Holi Festival 2022: रंग के उत्सव की कहानी, होलिका दहन का इतिहास, प्रह्लाद की कहानी, हिरण्यकश्यप की कहानी

Safalta Experts Published by: Nikesh Kumar Updated Thu, 17 Mar 2022 06:50 PM IST

भारत त्योहारों की भूमि है. यहाँ भिन्न भिन्न जाति धर्मों के लोग एक साथ रहते हैं और भिन्न भिन्न संस्कृतियों से जुड़े त्योहारों को एक साथ बड़े उत्साह से मिल जुल कर मनाते हैं. संपूर्ण देश में पूरे उत्साह के साथ मनाए जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है होली. होली का त्योहार "रंगों के त्योहार" के रूप में प्रसिद्ध है. इसे पश्चिम बंगाल, असम और त्रिपुरा में "डोल जात्रा" या "बसंत उत्सव" और बिहार तथा उत्तर प्रदेश में फागुन या फगुआ भी कहा जाता है.

Source: Safalta


 
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हिरण्यकश्यप के षडयंत्र के टूटने की कहानी है होली

भारत का हर त्योहार मानवता के हित में एक सन्देश देता है. होली भी मानव समाज को एक सन्देश है. हिरण्यकश्यप के षडयंत्र के टूटने की कहानी है होली. प्रहलाद के कभी न भंग होने वाले विश्वास की कहानी है होली. होलिका के अहंकार के जलने की कहानी है होली. बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है होली. होलिका नाम की राक्षसी को अग्नि भस्म नहीं कर सकती थी. होलिका को यह वरदान मिला हुआ था कि अग्नि उसे कभी जला नहीं पाएगी. लेकिन जब प्रहलाद के विश्वास की बारी आती है तो धू धू कर जलती अग्नि पूरी की पूरी होलिका को लील लेती है और भक्त प्रहलाद का बाल भी बांका नहीं होता.

भारत का हर त्योहार एक तरफ जहाँ कृषि से जुड़ा हुआ है वहीँ दूसरी तरफ कहीं न कहीं यह विज्ञान से भी जुड़ा हुआ है. कालक्रम में असली त्योहार की कहानी कहीं न कहीं जरुर धूमिल हुई होगी फिर भी जो कुछ अवशेष रूप में बच गया है उसी की आज हम यहाँ चर्चा करने जा रहे हैं. भारत में अमूनन सभी पर्व त्यौहार हिंदी पंचाग के हिसाब से मनाये जाते है. होली या रंग उत्सव (रंगोत्सव) फाल्गुन माह की पूर्णिमा की तिथि को मनाई जाती है. इसे बसंत पूर्णिमा का त्यौहार भी माना जाता है. शीत ऋतू की कड़कडाती ठण्ड के बाद जब शरीर शिथिल हो जाता है तब वसंतागमन और ग्रीष्म की दस्तक से निबटने की तैयारी है होली. जर्रा जर्रा रस में सराबोर, हर लम्हा रंगीन, टेसू और अमलतास के फूलों से तैयार रंगों के घोल से एक दूसरे को भिगोना शरीर के ताप को सामंजस्य में लाने की प्रक्रिया भर है.

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कृषि की नज़र से देखें तो वासंती मौसम में आए आम के छोटे छोटे टिकोरे और बतिया कटहल की सब्जी होली के खानपान की विशेष रेसिपी में से एक है. ठण्ड से कुडकुड़ाई हुई आँतों के लिए मालपुए से बड़ी नियामत और क्या होगी. इधर पछवा बयार में सरसराती कोमल कोमल पत्तियाँ उधर पछवा से तपते बदन को ठंडई से आराम. बच्चे एक-दूसरे पर रंग छिड़कने, रंगीन पानी से गुब्बारे भरने आदि के लिए उत्साहित रहते हैं। दोस्त और परिवार इस दिन एक साथ आते हैं, त्योहार की चंचल भावना में लिप्त होते हैं, और रंगों, मिठाइयों और विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों पर दिन मनाते हैं।

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, होली का उत्सव फाल्गुन के महीने में पूर्णिमा की शाम या पूर्णिमा के दिन शुरू होता है. इस साल होली 18 मार्च 2022 (शुक्रवार) को मनाई जाएगी. 17 मार्च 2022 को होलिका दहन होगा. होली खुशियों के रंगों के साथ पहुंचने का समय है. यह प्यार करने और माफ करने का समय है. यह समय रंगों के माध्यम से प्यार किए जाने की खुशी को व्यक्त करता है।" होली एक रंगों का त्योहार है जो लोगों में प्यार और निकटता की भावना लाता है. यह सर्दियों के मौसम के बाद भारत में वसंत के मौसम की शुरुआत का भी प्रतीक है. इसे रंग पंचमी के नाम से भी जाना जाता है. यह फाल्गुन के महीने में पूर्णिमा के दिन बेहद हीं प्यार और उत्साह के साथ मनाया जाता है जो ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार मार्च का महीना है. विभिन्न राज्यों के लोग विभिन्न नामों से होली का त्योहार मनाते हैं. लोग एक-दूसरे पर रंग बिखेरते हैं. लेकिन, जो चीज होली को सबसे ज्यादा विशिष्ट और असाधारण बनाती है, वह है इस त्योहार की भावना. जो कि पूरे देश में और यहां तक कि देश के बाहर पूरी दुनिया भर में भी एक समान रहती है.

