विकसित देशों की बात छोड़ दें तो सिर्फ भारत हीं क्यों दुनिया के अन्य कई देशों में भी विधवाओं और उसके बच्चों को बहिष्कृत सा जीवन जीना पड़ता है. संयुक्त राष्ट्र के एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में 258 मिलियन से भी अधिक विधवा स्त्रियाँ हैं जिन्हें उनके मूल अधिकारों से वंचित कर उनकी असमर्थता के साथ जीने के लिए छोड़ दिया जाता है. यदि आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और विशेषज्ञ मार्गदर्शन की तलाश कर रहे हैं, तो आप हमारे जनरल अवेयरनेस ई बुक डाउनलोड कर सकते हैं FREE GK EBook- Download Now.
पहला अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस
पहला अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस 2005 में मनाया गया था और इसकी शुरुआत लॉर्ड लूंबा और इस फाउंडेशन के अध्यक्ष चेरी ब्लेयर के द्वारा की गयी थी.इसके बाद 21 दिसंबर 2010 को इसके छठे वर्षगाँठ के मौके पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा औपचारिक रूप से इस दिन को अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस के रूप में अपना लिया गया.
इसके बाद संयुक्त राष्ट्र द्वारा यह दिवस वर्ष 2011 से हर वर्ष 23 जून को अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस के रूप में मनाया जाता रहा है. यह दिन विधवाओं को अत्याचारों से मुक्ति और उनके पूर्ण अधिकार दिलाने के लिए समर्पित है. इस संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र का कथन है कि विधवाओं को अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करने में सक्षम बनाने के लिए पूरे समाज को सहयोग करना होगा. उन पर अत्याचार जैसे सामाजिक कलंक को खत्म करना होगा.
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अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस और इसका महत्व
हर साल 23 जून को, विधवाओं की सामाजिक सुरक्षा तथा उनके अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस मनाया जाता है.पुरुषप्रधान समाज में अपने जीवनसाथी के खोने के बाद एक विधवा स्त्री के लिए अपनी दैनिक जरूरतों और बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं को पूरा करना भी मुश्किल हो जाता है. इसलिए 23 जून का यह दिन हम सब को उनके समर्थन में खड़े होने तथा उनकी स्थिति को बेहतर बनाने का अवसर देता है.
अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस इस मायने में बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह विधवाओं की आवाज़ को दबाने की बजाय बढ़ाने में सहायता करता है. इसका प्रमुख उद्देश्य विधवाओं द्वारा सामना की जाने वाली कठिनाइयों के बारे में जागरूकता फैलाना और उनके पक्ष में नीतियाँ बनाना और उन्हें लागू करना है. जैसे - उनकी विरासत या उनके हक़ के उचित हिस्से की जानकारी का प्रसार, समान वेतन, पेंशन, सामाजिक सुरक्षा के साथ उनके प्रति एक संवेदनशील दृष्टिकोण. संयुक्त राष्ट्र का सुझाव है कि हम सबको दुनिया की सभी विधवाओं के लिए अपने तथा अपने परिवार को चलाने के लिए सशक्त बनाने का प्रयत्न करना चाहिए. इस दिशा में उन सामाजिक कलंकों को दूर करना भी शामिल है जो उनके प्रति बहिष्कार की भावना पैदा करते हैं और भेदभावपूर्ण प्रथाओं को बढ़ावा देते हैं.
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क्यों मनाया जाता है विधवा दिवस ? 23 जून हीं क्यों ?
अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस की शुरुआत ब्रिटेन स्थित लूंबा फाउंडेशन ने की थी. दरअसल लुंबा फाउंडेशन की संस्थापिका भारतीय मूल की राजिंदर पॉल लुंबा की माँ श्रीमती पुष्पा वती लूंबा ने वर्ष 1954 में 23 जून के दिन अपने पति को खोया था. 37 साल की उम्र में पति को खोने के बाद राजिंदर पॉल लूंबा की माँ को जिस प्रकार सामाजिक प्रताड़नाओं तथा अन्य कई समस्याओं से जूझना पड़ा था, उसने राजिंदर पॉल लूंबा के लिए एक सम्वेदनशील प्रेरणा का काम किया. राजिंदर पॉल लूंबा अपने फाउंडेशन के जरिये अविकसित और गरीब देशों में रहने वाली विधवाओं के लिए उनके पोषण, स्वास्थ्य, बच्चों की शिक्षा आदि में सहायता करते हैं. यह फाउंडेशन दुनिया के तमाम देशों में सक्रिय है जिसमें भारत समेत कई अन्य एशियाई तथा अफ्रीकी देश भी शामिल हैं. संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत, यूनाइटेड किंगडम, सीरिया, केन्या, श्रीलंका, बांग्लादेश सहित कई देशों में यह दिवस विधवाओं और उनके आश्रितों द्वारा सामना की जाने वाली गरीबी और अन्याय को दूर करने के लिए मनाया जाता है. इस दिन, विधवाओं को काम, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच प्रदान करके उन्हें सशक्त बनाने के लिए कदम उठाए जाते हैं.यह दिवस विधवाओं को उनके संपूर्ण अधिकारों का अहसास कराने, समाज में उन्हें सम्मानित जगह दिलाने का आग्रह करता है. विधवाओं को उनका संवैधानिक अधिकार, उनकी विरासत, पिता और ससुराल की संपत्ति में बराबर का हिस्सा, उनके योग्य रोजगार, और वह तमाम संसाधन मुहैया कराने की वकालत करता है,जो एक आम नागरिक को प्राप्त है.
यह समाज की जिम्मेदारी है कि वह एक विधवा को सम्मान दिला कर आपने दायित्वों का निर्वहन करें.
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अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस 2022 - थीम
- इस वर्ष की अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस की थीम है – “विधवाओं की वित्तीय स्वतंत्रता के लिए सतत समाधान”(“Sustainable Solutions for Widows Financial Independence”.)
- पिछले साल के अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस की थीम थी "अदृश्य महिला, अदृश्य समस्याएं" (“Invisible Women, Invisible Problems”)
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