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शास्त्रीय नृत्य
जब नृत्य के माध्यम से भाव, भंगिमा तथा अंग विन्यास के द्वारा किसी विषय अथवा किसी पौराणिक कहानी का चित्रण किया जाता है तो वह शास्त्रीय नृत्य कहलाता है. शास्त्रीय नृत्य में 9 प्रकार के रस होते हैं जिन्हें भावों और भंगिमाओं के द्वारा व्यक्त किया जाता है. श्रृंगार रस, रौद्र रस, वीर रस, हास्य रस, करुण रस, वीभत्स रस, सौम्य रस, भयानक रस और विस्मय रस.भारत में नृत्य की सांस्कृतिक परंपरा
भारत में नृत्य एक प्राचीन और प्रसिद्ध परंपरा है, जो भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अंग भी है. यदि हम इंडियन क्लासिकल डांस या भारत के शास्त्रीय नृत्य की बात करें तो भारत में इस प्रकार के नृत्य के आठ रूप हैं जिन्हें संगीत नाटक अकादमी द्वारा मान्यता प्राप्त है और इन्हें भारतीय शास्त्रीय नृत्य कहा जाता है. ये हैं - भरतनाट्यम, कथक, कथकली, कुचिपुड़ी, ओडिसी और मणिपुरी, मोहिनीअट्टम और सात्रिया. तो आइए विस्तार से जानते हैं इन इंडियन क्लासिकल डांस या शास्त्रीय नृत्य के बारे में -1. भरतनाट्यम (तमिलनाडु) –
भरतनाट्यम भारत के प्रमुख शास्त्रीय नृत्य में से एक है. यह नृत्य ताल, राग और भावों का सम्मिश्रण है. इस शास्त्रीय नृत्य का जन्म दक्षिण भारत में तमिलनाडु के प्राचीनतम मंदिरों में देवदासियों के द्वारा हुआ था. भरतनाट्यम नृत्य की उत्पत्ति 1000 ईसा पूर्व की मानी जाती है. बाद में जब कलापारखी लोगों ने इस नृत्य की विधिवत शिक्षा लेकर देश विदेशों में इसकी प्रस्तुति दी तो इसे पूरी दुनिया में अपार प्रशंसा मिली. आज इस नृत्य को पूरे भारत में सबसे सम्मानित कला तथा एक प्रतिष्ठा का विषय माना जाता है. इस नृत्य में नाट्यभावों यानि मुद्रा के साथ नर्तक या नृत्यांगनाओं का अभिनय कौशल भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है.भरतनाट्यम शास्त्रीय नृत्य के कुछ प्रसिद्द कलाकार जिन्हें पूरी दुनिया में अपार प्रसिद्धि मिली -
मल्लिका साराभाई, सोनल मानसिंह, पद्मा सुब्रह्मण्यम, यामिनी कृष्णमूर्ति आदि.
2. कथक (उत्तरप्रदेश) –
जैसा कि नाम से हीं स्पष्ट है कत्थक या कथक यानि कथा. किसी कथा के साथ राग, भावों और तालों की अभिव्यक्ति. प्रारम्भ में यह नृत्य भी अन्य भारतीय शास्त्रीय नृत्यों की भांति मन्दिर में देवताओं के समक्ष प्रस्तुत किया जाता था परन्तु भारत में मुगलों के आगमन के बाद यह नृत्य दरबारों में भी पहुँच गया और इस प्रकार इस नृत्य में धर्म की अपेक्षा सौन्दर्य पर अधिक जोर दिया जाने लगा. हालाँकि इस नृत्य के श्रृंगारिकता की शैली प्राचीन होती है. कत्थक नृत्य अपने चक्करों और भारी संख्या में नर्तक द्वारा पहने गए घुंघरुओं के कारण बेहद हीं खूबसूरत लगता है. उत्तरप्रदेश के इस इंडियन क्लासिकल डांस का अलग अलग घराना है जो अपने शिष्यों को इस नृत्य की विशिष्ट शिक्षा देते हैं. जयपुर घराना, बनारस घराना लखनऊ घराना, रायगढ़ घराना इत्यादि इसके प्रमुख घराने हैं. इस शास्त्रीय नृत्य के कुछ प्रसिद्द कलाकार जिन्हें पूरी दुनिया में अपार प्रसिद्धि मिली निम्नलिखित हैं -सितारा देवी, पंडित बिरजू महाराज, शोभना नारायण, पंडित लच्छू महाराज आदि.
