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वर्ष 1965 में, भारत सरकार ने एक आनुवंशिक विज्ञानी (जेनेटिसिस्ट) एम.एस. स्वामीनाथन (7 अगस्त, 1925) की सहायता से हरित क्रांति की शुरुआत की थी. जिन्हें अब भारत के हरित क्रांति (भारत) के जनक के रूप में जाना जाता है. भारत में हरित क्रांति का आंदोलन एक बड़ी सफलता के रूप में सामने आई जिसने देश की स्थिति को खाद्य की कमी वाली अर्थव्यवस्था से दुनिया के अग्रणी खाद्य उत्पादक कृषि देशों में से एक में बदल दिया. यह हरित क्रांति मूवमेंट भारत में 1967 में शुरू हुआ और 1978 तक चला. हरित क्रांति से भारत में विशेषकर हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में कृषि उत्पादन में महत्त्वपूर्ण रूप से वृद्धि हुई. इस उपक्रम में प्रमुख रूप से गेहूं की अधिकतम उपज देने वाले किस्म की बीजों और गेहूँ की जंग प्रतिरोधी प्रजातियों का विकास मील का पत्थर साबित हुआ.
भारत में हरित क्रांति के विभिन्न पहलू
1. अधिक उपज देने वाली किस्में (HYV)2. कृषि का मशीनीकरण
3. रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग
4. सिंचाई
हरित क्रांति
हरित क्रांति को आधुनिक तकनीकों और उपकरणों की सहायता से कृषि उत्पादन को बढ़ाने की प्रक्रिया के रूप में जाना जाता है. हरित क्रांति का संबंध कृषि उत्पादन से है. यह वह दौर था जब देश की कृषि आधुनिक तरीकों और तकनीकों को अपनाने के कारण एक औद्योगिक प्रणाली में परिवर्तित हो गई थी. जैसे कि अधिक उपज देने वाले किस्म के बीज, ट्रैक्टर, सिंचाई की सुविधा, कीटनाशकों और उर्वरकों का उपयोग. जबकि इस क्रांति के पहले खाद्यान्न फसलों के लिए किसान गोबर से बनी हुई खाद का ही इस्तेमाल करते थे. आए दिन पड़ने वाले अकाल, जनसंख्या की अचानक वृद्धि आदि वजहों से तत्काल तथा प्रबल रूप से उपज बढ़ाना आवश्यक हो गया. और तब इसके लिए तत्काल की गई. यह कार्रवाई हरित क्रांति के रूप में सामने आई.
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हरित क्रांति की विधि मुख्य रूप से तीन मूल तत्वों पर केंद्रित है -
* उन्नत आनुवंशिकी वाले बीजों का उपयोग (उच्च उपज देने वाले किस्म के बीज)
* मौजूदा खेत में दोहरी फसल और
* कृषि क्षेत्रों का निरंतर विस्तार
भारत में हरित क्रांति के तहत योजनाएं -
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि के क्षेत्र में हरित क्रान्ति ''अम्ब्रेला स्कीम'' के तहत 2017 से 2020 तक तीन साल की अवधि के लिए 'कृषोन्नति योजना' को 33,269.976 करोड़ के केंद्रीय हिस्से के साथ मंजूरी दी है. हरित क्रान्ति ''अम्ब्रेला स्कीम'''कृषोन्नति योजना' में इसके तहत 11 योजनाएं शामिल हैं और ये सभी योजनाएं कृषि और कृषि से संबद्ध क्षेत्र को वैज्ञानिक तथा समग्र तरीके से विकसित करने के लिए हैं, ताकि उत्पादकता, उत्पादन, और उपज पर बेहतर रिटर्न तथा उत्पादन के इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करके, उत्पादन की लागत को कम करके और कृषि तथा संबद्ध उत्पादों की मार्केटिंग करके किसानों की आय में वृद्धि की जा सके. 11 योजनाएं जो हरित क्रांति के तहत अम्ब्रेला योजनाओं का हिस्सा हैं, वे निम्नलिखित हैं -
1. एमआईडीएच (MIDH) -
हॉर्टिकल्चर के एकीकृत विकास के लिए मिशन - इसका उद्देश्य हॉर्टिकल्चर सेक्टर में व्यापक विकास को बढ़ावा देना, सेक्टर के उत्पादन को बढ़ाना, न्यूट्रिशनल सिक्योरिटी में सुधार करना और हाउसहोल्ड फार्म्स के लिए इनकम सपोर्ट में वृद्धि करना है.
2. एनएफएसएम (NFSM) -
नेशनल फ़ूड सिक्योरिटी मिशन - इसमें एनएमओओपी भी शामिल है - इस राष्ट्रीय मिशन में ऑइल सीड्स और ऑइल पाम शामिल है. इस योजना का उद्देश्य गेहूं की दालों, चावल, मोटे अनाज और वाणिज्यिक फसलों (कमर्शियल क्रॉप्स) के उत्पादन में वृद्धि, उत्पादकता में वृद्धि, उपयुक्त तरीके से क्षेत्र का विस्तार करना, कृषि के स्तर की अर्थव्यवस्था को बढ़ाना, मिट्टी की उर्वरता और उत्पादकता को इंडिविजुअल फार्म लेवल पर बहाल करना है. इसका उद्देश्य आयात को कम करना और देश में वनस्पति तेलों और खाद्य तेलों की उपलब्धता में वृद्धि करना है.
