सीखने का अर्थ और संकल्पना Meaning and Concept of Learning

Safalta Experts Published by: Blog Safalta Updated Sat, 18 Sep 2021 04:15 PM IST

 शिक्षा मनोविज्ञान में अधिगम या सीखने का अध्ययन अत्यधिक महत्पूर्ण माना जाता है। सम्पूर्ण शिक्षा प्रणाली का केंद्र बिंदु ही सीखना है। शिक्षा मनोविज्ञान का मुख्य उद्देश्य भी सीखने को प्रभावशाली और अर्थपूर्ण बनाता है  । अधिगम सीखने की प्रक्रिया तथा सीखने के परिणामस्वरूप हुए व्यवहार परिवर्तन दोनों के अर्थ में प्रयुक्त होता है। अधिगम एक ऐसी मानसिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति परिपक्वता की ओर बढ़ते हुए तथा अपने अनुभवों से लाभ उठाते हुए अपने जीवन तथा अपने व्यवहार में वांछित परिवर्तन एवं परमार्जन करता है। व्यवहार में यह परिवर्तन स्थायी व अस्थायी दोनों प्रकार से हो सकता है।  चूकीं व्यक्ति का विकास अधिगम पर आधारित है, इसलिए वह जन्म से ही सीखना प्रारंभ कर देता है। प्रत्येक व्यक्ति प्रतिदिन जीवन में नए अनुभव करता रहता है। इसलिए प्राप्त अनुभव तथा इनका प्रयोग ही अधिगम कहलाता है । साथ ही अगर आप भी इस पात्रता परीक्षा में शामिल होने जा रहे हैं और इसमें सफल होकर शिक्षक बनने के अपने सपने को साकार करना चाहते हैं, तो आपको तुरंत इसकी बेहतर तैयारी के लिए सफलता द्वारा चलाए जा रहे CTET टीचिंग चैंपियन बैच- Join Now से जुड़ जाना चाहिए।

Source: FirstCry Parenting



अधिगम एक व्यापक शब्द है और यह जन्मजात प्रतिक्रियाओं पर आधारित है । व्यक्ति अपनी जन्मजात प्रवृत्तियों से प्रेरित होकर क्रिया करता है। अधिगम या व्यवहार में परिवर्तन अनुभव तथा प्रशिक्षण दोनों के द्वारा होता है। जीवन में घटने वाली प्रत्येक घटना हमें कुछ न कुछ अनुभव दे जाती है। फिर उन्हीं परिस्थितियों में हम पूर्व अनुभव के आधार पर अपने आपको तैयार पाते है। यह अनुभव द्वारा अधिगम है। जैसे - बालक जलती हुई मोमबत्ती की लौ को हाथ लगाता है । जिससे जलने पर उसे पीड़ा का अनुभव होता है। भविष्य में वह कभी ऐसा नहीं करता । यही अनुभव के द्वारा सीखा गया है। कई बार हम किसी क्रिया विशेष को जानने के लिए उसके ज्ञाता व्यक्ति के निर्देशन में अभ्यास करते हैं। यह प्रशिक्षण है। प्रशिक्षण के द्वारा भी अधिगम होता है। जैसे कार चलाना , साइकिल चलाना , टाइप सीखना , व्यायाम करना सीखना आदि।

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मनुष्य एक अधिगम प्राणी है और अधिगम प्रक्रिया उसमें जन्म से नहीं बल्कि मां के गर्भ से ही प्रारंभ हो जाती है और यह जीवन पर्यन्त चलती रहती है। मानव के सीखने का कोई निश्चित स्थान तथा समय नहीं होता है। वह हर समय और हर जगह कुछ न कुछ सीख सकता है। वह  न केवल शिक्षा संस्था में बल्कि परिवार , आस - पड़ोस , समाज , अपरिचित व्यक्तियों , स्थानों सभी से थोड़ा या अधिक सीखता हुआ और इसके फलस्वरूप अपने व्यवहार में परिवर्तन करता हुआ जीवन में आगे बढ़ता जाता है। मनोविज्ञान के अंतर्गत इस प्रकार के स्वाभाविक व्यवहार में होने वाले प्रगतिशील परिवर्तन या परिमार्जन को ही अधिगम ( सीखना ) कहते हैं ।
 
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