Sardar Vallabhbhai Patel Biography, जाने सरदार वल्लभभाई पटेल के जीवन परिचय और उनके द्वारा दिए गए योगदान के बारे में

Updated Sun, 30 Oct 2022 08:22 PM IST

Highlights

गुजरात के रहने वाले वल्लभभाई पटेल ने अपने स्थानीय क्षेत्र में शराब, छुआछूत और औरतों के ऊपर अत्याचार के खिलाफ लड़ाई लड़ी।

Sardar Vallabhbhai Patel Biography : भारत के लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल को कौन नहीं जानता। सरदार वल्लभभाई पटेल ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया था।  वल्लभ भाई पटेल को पूरे देश में लौह पुरुष के नाम से जाना जाता है। यह एक शूरवीर ख्याती के व्यक्ति थे। इन्होंने 200 सालों की गुलामी में फंसे भारत को अलग-अलग राज्यों को एक कर भारत में मिलाया और इस बड़े कार्य को करने के लिए इन्हें किसी प्रकार की सैन्य बल की भी आवश्यकता नहीं पड़ी थी। यही इनकी बड़ी खासियत है जो इन्हें औरों से अलग करती है। वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 में नाडियाड मुंबई में हुआ था। इनके पिता का नाम झावर भाई एवं माता का नाम लाड़बाई था।  अगर आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और विशेषज्ञ मार्गदर्शन की तलाश कर रहे हैं, तो आप हमारे जनरल अवेयरनेस ई बुक डाउनलोड कर सकते हैं   FREE GK EBook- Download Now. / GK Capsule Free pdf - Download here

Source: Safalta


 

 प्रारंभिक जीवन और परिवार और शिक्षा 


सरदार वल्लभभाई पटेल एक किसान परिवार से थे । ये एक साधारण मानव की तरह उनके जीवन के लिए इन्होंने कुछ लक्ष्य तय किया था। यह पढ़ाई लिखाई कर कुछ बनना चाहते थे और कमाईके कुछ हिस्से को जमा कर इंग्लैंड जाकर अपनी आगे की पढ़ाई पूरी करना चाहते थे। इन सब में उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ा । पैसे की कमी, घर की जिम्मेदारी को निभाते हुए उन सभी के बीच में धीरे-धीरे अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़े। शुरुआती दिनों में घर के लोगों ने इन्हें नकारा निकम्मा समझा और उन्हें लगता था की पटेव अपने जीवन में कुछ नहीं कर सकते। उन्होंने 22 साल की उम्र में मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की और कई सालों तक अपने घरवालों से दूर रहकर वकालत की पढ़ाई की। जिसके लिए उन्हें किताबें उधार लेनी पड़ती थी। इस दौरान उन्होंने नौकरी कर अपने परिवार का पालन पोषण किया। एक साधारण व्यक्ति की तरह जिंदगी से लड़ते-लड़ते आगे बढ़ते रहें। 

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 स्वतंत्रता संग्राम में वल्लभभाई पटेल का योगदान 


स्थानीय कार्य- गुजरात के रहने वाले वल्लभभाई पटेल ने अपने स्थानीय क्षेत्र में शराब, छुआछूत और औरतों के ऊपर अत्याचार के खिलाफ लड़ाई लड़ी। इन्होंने हिंदू मुस्लिम एकता को बनाए रखने के लिए पुरजोर कोशिश किया।

 खेड़ा आंदोलन- इस आंदोलन में गांधीजी ने वल्लभभाई पटेल से खेड़ा के किसानों को इकट्ठा कर उन्हें अंग्रेजो के खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया। उन दिनों केवल खेती ही भारत का सबसे बड़ा आय का जरिया थी। लेकिन कृषि पहले से ही प्रकृति पर आश्रय थी। साल 1917 में जब ज्यादा वर्षा के कारण किसानों की फसल खराब हो गई थी लेकिन अंग्रेजों के हुकूमत के चलते उन्हें कर देना था इस विपदा को देख वल्लभभाई पटेल ने गांधी जी के साथ मिलकर किसानों को कर ना देने के लिए समझाया। जिसके बाद किसानों को कर नहीं देना पड़ा और अंग्रेजी हुकूमत की हार हुई। पहली बड़ी जीत जिसे आज भी लोग खेड़ा आंदोलन के नाम से जानते हैं।

