Mountbatten Plan and Partition of India: जाने माउंटबेटन योजना के बारे में और भारत के विभाजन के बारे में

Safalta Experts Published by: Nikesh Kumar Updated Tue, 22 Feb 2022 11:38 PM IST

भारत के अंतिम वाइसराय के रूप में लार्ड माउंटबेटन 24 मार्च 1947 को भारत आए थे. क्लेमेंट एटली, जो कि उस वक़्त ब्रिटिश प्रधानमंत्री थे, ने माउंटबेटन को जल्द से जल्द भारत को उसकी सारी शाक्तियाँ लौटाने के तरीके को खोजने का कार्यभार सौंपा था ताकि भारत को आजाद घोषित किया जा सके. 5 जुलाई 1947 को ब्रिटिश संसद ने भारत स्वतंत्रता अधिनियम जारी किया जो कि माउंटबेटन योजना पर आधारित था. इस अधिनियम को 18 जुलाई 1947 को शाही सहमती मिल गयी और 15 अगस्त 1947 से भारत में यह अधिनियम लागू कर दिया गया. यदि आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और विशेषज्ञ मार्गदर्शन की तलाश कर रहे हैं, तो आप हमारे जनरल अवेयरनेस ई बुक डाउनलोड कर सकते हैं  FREE GK EBook- Download Now.

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प्लान बाल्कन –

मई 1947 में, माउंटबेटन एक योजना लेकर आए, जिसके तहत उन्होंने प्रस्ताव दिया कि प्रांतों को स्वतंत्र उत्तराधिकारी राज्य घोषित किया जाए और फिर उन्हें स्वेच्छा से इस बात चुनने की अनुमति दी जाए कि उन्हें संविधान सभा में शामिल होना है या नहीं. इस योजना को 'डिकी बर्ड प्लान' कहा गया. जवाहरलाल नेहरू को जब इस योजना से अवगत कराया गया, तो उन्होंने इसका पुरजोर विरोध करते हुए कहा कि इससे देश का बाल्कनीकरण होगा. इसलिए इस योजना को प्लान बाल्कन भी कहा गया.

माउंटबेटन योजना - 3 जून प्लान –


इसके बाद वायसराय लार्ड माउंटबेटन एक और योजना लेकर आए, जिसे 3 जून योजना कहा गया. यह योजना भारतीय स्वतंत्रता की अंतिम योजना थी. इसे माउंटबेटन योजना भी कहते हैं. 3 जून की योजना में दोनों देशों (भारत, पाकिस्तान) के विभाजन, स्वायत्तता, संप्रभुता, अपना संविधान बनाने के अधिकार के सिद्धांत शामिल थे.
  • इन सबसे अलावा, जम्मू और कश्मीर जैसी रियासतों को भारत या पाकिस्तान में शामिल होने का विकल्प भी दिया गया था. इन विकल्पों के परिणाम आने वाले दशकों के लिए नए राष्ट्रों को प्रभावित करने वाले थे.
  • इस योजना को कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों ने स्वीकार किया. तब तक कांग्रेस ने भी विभाजन की अनिवार्यता को स्वीकार कर लिया था. माउंटबेटन योजना को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 द्वारा क्रियान्वित किया गया था.
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माउंटबेटन योजना के प्रावधान –

  • ब्रिटिश भारत को दो अधिराज्यों - भारत और पाकिस्तान में विभाजित किया जाएगा.
  • संविधान सभा द्वारा बनाया गया संविधान मुस्लिम बहुल क्षेत्रों पर लागू नहीं होगा (क्योंकि ये पाकिस्तान बन जाएंगे). मुस्लिम बहुल क्षेत्रों के लिए अलग संविधान सभा बनाने का निर्णय इन प्रांतों द्वारा स्वयं लिया जाएगा.
  • योजना के अनुसार, बंगाल और पंजाब की विधानसभाओं की बैठक हुई और विभाजन के लिए मतदान किया गया. तदनुसार, इन दोनों प्रांतों को धार्मिक आधार पर विभाजित करने का निर्णय लिया गया.
  • सिंध की विधान सभा यह स्वयं तय करेगी कि उसे भारतीय संविधान सभा में शामिल होना है या नहीं. सिंध ने पाकिस्तान जाने का फैसला किया.
  • NWFP (उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत) पर एक जनमत संग्रह किया जाना था ताकि यह तय किया जा सके कि उन्हें किस डोमिनियन में शामिल होना है. NWFP ने पाकिस्तान में शामिल होने का फैसला किया जबकि खान अब्दुल गफ्फार खान ने इसका बहिष्कार किया और जनमत संग्रह को खारिज कर दिया.
  • सत्ता हस्तांतरण की तिथि 15 अगस्त 1947 तय की गयी थी.
  • दोनों देशों के बीच अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को तय करने के लिए सर सिरिल रैडक्लिफ की अध्यक्षता में सीमा आयोग की स्थापना की गई थी. आयोग को बंगाल और पंजाब को दो नए देशों में सीमांकित करना था.
  • रियासतों को या तो स्वतंत्र रहने या भारत या पाकिस्तान में शामिल होने का विकल्प दिया गया था. इन राज्यों पर ब्रिटिश आधिपत्य समाप्त कर दिया गया था.
  • ब्रिटिश सम्राट अब 'भारत के सम्राट' की उपाधि का प्रयोग नहीं करेंगे.
  • डोमिनियन बनने के बाद, ब्रिटिश संसद नए उपनिवेशों के क्षेत्रों में कोई कानून नहीं बना सकती.
  • जब तक नए संविधान अस्तित्व में नहीं आते, गवर्नर-जनरल ब्रिटेन के सम्राट के नाम पर विधानसभाओं द्वारा पारित किसी भी कानून को मंजूरी देंगे.
  • गवर्नर-जनरल को संवैधानिक प्रमुख बनाया गया.
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भारत का विभाजन -
14 और 15 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि को क्रमशः पाकिस्तान और भारत के अधिराज्य अस्तित्व में आए. लॉर्ड माउंटबेटन को स्वतंत्र भारत का पहला गवर्नर-जनरल नियुक्त किया गया और एम.ए. जिन्ना पाकिस्तान के गवर्नर जनरल बने.

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