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यूक्रेन और रूस के बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश है. दुनिया के दो सबसे बड़े गेहूं आपूर्तिकर्ता देशों के बीच युद्ध ने गेहूं की आपूर्ति श्रृंखला को बाधित किया. क्योंकि इन दोनों देशों के पास वैश्विक अनाज भंडार का लगभग 10% अकेले मौजूद है. इधर चीन में गेहूं की फसल खराब होने के कारण और भारत की कम उत्पादन आपूर्ति के कारण वैश्विक अनाज आपूर्ति सीधे सीधे प्रभावित हुई. जाहिर है कि इसी वजह से पिछले कुछ महीनों से पूरी दुनिया गेहूं की आपूर्ति के लिए भारत की ओर देख रही थी. तो इस वजह से भारत से गेहूं का निर्यात बढ़ा. तेजी से मांग बढ़ने के कारण स्थानीय मार्केट में गेहूं और आटे की कीमतों में तेजी देखने को आई. स्थानीय मार्केट में गेहूं व आटे की बढ़ रही कीमतों को नियंत्रित किया जा सके इसीलिए सरकार के द्वारा गेहूं के निर्यात पर प्रतिबन्ध लगाया गया. वैसे यह हालिया निर्यात प्रतिबंध दुनिया भर में गेहूँ की कीमतों को और बढ़ाएगा और अफ्रीका और एशिया के गरीब उपभोक्ता इससे बहुत प्रभावित होंगे.
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इसके अलावा बढ़ती ऊर्जा और खाद्य कीमतों के कारण, भारत की वार्षिक खुदरा मुद्रास्फीति अप्रैल में 7.79% की दर पर पहुंच गई. जिसके कारण, देश भर में कुछ स्थानों पर गेहूं की कीमतें बढ़कर 25,000/-रुपये प्रति टन हो गई हैं जो कि सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य 20,150/-रुपये से काफी अधिक है.
निर्यात प्रतिबंध और गेहूं की कीमतें -
जैसे ही भारत ने गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की, वैश्विक गेहूं की कीमतें रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गईं. दुनिया के दूसरे सबसे बड़े गेहूं उत्पादक द्वारा लगाए गए प्रतिबंध ने वैश्विक खाद्य संकट को बढ़ा दिया है. इससे पहले, भारत यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के कारण आपूर्ति की कुछ कमी को भरने के लिए सहमत हुआ था. देश ने इस वित्त वर्ष में निर्यात को 70 लाख टन से बढ़ाकर 1 करोड़ टन करने की योजना भी बनाई थी.
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क्यों लगाया भारत ने गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध ?
भारत ने गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाते हुए मुद्रास्फीति और 1.4 अरब लोगों की खाद्य सुरक्षा का तर्क दिया है. हालांकि, इसने अपनी खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए एक विदेशी सरकार के विशिष्ट अनुरोध पर विदेशी शिपमेंट के लिए एक विकल्प अभी भी खुला रखा है.
दरअसल सरकार का लगभग 20 मिलियन टन का अपना बफर स्टॉक जो कि महामारी की वजह से समाप्त हो गया था, के बारे में चिंतित होना लाज़िमी था. यह स्टॉक जो किसी भी संभावित अकाल को रोकने के लिए आवश्यक होता है.
इसके अलावा, देश में गर्मी की लहर ने उत्तर भारत में गेहूं उत्पादक किसानों को बहुत अधिक प्रभावित किया, जिससे सरकार को 2021 में 109 मिलियन टन उत्पादन से इस साल कम से कम पांच प्रतिशत की गिरावट का सामना करना पड़ा.
भारत के फैसले की आलोचना -
G7 देशों ने भारत के फैसले की आलोचना की और चिंता व्यक्त की कि इस तरह के उपायों से कमोडिटी की बढ़ती कीमतों का संकट और गहरा हो जाएगा. ओजडेमिर ने शनिवार को स्टटगार्ट में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, "अगर हर कोई निर्यात प्रतिबंध या बाजार बंद करना शुरू कर देता है, तो इससे तो संकट और गहरा हो जाएगा."
जिस पर भारत ने अपने निर्णय का यह कहते हुए बचाव किया कि निर्यात प्रतिबंध मूल्य वृद्धि के कारण था. 2022 में लगातार चार महीनों के लिए खुदरा मुद्रास्फीति 6 प्रतिशत से अधिक रही है, अप्रैल के लिए कीमतें बढ़कर 7.79 प्रतिशत हो गई हैं, जो कि 6 प्रतिशत के आरबीआई मुद्रास्फीति लक्ष्य के ऊपरी बैंड से बहुत अधिक है. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में पीडीएस के गेहूं/आटा का भार 0.17 और अन्य स्रोतों से प्राप्त गेहूं/आटे का भार 2.56 है.
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प्रभावित हो सकती है अन्य खाद्यान्न की कीमतें -
विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम स्थानीय गेहूं की कीमतों को काफी हद तक बढ़ने से रोक सकता है. हालांकि, घरेलू गेहूं का उत्पादन हीटवेव द्वारा सीमित होने की संभावना के साथ, स्थानीय गेहूं की कीमतें कम नहीं हो सकती हैं. यदि भारत में गेहूं पर प्रतिबंध लगाने से चावल जैसे विकल्प की कीमतें अधिक हो जाती हैं, तो अन्य खाद्य कीमतों की भी ऊपर जाने की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता.
वाणिज्य सचिव बीवीआर सुब्रह्मण्यम ने कहा कि प्रतिबंध तीन उद्देश्यों को पूरा करता है -
i) देश की खाद्य सुरक्षा को बनाए रखना,
ii) संकट में पड़े लोगों की मदद करना. और
iii) भारत की विश्वसनीयता के रूप में आपूर्तिकर्ता को किसी भी मौजूदा अनुबंध से पीछे नहीं हटना होगा. यदि कोई देश विशिष्ट अनुरोध करते हैं, तो भारत सरकार निर्णय लेगी, पिछले हफ्ते, भारत ने कहा कि वह गेहूं के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए अन्य लोगों के बीच मिस्र और तुर्की में प्रतिनिधिमंडल भेजेगा. 13 मई के सर्कुलर के बाद यह स्पष्ट नहीं है कि ये दौरे अभी भी जारी हैं या नहीं.