Black hole of Calcutta: ब्लैक होल ऑफ कोलकाता भारतीय इतिहास की रूह कंपा देने वाली घटना

Safalta Experts Published by: Nikesh Kumar Updated Tue, 22 Mar 2022 10:46 AM IST

सत्रहवीं शताब्दी के ख़त्म होने तक भारत की सत्ता मुग़ल साम्राज्य के हाथों से निकल कर नवाबों और प्रांतीय गवर्नरों के हाथों में जा रही थी. दूसरी तरफ अंग्रेज़ और फ्रांसीसी भारत में अपने पैर जमाने की पुरजोर कोशिश में लगे थे. जिसके लिए उन्होंने भारत में अपने व्यापारिक साम्राज्य का निर्माण शुरू कर दिया था. अंग्रेजों ने सन् 1690 में कलकत्ता में एक बंदरगाह और एक व्यापारिक आधार स्थापित किया. और साथ हीं इसकी सुरक्षा के लिए फोर्ट विलिअम का निर्माण किया. कुछ सालों बाद हीं अंग्रेज़, फ्रांसीसियों के विरुद्ध अपनी रक्षा व्यवस्था को मजबूत करने लगे. हालाँकि यूरोपीयों के पास भारत में केवल व्यापार करने और कारखाने बनाने की अनुमति थी. उन्हें किलेबंदी करने की अनुमति नहीं थी.  यदि आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और विशेषज्ञ मार्गदर्शन की तलाश कर रहे हैं, तो आप हमारे जनरल अवेयरनेस ई बुक डाउनलोड कर सकते हैं  FREE GK EBook- Download Now.

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सिराजुद्दौला बनाम ब्रिटिश-

बंगाल के नए नवाब, सिराजुद्दौला को ये बात पसंद नहीं आ रही थी कि बिना अनुमति अंग्रेज़ कलकत्ता में किलेबंदी कर रहे हैं. सिराजुद्दौला 1756 में मुर्शिदाबाद में अपने दादा के उत्तराधिकारी बने थे. उस समय वह मात्र 20 वर्ष के थे. उन्होंने कलकत्ता के गवर्नर को किलेबंदी का काम रोकने के लिए आदेश भेजा. लेकिन अंग्रेजों ने उनके आदेश पर कोई ध्यान नहीं दिया. जिसके बाद बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला ने एक विशाल सेना के साथ कलकत्ता पर चढ़ाई कर दी.
सिराजुद्दौला 50,000 लोगों, 500 हाथियों और 50 तोपों को अपने साथ लेकर गए थे. उनकी सेना 16 जून 1756 को कलकत्ता पहुंची, और सभी प्रतिरोधों को पार करते हुए, कलकत्ता के बाहरी इलाकों से धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगी. गवर्नर, उनके सारे कर्मचारी और ब्रिटिश निवासी बंदरगाह में खड़े जहाजों की सुरक्षा के लिए उस तरफ दौड़े. उन्होंने महिलाओं और बच्चों को किले में हीं छोड़ दिया और मात्र 170 अंग्रेजी सैनिकों को जॉन सफन्या होलवेल के नेतृत्व में उनकी रक्षा के लिए छोड़ दिया. जॉन सफन्या होलवेल ब्रिटिश कंपनी के जमींदार थे और कर संग्रहण और कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिम्मेदार थे.

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ब्लैक होल त्रासदी -

सिराजुद्दौला ने अंतिम हमला 20 जून 1756 की सुबह किया. होलवेल के पास कोई सैन्य अनुभव नहीं था. अंग्रेजों की स्थिति निराशाजनक थी और दोपहर तक उन्हें आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर होना पड़ा. उस रात एक भयानक घटना घटी जो कि ब्रिटिश राज के इतिहास में एक किंवदंती बन गई. सिराजुद्दौला ने होलवेल सहित कुल 146 ब्रिटिश कैदियों को रातभर के लिए फोर्ट विलियम के एक छोटे से कक्ष में बंद कर दिया. उस कक्ष का माप केवल 18 फीट गुणा 14 फीट 10 इंच था जिसमें एक समय पर अधिकतम मात्र 6 लोग रह सकते थे. इसमें दो छोटी खिड़कियां थीं. जून के महीने के समय गर्मी अपनी पराकाष्ठ पर थी जिससे बंदियों का दम घुटने लगा. सभी कैदी उन दो खिड़कियों के पास जाने के लिए और पानी मांगने के लिए एक-दूसरे को रौंदने लगे. मात्र 6 लोगों के रहने की क्षमता वाले उस कक्ष में उस रात सौ से ज्यादा लोग बंद थे. अगली सुबह 6 बजे जब दरवाजा खोला गया, तो अन्दर लाशें जमा हो गईं थीं और केवल तेईस कैदी जीवित बचे थे. आनन-फानन में मृतकों के लिए एक गड्ढा खोदा गया और शवों को उसमें फेंक दिया गया. होलवेल भी उस घटना में जीवित बच गए थे, उन्होंने बाद में इस घटना के बारे में सबको बताया.

इसी घटना को “कलकत्ता का ब्लैक होल”, “ब्लैक होल त्रासदी” या “कालकोठरी की घटना” कहते हैं. होलवेल ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि वे इस घटना को 'एक भयावह रात के रूप में वर्णित करने का प्रयास नहीं करेंगे, क्योंकि वह रात किसी भी विवरण के मात्रकों से परे है', उन्होंने अगले वर्ष इंग्लैंड लौटने के बाद अंग्रेजों के लिए एक किंवदंती बन चुकी इस घटना का विस्तार से वर्णन किया.

प्लासी का युद्ध-

इस घटना का बदला लेने के लिए 1757 में बंगाल के नए गवर्नर बने रॉबर्ट क्लाइव ने कलकत्ता पर चढ़ाई की, फोर्ट विलियम को वापस अंग्रेजों के कब्ज़े में लिया और सिराजुद्दौला के खिलाफ़ षड़यंत्र रचकर प्लासी के युद्ध में उन्हें पराजित कर दिया. सिराजुद्दौला प्लासी से मुर्शिदाबाद भाग गए थे जहाँ उन्हें मार दिया गया.

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