Principles of Child Development in Psychology Part 2

Safalta Experts Published by: Blog Safalta Updated Sat, 04 Sep 2021 02:31 PM IST

बाल विकास के सिद्धांत  [Principles of Child Development]


बच्चों के सामाजिक, संज्ञानात्मक, भावनात्मक और शैक्षिक विकास को समझना जरूरी है। इस क्षेत्र में बढ़ते शोध और रुचि के परिणामस्वरूप नए सिद्धांतों और नीतियों का निर्माण हुआ है और इसके साथ ही साथ विद्यालय प्रणाली के अंदर बच्चों के विकास को बढ़ावा देना वाले अभ्यास को विशेष महत्व भी दिया जाने लगा है। व्यक्ति के विकास को पर्यावरण संबंधी घटक यथा - भोजन, जलवायु, अभिप्रेरण, समाज, संस्कृति, समुदाय, सीखने के अवसर,सामाजिक नियम व मानदंड सभी प्रभावित करते हैं। इसके अलावा कुछ सिद्धांत बच्चे के विकास की रचना करने वाली अवस्थाओं के एक अनुक्रम का वर्णन करने का भी प्रयास करते हैं। विकास के कुछ प्रमुख सिद्धांग निम्नलिखित हैं - इसके साथ ही CTET परीक्षा की तैयारी के लिए आप सफलता के CTET Champion Batch से जुड़ सकते है - Subscribe Now , जहाँ 60 दिनों के तैयारी और एक्सपर्ट्स गाइडेंस से आप सेना में अफसर बन सकते हैं।  

Source: futurelearn


 
Current Affairs Ebook Free PDF: डाउनलोड करें     General Knowledge Ebook Free PDF: डाउनलोड करें

Free Demo Classes

Register here for Free Demo Classes

1.  समान प्रतिमान का सिद्धांत 

विद्वानों का मत है कि समान प्रजाति में विकास की गति समान प्रतिमानों से प्रचलित होती है। मनुष्य चाहे कनाडा में पैदा हो या भारत में उसका शारीरिक, मानसिक, भाषा एवं संवेगातमक विकास समान रूप से होता हैं हारलॉक के अनुसार प्रत्येक जाती, चाहे पशु हो अथवा मानव जाति, अपनी ही जाति के अनुसार विकास के प्रतिमान का अनुगमन करती है। 

2. विकास की अलग अलग गति का सिद्धांत 

यद्यपि मानव जाति के विकास के प्रतिमानों में समानता है, लेकिन विकास की गति में भिन्नता होती है। डगलस तथा हालैंड के अनुसार भिन्न भिन्न व्यक्तियों के विकास की गति में भिन्नता विकास के पूरे समय में यथावत रहती है। जैसे जैसे जन्म के समय लंबा, बड़ा होने पर भी लंबा ही होता तथा छोटे कद का बालक प्रायः छोटे कद का ही होता है।

3.सामान्य से विशिष्ट प्रतिक्रियाओं का सिद्धांत 

शिशु की क्रियाएं वा प्रतिक्रिया सामान्य से प्रारंभ से होकर विशिष्ट की ओर होती हैं। बालक प्रारंभ में संपूर्ण शरीर को हिलाना ढुलाना करता है, बाद में हाथ पैरों की उंगलियों को व संवेगों का प्रकटीकरण करता है। पहले यह माना जाता था कि शिशु विशिष्ट क्रियाएं पहले करता है उसके बाद सामान्य क्रियाएं करता है। किंतु मनोविज्ञान के क्षेत्र में हुए अनुसंधानों से ज्ञात हुआ है कि सभी प्रकार के विकास पहले सामान्य रूप से होता है। कागहिल के अनुसार शिशु का पहले सिर और देह का मुख्य भाग संचलन करता है और बाद में हाथ पैरों की उंगलियों का संचालन करता है। 

4.सामान्य विकास का सिद्धांत 

विकास के इस सिद्धांत के अनुसार जाति, जनजाति, भौगोलिक स्थिति, पर्यावरण इत्यादि के आधार पर व्यक्ति में विकास की दृष्टि से समानता पाई जाती है। विकास की गति में भिन्नता होते हुए भी समानता होती है। 

5.वंशानुक्रम तथा वातावरण को अंतः क्रियाओं का सिद्धांत 

इस स्थिति के अनुसार बालक का विकास वंशानुक्रम तथा वातावरण की अंतः क्रिया का परिणाम है। शिशु की क्षमताएं वंशानुक्रम से और उनका विकास वातावरण से निश्चित होता है। सिकनर के अनुसार वंशानुक्रम उन सीमाओं का निर्धारण करता है जिसके आगे बालक का विकास उसके वंशानुक्रम और वातावरण की अंतः क्रिया पर निर्भर करता है।

Safalta App पर फ्री मॉक-टेस्ट Join Now  के साथ किसी भी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करें।

Related Article

Exploring Graphic Design: Courses, Skills, Salary, and Career Paths

Read More

Graphic Design : टॉप 10 ग्राफिक डिजाइन कॅरिअर, सैलरी और वैकेंसी, जानें यहां

Read More

Debunking Common Myths About Digital Literacy

Read More

The Top 100 SaaS Companies to Know In 2024

Read More

Digital marketing course in Coimbatore

Read More

Optimising Performance: Best Practices for Speeding Up Your Code

Read More

How Many Sector push may create Lakhs jobs in five years

Read More

रायबरेली में सफलता का डिजिटल मार्केटिंग कोर्स मचा रहा धूम, सैकड़ों युवाओं को मिली नौकरी

Read More

Online Marketing : The Who, What, Why and How of Digital Marketing

Read More