UNION BUDGET 2022- पांच प्रमुख आंकड़े जीडीपी ग्रोथ ,फ्सिकल डेफिसिट, डिसइनवेस्टमेंट , और अन्य जो इस बार बजट में देखे जाएंगे । 

safalta experts Published by: Chanchal Singh Updated Sun, 30 Jan 2022 03:40 PM IST

Highlights

महामारी की विनाशकारी मानवीय और आर्थिक लागत रही है। फाईनेंशियल ईयर  2021 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 7.7 प्रतिशत की गिरावट आई है।

UNION BUDGET 2022-कोरोनोवायरस की तीसरी लहर के बीच, केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को आगामी बजट में देश की आर्थिक विकास योजना को पूरा करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। इस साल के बजट में सरकार से उम्मीद की जा रही है कि वह महामारी से पीड़ित लोगों को पुनर्जीवित करने के लिए बुनियादी ढांचे और स्वास्थ्य देखभाल पर अधिक पैसा खर्च करेगी। अर्थव्यवस्था आगामी बजट में जिन पांच प्रमुख संख्याओं पर ध्यान दिया जाना है, वे यहां दी गई हैं:

Source: social media

अर्थव्यवस्था का विकास

महामारी की विनाशकारी मानवीय और आर्थिक लागत रही है। फाईनेंशियल ईयर  2021 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 7.7 प्रतिशत की गिरावट आई है। हालांकि, नवीनतम अनुमान से पता चलता है कि पिछले साल की तुलना में चल रहे फाईनेंशियल ईयर  में वृद्धि 9.2 % तक वापस आ जाएगी।

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फाईनेंशियल ईयर 2023 में जीडीपी सालाना आधार पर 7.6 % की रेट से बढ़ेगी। दो साल के अंतराल के बाद, भारतीय इकॉनमी एक मीनिंगफुल एक्सपेंशन दिखाएगी, क्योंकि फाईनेंशियल ईयर 2013 में वास्तविक जीडीपी फाईनेंशियल ईयर 2010 (पूर्व-कोविड स्तर) के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के स्तर से 9.1 % तक अधिक होगी। हालांकि,  फाईनेंशियल ईयर 2013 में भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार फाईनेंशियल ईयर 2013 के सकल घरेलू उत्पाद (ग्रॉस डॉमेस्टिक प्रोडक्ट)के रुझान मूल्य से 10.2 % कम होगा। ''क्रेडिट रेटिंग एजेंसी इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च ने हाल ही में आर्थिक दृष्टिकोण पर अपने वेबिनार में  इस बात को स्पष्ट किया है।

कर संग्रह

सरकार की दो-तिहाई से अधिक प्राप्तियां टैक्स से आती हैं। पर्सनल इनकम टैक्स का हिस्सा लगभग 20 वर्षों के बाद अन्य डायरेक्ट टैक्स, कॉर्पोरेट टैक्स को पार कर गया है। महामारी के बाद, वित्त वर्ष 2020 की तुलना में वित्त वर्ष 2021 में कॉर्पोरेट टैक्स लगभग 20 % गिर गया है । उसी समय, पर्सनल टैक्स लगभग 7% गिरा है।
अन्य देशों की तुलना में टैक्स-जीडीपी रेसिओ अभी भी बहुत कम है। उदाहरण के लिए, ओईसीडी (OICD) देशों में TAX-जीडीपी Ratio पिछले 20 सालों से 30 % से ऊपर रहा है। इसके अपोसिट, भारत में यह  Ratio कोविड से पहले भी लगभग 10 %  था। इस इनकम TAX-जीडीपी Ratio ने सरकार को इस बार कुल टैक्स राजस्व को फाईनेंशियल ईयर 2022 के बजट लेवल  22.17 लाख करोड़ रुपये से अधिक करने के लिए जगह दिया गया है।

फ्सिकल डेफिसिट

फ्सिकल डेफिसिट दर्शाता है कि सरकार अपने साधनों से अधिक खर्च कर रही है। अंतर को आमतौर पर ऋण द्वारा फाइनेंस्ड किया जाता है, जिससे इंटरेस्ट में एक और बोझ होता है। डेटा से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2011 में  फ्सिकल डेफिसिट18.5 लाख करोड़ रुपये था, जबकि पिछले बजट में यह 12 लाख करोड़ रुपये था। हालांकि, इस बढ़ते घाटे का अधिकांश हिस्सा (OF-BUDGET) उधार के एडजस्टमेंट के बाद है, जिसे अब सरकार की उधारी के रूप में रिपोर्ट किया है।

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खर्च

राजकोषीय प्रोत्साहन के रूप में अतिरिक्त खर्च, विशेष रूप से वित्त वर्ष 2011 (संशोधित अनुमान) में, कुल खर्च 26.86 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 34.5 लाख करोड़ रुपये हो गया है, जो पिछले वर्ष के 19 परसेंट की तुलना में लगभग 28 परसेंट ज्यादा है।  फाईनेंशियल ईयर 2012 के बजट अनुमान के मुताबिक पूंजीगत व्यय बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद(GDP)का 2.5% हो गया, जो फाईनेंशियल ईयर 2011 में 2.2 % और फाईनेंशियल ईयर 2010 में 1.6 % था।
लेखा महानियंत्रक (Controller General of Accounts) के पास उपलब्ध नए मंथली डेटा से पता चलता है कि नवंबर 2021 तक कुल खर्च बजट अनुमान के 59.6 % तक पहुंच गया है, जिसमें राजस्व व्यय ( operating expense)61.5 % और पूंजीगत व्यय ( Capital expenditures) 58.5 % है। हालांकि यह पिछले साल की तुलना में कम है।

डिसइनवेस्टमेंट: एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य

सरकार ने सोचा था कि वह  फाईनेंशियल ईयर 2022  में डिसइनवेस्टमेंट से 1.75 लाख करोड़ रुपये संचित करेगी। वास्तव में, चालू फाईनेंशियल ईयर की तीसरी तिमाही की समाप्ति पर सरकार इस लक्ष्य से लगभग 95 % कम थी। डिपार्टमेंट ऑफ इन्वेस्टमेंट एंड पब्लिक एसेट मैनेजमेंट के दिसंबर 2021 तक के आंकड़ों से पता चलता है कि सरकार ने सात केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में  डिसइनवेस्टमेंट के माध्यम से केवल 9,000 करोड़ रुपये से अधिक रकम हासिल किया है।

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इसके अलावा, महामारी की शुरुआत से पहले ही सरकार शायद ही अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सके। उदाहरण के लिए, पिछले 6 सालों में, लक्ष्य केवल दो बार  ही बस पूरा किया गया है, और फिर भी, एक सार्वजनिक कंपनी के शेयर दूसरे सार्वजनिक उपक्रम को बेचे गए।

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