भारत में मनाए जाने वाले लोकप्रिय राष्ट्रीय पर्व

होली के त्योहार के समीप आने पर पूरा देश हर्षित नज़र आता है. बाजारों में चहल-पहल बढ़ जाती है. त्योहार से पहले हीं फुटपाथ पर विविध रंगों के अबीर और गुलाल बिकने लगते हैं. आविष्कारशील और समकालीन डिजाइन में तरह तरह की पिचकारी से बाज़ार भर जाता है. बच्चे इन पिचकारियों को खरीदने में सबसे आगे रहते हैं और रहें भी क्यों न आखिर उन्हें पूरे शहर को भिगोना जो होता है. महिलाएं भी होली के त्योहार के लिए ढेर सारी योजनाएं बनाना शुरू कर देती हैं. परिवार और रिश्तेदारों के लिए भी मठरी, पापड़ी और गुझिया बनाना महिलाएँ अपनी जिम्मेदारी समझती हैं. कुछ जगहों पर खासकर उत्तर में महिलाएं इस समय पापड़ और आलू के चिप्स भी बनाती हैं.

फूलों के खिलने का मौसम-

फागुन महीने की शुरुआत में हीं हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाता है क्योंकि मौसम हीं इतना आनंदमय होता है. होली को वसंत महोत्सव भी कहा जाता है - क्योंकि यह वसंत के आगमन का, आशा और आनंद के मौसम का प्रतीक है. सर्दियों की एक लम्बी उदासी वसंत आने पर होली के रूप में विशद गर्मी के दिनों का आश्वासन देती है. प्रकृति भी फागुन और होली के आगमन पर हर्षित होती है और अपने बेहतरीन कपड़े यानि पतझड़ के बाद नए नए पल्लवों के रंगबिरंगे वस्त्र पहनती है. तरह तरह के फूल खिलते हैं और चारों ओर रंग और हवा में खुशबू भर जाती है. और किसानों को अच्छी फसल का उपहार देने वाली फसलों से खेत भर जाते हैं.

होली के साथ कई किंवदंतियां जुड़ी हुई हैं. इन किंवदन्तियों में सबसे प्रमुख राक्षस राज हिरण्यकश्यप की कथा है, जिसने अपने राज्य में हर किसी को उसकी पूजा करने का आदेश दिया था. लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का अनुयायी भक्त बन गया था. हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को बहुत प्रकार से समझाने की कोशिश की पर प्रहलाद के नहीं मानने पर हिरण्यकश्यपु ने अपने पुत्र की हत्या करवाने की सोची. उसने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को गोद में लेकर एक धधकती आग में प्रवेश करने के लिए कहा क्योंकि होलिका को एक वरदान था जिसने उसे आग के प्रति प्रतिरोधी बना दिया था, जिस कारण होलिका आग से नहीं जलती थी. इस कहानी के अनुसार प्रह्लाद को उसकी अत्यधिक भक्ति तथा भगवान् विष्णु पर अटूट विश्वास की वजह से स्वयं भगवान ने उसे बचा लिया था और दुष्ट दिमाग वाली अहंकारी होलिका उस आग में जलकर राख हो गई थी. क्योंकि उसका वरदान केवल तभी काम करता था जब वह अकेले आग में प्रवेश करती थी. उस समय से, लोग होली के त्योहार पर होलिका नामक एक अग्नि को जलाते हैं और बुराई पर अच्छाई की विजय और भगवान के प्रति निष्ठा का आनंद लेते हैं. बच्चे इस प्रथा में असाधारण उल्लास से शामिल होते हैं. इसी के साथ होली से एक और कथा भी जुड़ी हुई है.

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भगवान कृष्ण के शैतान मामा कंस की योजना को पूरा करते हुए पूतना नाम की एक राक्षसी ने कृष्ण को जहरीला दूध पिलाकर मारने की कोशिश की दूसरी ओर, कृष्ण ने उसका खून चूसा और पूतना का अंत कर दिया. कुछ लोग जो मौसमी चक्रों से त्योहारों के स्रोत को देखते हैं, वे मानते हैं कि पूतना सर्दी का प्रतीक है और उसकी मृत्यु सर्दियों की समाप्ति या अंत है.

होलिका दहन-

होली की पूर्व संध्या पर, जिसे छोटी होली भी कहा जाता है, लोग शहर के महत्वपूर्ण चौराहे पर एकत्र होते हैं और बड़े पैमाने पर अलाव जलाते हैं. इस पवित्र अनुष्ठान को होलिका दहन कहा जाता है. यह अग्नि को कृतज्ञता प्रदान करने के लिए किया जाता है. इस अग्नि में मौसमी उपज जैसे चना और चने के डंठल भी पूरी विनम्रता के साथ अग्नि को अर्पित किए जाते हैं. इस अलाव से बची हुई राख को भी पवित्र माना जाता है और लोग इसे अपने माथे पर लगाते हैं. लोगों की ऐसी मान्यता है कि यह राख उन्हें अधर्मी ताकतों से बचाती है.

रंगों का खेल, रंगोत्सव या होली -
होलिका दहन के अगले दिन लोगों में अपार उत्साह देखा जा सकता है. यह केवल और केवल आनंद मनाने और रंगों से खेलने का समय होता है. दुकानें और कार्यालय इस दिन के लिए बंद रहते हैं और लोगों को उत्साह की सारी सीमा पार कर जंगली और अजीबोगरीब होने का मौका मिलता है. गुलाल और अबीर के चमकीले रंग हवा में भर जाते हैं और लोग जोश और ख़ुशी से एक-दूसरे के ऊपर पानी डालते हैं.

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