Art and Culture of Uttar Pradesh: जानिए उत्तर प्रदेश के कला और संस्कृति के बारे में

Safalta Experts Published by: Nikesh Kumar Updated Thu, 14 Apr 2022 10:57 AM IST

उत्तर प्रदेश दुनिया की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है. यहाँ की संस्कृति की अगर हम बात करें तो यह लोक कला और नृत्य के विभिन्न रूपों की विस्तृत श्रृंखला का एक मिश्रण है. महाभारत के सबसे प्रमुख पात्र तथा हिन्दू मायथालौजी के सबसे प्यारे चरित्र भगवान् श्रीकृष्ण की रासलीला इस राज्य की सबसे लोकप्रिय नृत्य की कलाओं में से एक है. उत्तर प्रदेश की लोक परंपरा में शामिल विभिन्न प्रकार के शास्त्रीय संगीत, नृत्य और नाटक दुनिया भर में अपने विशिष्टता और अनूठेपन से अपनी एक अलग हीं पहचान रखते हैं. उत्तर प्रदेश की कला और संस्कृति यहाँ के शास्त्रीय गायन/वादन, शास्त्रीय नृत्य, लोक नृत्य, लोकगीत, पारंपरिक व्यंजनों, लोक भाषा, मेले और त्योहारों के रंग में रंगी हुयी है. इसके अलावा यह राज्य अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और पारंपरिक आदर्शों के लिए जाना जाता है. अगर आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और विशेषज्ञ मार्गदर्शन की तलाश कर रहे हैं, तो आप हमारे जनरल अवेयरनेस ई बुक डाउनलोड कर सकते हैं  FREE GK EBook- Download Now.

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लोक भाषा
  • उत्तर प्रदेश में भोजपुरी, अवधी, ब्रजभाषा, खड़ी बोली, कन्नौजी, बुन्देली और बाघेली इत्यादि लोक भाषाएँ बोली जाती हैं.
  • भोजपुरी उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली क्षेत्रीय भाषा है और बाघेली भाषा सबसे कम बोली जाती है.
  • मेरठ, गाजियाबाद, गौतम बुद्ध नगर, इत्यादि क्षेत्रों में खड़ी बोली, लखनऊ, फैज़ाबाद, अमेठी आदि में अवधी, मथुरा, बरेली आदि में ब्रजभाषा, कन्नौज, कानपुर में कन्नौजी और झाँसी, चित्रकूट इत्यादि क्षेत्रों में बुन्देली भाषा बोली जाती है.     

लोकगीत
कजरी, रसिया, बिरह, चैत्य, भर्तृहरि, स्वांग, रागिनी, ढोल, लावणी इत्यादि उत्तर प्रदेश के प्रमुख लोकगीत हैं.

लोक नाट्य
  • उत्तर प्रदेश का सबसे प्रसिद्द लोक नाट्य है, "नौटंकी"
  • नवरात्री के समय उत्तर प्रदेश में रामलीला नौटंकी का आयोजन किया जाता है.
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लखनऊ की चिकनकारी -

बात उत्तर प्रदेश की हो और चिकनकारी का नाम न आए यह हो हीं नहीं सकता. चिकनकारी एक प्रकार की कढ़ाई को कहते हैं जिसके लिए उत्तर प्रदेश (लखनऊ) दुनिया भर में मशहूर है. चिकनकारी की नाजुक कला की उत्पत्ति नवाबों के शहर लखनऊ में हुई थी. इसका नाम फारसी शब्द 'चिकन' से लिया गया है जिसका अर्थ है सुई के काम से गढ़ा हुआ कपड़ा. चिकनकारी पहले दरबारी शिल्प के रूप में उभरा लेकिन कला प्रेमियों के गहन प्रयासों से इस शिल्प को प्रचारित किया गया और देखते हीं देखते यह राज्य का एक महत्वपूर्ण व्यावसायिक गतिविधि बन गया. चिकनकारी के विभिन्न पैटर्न मुरी, लेरची, कीलकांगन और बखिया आदि हैं. इस शिल्प का आकर्षण शिल्प की सूक्ष्मता, समरूपता और उत्कृष्टता के साथ-साथ सफेद कपड़े पर सफेद कढ़ाई के उपयोग में सिमटा हुआ है. देखा जाए तो चिकनकारी के रूपांकनों में इमारतों के मुगल वास्तुशिल्प डिजाइन से लेकर फूल और बेलों की थीम, पक्षियों और जानवरों तक की कढाई की डिजाइन शामिल हैं. चिकन कारी का काम आमतौर पर साड़ी और कुर्ता पायजामा पर किया जाता है. इस कढ़ाई के कपड़े गर्मियों के लिए बहुत हीं उपयुक्त होते हैं.

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बनारस का बनारसी ब्रोकेड या किमख़ाब -

साड़ी के बोर्डर और पल्ले पर सोने और चांदी के तारों और धागे के उपयोग के साथ रेशम या सूती कपड़े पर बने समृद्ध बनारसी ब्रोकेड का कोई मुकाबला नहीं है. रेशम  की पृष्ठभूमि के साथ सोने का धागा भव्यता को परिभाषित करता है. बूटीदार और जालीदार शैली में ज्यामितीय पैटर्न की कढ़ाई का काम इसकी सुंदरता में चार चाँद लगा देते हैं. बनारसी साड़ियों के बरैर भारतीय दुल्हनों की कल्पना भी नहीं की जा सकती. विशेष रूप से गहरे लाल सुनहरे रंग की ज़री वाली बनारसी साड़ी शादी की पोशाक का मानो एक रस्म सा हो गया है. यह उत्तर प्रदेश और बिहार में दुल्हन के चढ़ावे का एक आवश्यक अंग होता है. इन ब्रोकेड के डिजाइन रूपांकनों में जटिल फूल, पत्ते के पैटर्न, कलगा और बेल, सीधी पत्तियों की डोरी जिसे झालर कहते हैं आदि शामिल है. साड़ी के पल्लों और दुपट्टों पर इसकी डिजाइन बहुत हीं भारी काम करके बनाई जाती है. मुस्लिम शादियों में किमख़ाब का अपना अलग हीं ज़लवा होता है.

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