What is Psychology? Meaning, Definition, Area, and Importance

Safalta Experts Published by: Blog Safalta Updated Fri, 03 Sep 2021 03:30 PM IST

मनोविज्ञान का अर्थ व महत्व
(Meaning, Area, and Importance of Psychology)

 
मनोविज्ञान वह शास्त्र है जिसमें चित्त या मन की वृत्तियों का अध्ययन होता है। अर्थात् वह विज्ञान जिसके द्वारा यह जाना जाता है कि मनुष्य के चित्त में कौन सी वृत्ति कब है, क्यों और किस प्रकार उत्पन्न होती है। अतः चित्त की वृत्तियों की मीमांसा करने वाले शास्त्र मनोविज्ञान कहलाता है। मनोविज्ञान को अंग्रेजी में साइकोलॉजी (Psychology) कहा जाता है। इस शब्द की उत्पत्ति यूनानी/ ग्रीक भाषा के दो शब्दों साइकी (psyche) अर्थात आत्मा तथा (logos) अर्थात विज्ञान से मिल कर बना है, जिसे आधुनिक परिवेश में मनोविज्ञान के नाम से जाना जाता है। आत्मा एवं मन का विज्ञान, मनोविज्ञान एक बेहद रोचक, व्यावहारिक और गूढ़ विषय है, जिसके द्वारा हर उम्र के व्यक्ति के मन की बात सहजता से जानी जा सकती है। प्रारंभ में 16वीं शताब्दी तक मनोविज्ञान का अर्थ आत्मा का विज्ञान के रूप में लिया गया। लेकिन आत्मा के विज्ञान और वर्तमान परिपेक्ष्य में व्यवहार के विज्ञान के रूप में मनोविज्ञान को स्वीकार किया गया है। मनोविज्ञान एक ऐसा विज्ञान है जिसमे प्राणी के व्यवहार तथा मानसिक प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। मनोविज्ञान अनुभव का विज्ञान है, इसका उद्देश्य चेतनावस्था की प्रक्रिया के तत्वों का विश्लेषण करने वाले नियमों का पता लगाना है।  वाटसन का कथन है कि " मनोविज्ञान व्यवहार का शुद्ध विज्ञान है।" इसके साथ ही CTET परीक्षा की तैयारी के लिए आप सफलता के  CTET Champion Batch को सब्सक्राइब कर सकते हैं, जहाँ 60 दिनों के तैयारी और एक्सपर्ट्स गाइडेंस से आप सेना में अफसर बन सकते हैं।  

Source: owalcation


 
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डेकार्ट (1596- 1650) ने मनुष्य तथा पशुओं में भेद करते हुए बताया कि मनुष्यों में आत्म होती है जबकि पशु केवल मशीन की भांति काम करते है। डेकार्ट के मतानुसार मनुष्य के कुछ विचार ऐसे होते है जिन्हें जन्मजात कहा जा सकता है। उनका अनुभव से कोई संबंध नहीं होता है। ह्यूम (1711-1776) ने मुख्य रूप से विचार तथा अनुमान में भेद करते हुए कहा कि विचारों की तुलना में अनुमान अधिक उत्तेजनापूर्ण तथा प्रभावशाली  होते हैं। विचारों को अनुमान की प्रतिलिपि माना जा सकता है। ह्यूम ने कार्य कारण सिद्धांत के विषय में अपने विचार स्पष्ट करते हुए आधुनिक मनोवैज्ञानिक को वैज्ञानिक पद्धति के निकट पहुंचाने में उल्लेखनीय सहायता प्रदान की। हार्टले (1705- 1757) का नाम दैहिक मनोवैज्ञानिक दार्शनिकों में रखा जा सकता है। उनके अनुसार स्नायु तंतुओं में हुए कंपन के आधार पर संवेदना होती है। मस्तिष्क और पदार्थ के परस्पर संबध के विषय में लाके का कथन था कि पदार्थ द्वारा मस्तिष्क का बोध होता है। ला मेट्री (1709- 1751) ने कहा कि विचार की उत्पत्ति मस्तिष्क तथा स्नायुमंडल के परस्पर प्रभाव के फलस्वरूप होती है। उनका कहना था कि शरीर तथा मस्तिष्क की भांति आत्म भी नाशवान है। आधुनिक मनोविज्ञान में प्रेरकों की बुनियादी डालते हुए ला मेट्री ने बताया कि सुख प्राप्ति ही जीवन का चरम लक्ष्य है। हरबार्ट (1776- 1841) ने मनोविज्ञान में प्रेरकों की बुनियाद डालते हुए ला मेट्री ने बताया कि सुख प्राप्ति ही जीवन का चरम लक्ष्य है। हरबार्ट (1776-1841) ने मनोविज्ञान को एक स्वरूप प्रदान करने में महत्वपूर्ण योगदान किया। उनके मतानुसार मनोविज्ञान अनुभवबाद पर आधारित एक तात्विक, मात्रात्मक तथा विश्लेषणात्मक विज्ञान है। उन्होंने मनोविज्ञान को तात्विक के स्थान पर भौतिक आधार प्रदान किया। जेम्स मिल (1773-1836) तथा बाद में उनके पुत्र जान स्टुअर्ट मिल (1806- 1873) ने मानसिक रसायनी का विकास किया। इन दोनों विद्वानों ने साहचर्यवाद की प्रवृत्ति को औपचारिक रूप प्रदान किया और वूंट के लिए एक उपयुक्त पृष्ठभूमि तैयार को। विल्हेम ने  1979 में मनोवैज्ञानिक को पहली प्रयोगशाला स्थापित की, उसके बाद मनोवैज्ञानिक एक स्वतंत्र विज्ञान का दर्जा पा सकने में समर्थ हो सका। वैज्ञानिक मनोविज्ञान 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से आरंभ हुआ माना जाता है।

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