3. एनएमएसए (NMSA) -
सस्टेनेबल एग्रीकल्चर (सतत कृषि) के लिए राष्ट्रीय मिशन - सस्टेनेबल एग्रीकल्चर का उद्देश्य स्थायी कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देना है जो विशिष्ट कृषि-पारिस्थितिकी के लिए सबसे उपयुक्त है. इसके तहत एकीकृत कृषि प्रणाली, उपयुक्त सोईल हेल्थ मैनेजमेंट और रिसोर्स कंजर्वेशन टेक्नोलॉजी में समायोजन पर ध्यान केंद्रित किया जाता है.
4. एसएमएसपी -
सीड और प्लांटिंग मटेरियल के लिए सब मिशन - इस सब मिशन का उद्देश्य गुणवत्ता वाले बीज के उत्पादन में वृद्धि करना, खेत से बचाए गए बीजों की गुणवत्ता को उन्नत करना और एसआरआर को बढ़ाना, सीड के मल्टीप्लीकेशन श्रृंखला को मजबूत करना, बीज उत्पादन, प्रसंस्करण में नई विधियों और प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना, बीज उत्पादन, भंडारण, गुणवत्ता और प्रमाणन आदि के लिए बुनियादी ढांचे को मजबूत और आधुनिक बनाने के लिए परीक्षण, आदि है.
5. एसएमएएम -
एग्रीकल्चरल मशीनीकरण के लिए सब मिशन - इसका उद्देश्य छोटे और सीमांत किसानों और उन क्षेत्रों में जहां कृषि शक्ति की उपलब्धता कम है, कृषि मशीनीकरण की पहुंच को बढ़ाना है, ताकि बड़े पैमाने पर उत्पन्न होने वाली प्रतिकूल अर्थव्यवस्थाओं को दूर करने के लिए 'कस्टम हायरिंग सेंटर' को बढ़ावा दिया जा सके.
भारत में हरित क्रांति का प्रभाव -
- हरित क्रांति ने कृषि उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि की है. इससे भारत में खाद्यान्नों के उत्पादन में भारी वृद्धि हुई है. हरित क्रांति में सबसे बड़ा फायदा गेहूँ की उपज में हुआ. योजना के प्रारंभिक चरण में ही इसका उत्पादन बढ़कर 55 मिलियन टन हो गया था.
- हरित क्रांति केवल कृषि उत्पादन तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि सभी फसल के प्रति एकड़ उपज में भी वृद्धि हुई है. गेहूं के मामले में तो हरित क्रांति ने अपने प्रारंभिक चरण में हीं 850 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उपज से बढ़ाकर अविश्वसनीय रूप से 2281 किलोग्राम/हेक्टेयर कर दिया.
- हरित क्रांति की शुरुआत के साथ हीं, भारत की आयात पर निर्भरता काफी कम हो गई और देश आत्मनिर्भरता के स्तर पर पहुंच गया. देश में उत्पादन बढ़ती आबादी की मांग को पूरा करने और आपात स्थिति के लिए इसे स्टॉक करने के लिए पर्याप्त हो गया. अन्य देशों से खाद्यान्न के आयात पर निर्भर होने के बजाय भारत ने अपनी कृषि उपज का निर्यात करना शुरू कर दिया. क्रांति की शुरूआत ने जनता के बीच इस डर को दूर कर दिया कि व्यावसायिक खेती से बेरोजगारी बढ़ेगी और बहुत सारी श्रम शक्ति बेरोजगार हो जाएगी. लेकिन परिणाम बिल्कुल अलग देखा गया और इससे ग्रामीण रोजगार में वृद्धि हुई. परिवहन, सिंचाई, खाद्य प्रसंस्करण, विपणन आदि जैसे तृतीयक उद्योगों ने कार्यबल के लिए रोजगार के अवसर पैदा किए.
- भारत में हरित क्रांति ने देश के किसानों को प्रमुख रूप से लाभान्वित किया. किसान जो भूख से मर रहे थे न केवल जीवित रहे, बल्कि इस क्रांति के दौरान समृद्ध भी हुए, उनकी आय में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, और वे जीविका के लिए खेती से व्यावसायिक खेती में स्थानांतरित हो गए.
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भारत में हरित क्रांति की शुरुआत किसने की थी ?
भारत में हरित क्रांति का ‘’जनक एम एस स्वामीनाथन’’ को माना जाता है.
हरित क्रांति के दौरान अधिक उपज देने वाली फसलें कौन-सी थीं ?
इसमें मुख्य रूप से 5 फसलें शामिल हैं - गेहूं, चावल, ज्वार, मक्का और बाजरा.
हरित क्रांति का जनक किसे माना जाता है.
हरित क्रांति का जनक ‘’नॉर्मन बोरलॉग’’ को माना जाता है इन्होंने गेहूँ की हाइब्रिड प्रजाति का विकास किया था.
भारत में हरित क्रान्ति की शुरुआत कब हुई ?
सन 1965 में, भारत सरकार ने एक आनुवंशिक विज्ञानी (जेनेटिसिस्ट) एम.एस. स्वामीनाथन (7 अगस्त, 1925) की सहायता से हरित क्रांति की शुरुआत की थी.