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 कैसे इन्हें सरदार पटेल नाम दिया गया


 बारडोली सत्याग्रह - सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बारडोली में सत्याग्रह का नेतृत्व किया। यह सत्याग्रह 1928 में साइमन कमीशन के खिलाफ दिया गया था। जिसमें सरकार द्वारा बढ़ाए गए कर का विरोध किया जाना था। जिसमें किसान को एक में ब्रिटिश वायसराय को झुकना पड़ा था। इस बारडोली सत्याग्रह के चलते पूरे देश में वल्लभभाई का नाम प्रसिद्ध हुआ और लोगों में उनके प्रति एवं स्वतंत्रता के प्रति एक उत्साह की लहर दौड़ पड़ी थी। इस आंदोलन की सफलता के बाद बारडोली के लोग सरदार वल्लभ भाई पटेल को सरदार पटेल के नाम से पुकारने लगे।

 सरदार वल्लभभाई पटेल का आजादी के पहले और बाद में मुख्य भूमिका क्या था 


इनके कार्यों और योगदान के चलते देश में इनकी लोकप्रियता बढ़ती रही उन्होंने लगातार नगर के चुनाव जीते और 1922 1920 और 1927 में अहमदाबाद के नगर निगम के अध्यक्ष के रूप में चुने गए थे। 1920 के आसपास के दशक में पटेल ने गुजरात कांग्रेस को ज्वाइन किया। इसके बाद 1945 तक गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में काम किया। 1932 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। इन्हें कांग्रेश में अन्य सदस्यों द्वारा बहुत पसंद किया जाता था। उस दौरान गांधीजी, नेहरू जी एवं सरदार पटेल नेशनल कांग्रेस के मुख्य सदस्य थे। आजादी के बाद यह देश के गृहमंत्री एवं उप प्रधानमंत्री के रूप में चुने गए। सरदार पटेल प्रधानमंत्री के पहले दावेदार थे उन्हें कांग्रेस पार्टी से सर्वाधिक वोट मिलने वाला था। लेकिन गांधीजी के कारण उन्होंने स्वयं को इस दौड़ से दूर रखा था। 

 आजादी के बाद सरदार पटेल द्वारा किए गए मुख्य कार्य 


15 अगस्त 1947 के दिन के आजाद होने के बाद देश की हालत काफी गंभीर थी। पाकिस्तान के अलग होने के चलते कई लोग बेघर हो गए थे और आजादी के बाद उस समय ऐसी स्थिति थी कि हर ए।क राज्य स्वतंत्र देश था जिन्हें भारत में मिलाना बहुत जरूरी था। यह एक बहुत कठिन कार्य था जिसे एक करना देश में किसी भी व्यक्ति के लिए बहुत मुश्किल था, क्योंकि अंग्रेजों की गुलामी के बाद कोई भी राजा किसी तरह की अधीनता के लिए तैयार नहीं था। लेकिन वल्लभभाई पटेल के उपर सभी को यकीन था। कि उन्होंने ही रियासतों को राष्ट्रीय एकीकरण के लिए बाध्य किया और बिना किसी युद्ध के इन्हें एक देश में मिलाया। जम्मू कश्मीर हैदराबाद और जूनागढ़ के राजा इस समझौते के लिए तैयार नहीं थे इनके खिलाफ सरकार में सैनिक बल का प्रयोग किया और अंत में यह रियासत भारत में शामिल हुयी। इस प्रकार वल्लभभाई की कोशिशों के कारण 560 रियासतों को भारत में मिलाने का कार्य नवंबर 1947 आजादी के कुछ महीने बाद ही पूरा किया गया। गांधीजी ने कहा कि यह कार्य केवल सरदार पटेल द्वारा ही किया जा सकता है।


