस्टाल्टवाद अनुभवों की संपूर्णता पर बल देता है।  इस सिद्धांत में व्यक्त , समस्या तथा उसके समाधान के सभी उत्पादन प्रस्तुत कर दिए जाते हैं । इसमें व्यक्ति अंतर्दृष्टि की सहायता से समस्या का समाधान करता हैं । पूर्णाकारवाद का उपयोग शिक्षा में निम्न प्रकार कर सकते है - 

1) वातावरण : अध्यापक को चाहिए कि वह बालक के समक्ष इस प्रकार का वातावरण प्रस्तुत करे कि बच्चे स्वयं अधिगम के लिए प्रेरित हों। अधिगम की क्रिया का विकास स्वयं होना चाहिए। 

2) पूर्ण समस्या : अध्यापक को चाहिए कि वह छात्रों को समस्या का पूर्ण ज्ञान कराए। यदि समस्या के प्रति ज्ञान अपूर्ण है , तो अंतर्दृष्टि नहीं होगी। किसी भी समस्या में उस समय तक सूझ उत्पन्न नहीं होता है जब तक उसका पूर्ण रूप से ज्ञान न हो जाए। अत: यह आवश्यक है कि सार्थक पाठ पढ़ाए जाए  ।
 
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3) उत्पादन क्रियाएं : अध्यापक को चाहिए कि वह ऐसी क्रियाएं करवाए जिनका संबंध उत्पादन से हो। 

4) विषय संगठन : शिक्षक को पाठ का संगठन इस प्रकार करना चाहिए कि वह संपूर्णता प्राप्त कर ले ।

5) सामान्यीकरण : अध्यापक को चाहिए कि वह पढ़ाई हुई सामग्री का सामान्यीकरण कर ले ।

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