History of Kohinoor Diamond,जाने कोहिनूर हीरे के इतिहास के बारे में विस्तार से

safalta expert Published by: Chanchal Singh Updated Fri, 09 Sep 2022 07:03 PM IST

Highlights

राजा रंजीत सिंह ने अपनी वसीयत में यह लिखवाई थी कि कोहिनूर हीरे को उनकी मृत्यु के बाद जगन्नाथ पुरी उड़ीसा के मंदिर में देने की बात कही थी।

History of Kohinoor Diamond : हीरा एक ऐसा रत्न है जिसे सालों से नग,रत्न और गहने की तरह पहना जा रहा है। प्राचीन समय में राजा महाराजाओं और राज परिवार के लोगों को हीरा बहुत प्रिय होता था। सभी प्रकार के हीरो में कोहिनूर हीरे को सबसे प्रसिद्ध, पुराना और महंगा बताया गया है। यह चमकता हुआ बेशकीमती हीरा कोहिनूर हीरा का अर्थ प्रकाश की श्रृंखला है। इसे आंध्र प्रदेश की गुंटूर जिले की कोल्लूर खदान से निकाला गया था, जिसके बाद कोहिनूर कई देशों द्वारा होने का दावा किया जाता है। हाल ही में कोहिनूर किसकी असली वसीयत है इस बात पर बहस जारी है। अगर आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और विशेषज्ञ मार्गदर्शन की तलाश कर रहे हैं, तो आप हमारे जनरल अवेयरनेस ई बुक डाउनलोड कर सकते हैं   FREE GK EBook- Download Now. / GK Capsule Free pdf - Download here

Source: Safalta


 

कोहिनूर हीरे का इतिहास क्या है 


कोहिनूर हीरे का इतिहास बहुत पुराना है, माना जाता है कि लगभग 5000 साल इसका इतिहास और उत्पत्ति हुयी थी। कोहिनूर कई देश का सफर करते हुए वर्तमान में लंदन के टावर में सुरक्षित रखा गया है। 

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संस्कृत भाषा में सबसे पहले हीरे का उल्लेख किया गया है, इसे श्यामंत्क नाम से शास्त्रों में जाना गया है। लेकिन श्यामंता को कोहिनूर से अलग माना जाता है। 
सबसे पहले 13वीं शताब्दी में 1304 में यह मालवा के राजा की निगरानी में सबसे प्राचीनतम हीरा में से एक था। फिर 1339 में इस हीरे को समरकंद के नगर में लगभग 300 साल तक रखा गया।
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इस समय कुछ सालों तक हिंदी साहित्य में हीरे के बारे में रोचक और अंधविश्वास से भरा कथन प्रचलित था। जिसमें यह लिखा था कि जो कोई भी पुरुष इस हीरे को पहनेगा उसे दोष लगेगा और वह कई सारे परेशानियों से घिर जाएगा। श्राप के मुताबिक इस हीरे को पहनने वालों में औरतें हो या फिर भगवान ही इस हीरे को धारण कर सकते हैं, जो इस श्राप से दूर रहेंगे। 
कोहिनूर कई मुगल शासकों के भी अधीन रहा। बाबरनामा में हीरे का उल्लेख किया गया है। कोहिनूर को बाबर का हीरा भी बाबरनामा में बताया गया है।
1739 में परसिया के राजा जब भारत आए थे तब वे सुल्तान मोहम्मद (मुगल शासन) के राज्य पर शासन करना चाहते थे और उन्होंने सुल्तान मोहम्मद को युद्ध में हरा दिया और उनकी सभी संपत्ति और राज्य को अपने शासन में ले लिया।
जिसके बाद नादिरशाह ने बेशकीमती हीरे को कोहिनूर नाम दिया था।

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इस हीरे को उन्होंने कई सालों तक पर्शिया में रखा था। कोहिनूर की हिफाजत के लिए नादिरशाह लंबे समय तक जीवित नहीं रहे क्योंकि 1747 में राजनीतिक लड़ाई के चलते नादिर शाह की हत्या कर दी गई और कोहिनूर हीरे को जनरल अहमद शाह दुर्रानी ने अपने कब्जे में कर लिया था। 
जिसके बाद अहमद शाह दुर्रानी के वंशज शाह दुर्रानी कोहिनूर हीरे को वापस 1813 में भारत लेकर आए और इस हीरे को शाह ने अपने कड़े में जड़वा लिया था। 
बाद में दुर्रानी ने कोहिनूर को सिख समुदाय के संस्थापक राजा रंजीत सिंह को भेंट दिया था।
इस बेशकीमती हीरे के बदले में राजा रंजीत सिंह ने दुर्रानी को अफगानिस्तान से लड़ने और राजगद्दी को वापस दिलाने में सहायता की थी।
 राजा रंजीत सिंह के घोड़े का नाम भी कोहिनूर था। 
राजा रंजीत सिंह ने अपनी वसीयत में यह लिखवाई थी कि कोहिनूर हीरे को उनकी मृत्यु के बाद जगन्नाथ पुरी उड़ीसा के मंदिर में देने की बात कही थी। लेकिन ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस वसीयत को नहीं मानी और 29 मार्च 1849 को द्वितीय एंग्लो ने राजा रंजीत सिंह को युद्ध में हरा दिया और रंजीत सिंह की संपत्ति पर कब्जा कर लिया। 
जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने रंजीतसिंह के वसिहत को नहीं मानते हुए ब्रिटिश महारानी विक्टोरिया को सौंपने की बात कही थी।

वर्तमान में कोहिनूर हीरा कहां है 


राजाओं के हाथ से सफर करते हुए कोहिनूर हीरा वर्तमान में लंदन के टावर में सुरक्षित रखा गया है।

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कोहिनूर हीरा की कीमत क्या है 

मुगल शासक बाबर ने हीरे का मूल्य बताते हुए कहा था कि सबसे बेशकीमती मंहगा रत्न है जिसकी दुनिया की 1 दिन की आधे मूल्य के लगभग बताया गया था।

ब्रिटिश इंडिया कंपनी द्वारा कोहिनूर को रखने के बारे में 


कोहिनूर हीरा भारत में राजा रंजीत सिंह की हिफाजत में था लेकिन 1849 ब्रिटिश द्वारा कोहिनूर जीतने के बाद राजा रंजीत सिंह की संपत्ति ब्रिटिश सरकार ने ली थी। इसके बाद भी कोहिनूर को जहाजी यात्रा से ब्रिटेन ले जाया गया। ब्रिटिश शासक द्वारा कोहिनूर हीरे को मुआवजे के तौर पर रखने के बाद इसे ब्रिटेन ले जाया गया जिसके बाद जुलाई 1850 में इस जगमगाते हुए बेशकीमती हीरे को इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया को सौंप दिया गया था।

 

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