 
 सरदार वल्लभ भाई पटेल का पोलिटिकल कैरियर


 1917 में बोरसाद में एक स्पीच के जरिए उन्होंने लोगों को स्वतंत्रता के लिए जागृत किया और गांधी जी का स्वराज के लिए उनकी लड़ाई में सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए प्रेरित किया गया।
 खेड़ा आंदोलन में उन्होंने अपनी मुख्य भूमिका निभाई और अकाल और प्लेग से ग्रस्त लोगों की सेवा की।
 बारडोली सत्याग्रह में उन्होंने लोगों को कर ना देने के लिए प्रोत्साहित किया और एक बड़ी जीत हासिल कर सरदार की उपाधि कमाई।
 असहयोग आंदोलन में गांधीजी के साथ पूरे देश में घूम कर लोगों को एक साथ किया और आंदोलन के लिए पैसा इकट्ठा किया।
 भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया और जेल की सजा काटी।
 आजादी के बाद देश के गृहमंत्री और प्रधानमंत्री का पद संभाला इस पद पर रहते हुए उन्होंने राज्यों को देश में मिलाने का भी काम किया जिससे उन्हें लोह पुरुष की उपाधि मिली।

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 सरदार वल्लभ भाई पटेल के राष्ट्रीय सम्मान 


1991 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
 इनके नाम से कई सारी शैक्षणिक संस्थाएं खोली गई।
 हवाई अड्डे को भी इनका नाम दिया गया।
 स्टेचू ऑफ यूनिटी नाम से सरदार पटेल के नाम से स्मृति स्मारक बनवाई गई।
 

सरदार वल्लभ भाई पटेल से जुड़े वह तथ्य जो उन्हें लौह पुरुष के नाम से जाना जाता है


1. सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नाडियाद में हुआ था। वह खेड़ा जिले के कारमसद में रहने वाले झावेर भाई और लाडबा पटेल की चौथी संतान थी। 1897 में 22 साल की उम्र में उन्होंने अपनी मैट्रिक की परीक्षा पास की थी। वल्लभ भाई की शादी झबेरबा से हुई थी। पटेल जब सिर्फ 33 साल के थे तभी उनकी पत्नी का निधन हो गया था।

2.सरदार वल्लभभाई पटेल अन्याय नहीं सहन करते थे। अन्याय का विरोध करने की शुरूआत उनके चरित्र में स्कूल के दिनों से ही थी। नाडियाड में उनके स्कूल के अध्यापक पुस्तक का व्यापार करते थे एवं छात्रों को मजबूर करते थे कि पुस्तक बाहर से ना खरीद कर उन्हीं से खरीदे। वल्लभभाई ने इसका विरोध किया और छात्रों को अध्यापकों से पुस्तक ना खरीदने के लिए प्रेरित किया, जिसके परिणाम स्वरुप अध्यापकों और सभी विद्यार्थियों में संघर्ष छिड़ गया था। 5 से 6 दिन तक स्कूल बंद रहा और अंत में इस बात की जीत सरदार की हुई और अध्यापक की ओर से पुस्तक बेचने की प्रथा भी बंद हुई।

3. सरदार पटेल अपने स्कूल की शिक्षा पूरी करने में समय लगा दिया था। उन्होंने 22 साल की उम्र में दसवीं की परीक्षा पूरी की। सरदार पटेल का सपना वकील बनने का था और अपने इस सपने को पूरा करने के लिए विदेश इंग्लैंड जाना चाहते थे लेकिन इस सपने को पूरा करने के लिए उनके पास आर्थिक साधन इतनी मजबूत नहीं थी कि वह एक भारतीय महाविद्यालय में भी प्रवेश ले सके। ऐसे में सरदार वल्लभभाई पटेल ने अपने एक परिचित वकील से पुस्तक उधार ली और घर बैठकर पढ़ाई करनी शुरू की थी और सपने को पूरा करने के लिए एक कदम आगे बढ़े।

4. बारडोली सत्याग्रह का नेतृत्व करते हुए पटेल को सत्याग्रह में सफलता मिली और वहां की महिलाओं ने उन्हें सरदार की उपाधि दी। जिसके बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल के नाम से जाना जाने लगा। आजादी के बाद भारत की विभिन्न रियासतें  बिखरी हुई थी, बिखरे भारत के भू राजनीतिक एकीकरण में मुख्य भूमिका निभाने वाले पटेल को भारत का बिस्मार्क और लौह पुरुष भी कहा गया। सरदार पटेल वर्ण तथा वर्ग भेद के कट्टर विरोधी थे। 

5.इंग्लैंड में वकालत की पढ़ाई करने के बाद भी उनका रुख पैसा कमाने की ओर नहीं था। सरदार पटेल 1913 में भारत वापस लौटे और अहमदाबाद में अपनी वकालत शुरू की थी। जल्द ही वे एक लोकप्रिय वकील बने और अपने मित्रों के कहने पर पटेल ने 1917 में अहमदाबाद के सैनिटेशन कमिश्नर का चुनाव लड़ा और उसमें उन्हें भारी मतों से जीत हासिल हुई थी।

 6. सरदार पटेल गांधीजी के चंपारण सत्याग्रह की सफलता से भी बहुत प्रभावित हुए थे, उन्होंने 1918 में गुजरात के खेड़ा खंड में सूखा पड़े किसानों को कर से राहत दिलाने की मांग की लेकिन ब्रिटिश सरकार ने कर माफ नहीं किया। गांधीजी ने किसानों का मुद्दा उठाया और अपना पूरा समय खेड़ा में ही बिताया था। गांधी जी खेड़ा में पूरा समय नहीं व्यतीत कर सकते थे इसलिए वे एक ऐसे व्यक्ति की तलाश कर रहे थे जो उनकी अनुपस्थिति में इस संघर्ष की अगवाई कर सके। ऐसे में इस समय सरदार वल्लभभाई पटेल अपनी इच्छा से आगे आए और इस संघर्ष का नेतृत्व किया था।

7. गृह मंत्री के रूप में उनकी पहली प्राथमिकता देसी रियासतों (राज्यों) को भारत में मिलाने था। इस काम को उन्होंने बिना खून बहाए करके दिखाया था। हैदराबाद के ऑपरेशन पोलो के लिए उन्हें सेना भेजनी पड़ी थी। भारत के एकीकरण करने के इस महान योगदान के लिए उन्हें भारत के लौह पुरुष के रूप में जाना जाता है। सरदार पटेल की महानतम देन के बदौलत से 562 छोटी-बड़ी सभी रियासतों को भारतीय संघ में एक कर भारतीय एकता का निर्माण करना था।  सरदार पटेल भारत के इतिहास के एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने इतनी बड़ी संख्या में राज्यों को एक करने का साहस दिखाया था। 5 जुलाई 1947 को एक रियासत विभाग की भी स्थापना की गई थी।

8. सरदार वल्लभ भाई पटेल देश के पहले प्रधानमंत्री बनने वाले थे, वे महात्मा गांधी के इच्छा का सम्मान करते थे। इसलिए वे प्रधानमंत्री के पद से पीछे हटे और जवाहरलाल नेहरू को देश का पहला प्रधानमंत्री बनाया गया। देश की स्वतंत्रता के बाद सरदार पटेल प्रधानमंत्री के साथ पहले गृहमंत्री, सूचना एवं रियासत विभाग के मंत्री बने। सरदार पटेल के निधन के 41 साल बाद 1991 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। जिसे उनके पौत्र विपिन भाई पटेल ने स्वीकार किया था। 

9.सरदार पटेल के पास खुद का मकान नहीं था। अहमदाबाद के किराए के एक मकान में रहा करते थे। 15 दिसंबर 1950 में मुंबई में जब उनका निधन हुआ था तब उनके बैंक के खाते में मात्र ₹260 ही मौजूद थे। 

10.आजादी से पहले जूनागढ़ रियासत ने 1947 में पाकिस्तान के साथ जाने का फैसला किया था, लेकिन भारत ने उनके इस फैसले को स्वीकार नहीं किया था जिसके बाद जूनागढ़ को भारत में मिला लिया गया। भारत के तत्कालीन उप प्रधानमंत्री सरदार पटेल ने 12 नवंबर 1947 को जूनागढ़ जाकर उन्हें भारतीय सेना को इस क्षेत्र में स्थिरता बहाल करने का निर्देश दिया और इसके साथ ही सोमनाथ मंदिर का भी पुनर्निर्माण करने का आदेश दिया था।

 जम्मू एवं कश्मीर जूनागढ़ और हैदराबाद के राजाओं ने इस फैसले को स्वीकार नहीं किया जूनागढ़ के नवाब के विरुद्ध जब बहुत विरोध हुआ था वह भागकर जूनागढ़ चले गए और जूनागढ़ भारत में मिल गया। जब हैदराबाद के निजाम भारत में विलय के प्रस्ताव को अस्वीकार किए तो सरदार पटेल ने वहां भी सेना भेजकर निजाम को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर किया और हैदराबाद को भारत में मिलाया, लेकिन कश्मीर पर यथास्थिति रखते हुए इस मामले को शांत करवाया था।

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