3. कथकली (केरल) –
कथकली भारत का प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्य है. माना जाता है कि इस नृत्य की उत्पत्ति दक्षिण भारत के राज्य केरल में आज से पंद्रह सौ साल पहले हुई थी. भरतनाट्यम और कत्थक की तरह, कथकली का आरम्भ भी मंदिरों में हुआ. एक एक धार्मिक शास्त्रीय नृत्य है जिसमें पुराणों, शैव परंपराओं की कहानियों और रामायण आदि के विषयों पर नृत्य किया जाता है. इस नृत्य में कलाकार संगीत की ताल पर मूक अभिनय करता है. यह नृत्य पारंपरिक रूप से पुरुषों के द्वारा हीं किया जाता है. इसमें महिला किरदार की भूमिका भी पुरुष हीं निभाते हैं. इसमें चेहरे पर मुखौटा लगा कर नृत्य किया जाता है. इस नृत्य की वेशभूषा और श्रृंगार काफी आकर्षक होता है. इस शास्त्रीय नृत्य के कुछ प्रसिद्द कलाकार जिन्हें पूरी दुनिया में अपार प्रसिद्धि मिली -कलामंडलम केसवन नंबूदरी, कलामंडलम गोपालकृष्णन, उदय शंकर, कलामंडलम कृष्णप्रसाद आदि हैं.
4. कुचिपुड़ी (आंध्र प्रदेश) -
कुचिपुड़ी आंध्र प्रदेश की एक नृत्य शैली है, जिसमें कर्नाटक शास्त्रीय संगीत पर नृत्य किया जाता है. नृत्य की यह शैली भारत में शास्त्रीय नृत्य का सबसे कठिन रूप है. अन्य भारतीय शास्त्रीय नृत्यों की तरह इस नृत्य का जन्म भी मंदिरों में हुआ. इसे केवल एक नृत्य नहीं बल्कि भगवान को समर्पित एक पूरी धार्मिक प्रक्रिया के रूप में माना जाता है. इसमें पवित्र जल छिड़कने, अगरबत्ती जलाने और भगवान से प्रार्थना करने जैसे कुछ अनुष्ठान भी शामिल होते हैं. चूँकि कुचिपुड़ी में कलाकार द्वारा गायन और नृत्य दोनों किया जाता है इसलिए जाहिर है कि इस नृत्य में भारत में किसी भी अन्य कला की तुलना में अधिक कौशल तथा समर्पण की जरुरत होती है. प्राचीन काल में कुचीपुड़ी केवल मंदिरों में पुरुष नर्तकों के द्वारा प्रस्तुत किया जाता था. ख़ास कर ब्राह्मण पुरुषों के द्वारा. समय के अंतराल के साथ साथ, यह महिलाओं के द्वारा भी किया जाने लगा. वर्तमान में यह ज्यादातर महिला नृत्यांगनाओं के द्वारा हीं प्रस्तुत किया जाता है.इस नृत्य शैली के प्रमुख नर्तकों में कौशल्या रेड्डी, भावना रेड्डी, यामिनी रेड्डी, राजा-राधा रेड्डी, वैजयंती काशी, वेम्पत्ति चेन्नासत्यम आदि शामिल हैं.
5. ओडिसी (ओडिशा) –
ओडिशा के इस नृत्य को पुरातात्त्विक साक्ष्यों के आधार पर सबसे पुराने शास्त्रीय नृत्य में से एक माना जाता है. ओडिसी नृत्य का उल्लेख ब्रह्मेश्वर मंदिर के शिलालेखों में मिलता है. कोणार्क के सूर्य मंदिर के केन्द्रीय कक्ष में भी इस नृत्य का उल्लेख मिलता है. ओडिसी नृत्य परंपरा का जन्म भी अन्य शास्त्रीय नृत्यों की तरह मंदिर में नृत्य करने वाली देवदासियों के नृत्य से हुआ. इसकी अधिकाशं मुद्राएँ भी भारत के प्राचीन मंदिरों से संबंधित मूर्तियों से प्रेरित मालूम होती है. इस नृत्य में शिव और सूर्य आदि हिंदू देवताओं की पौराणिक कथाओं को अभिव्यक्त किया जाता है. यह प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्य ज्यादातर महिला नर्तकियों के द्वारा किया जाता है. ओडिसी नृत्य की मुद्राएँ और अभिव्यक्तियाँ भरतनाट्यम् से काफी हद तक मिलती-जुलती हैं.ओडिसी नृत्य में भगवान कृष्ण की कथाओं को आधार बना कर नृत्य किया जाता हैं. इस नृत्य में प्रयुक्त होने वाले छंद् संस्कृत नाटक गीतगोविंदम् से लिए गए हैं. ओडिसी नृत्य शैली के प्रमुख नर्तकों और नृत्यांगनाओं में संयुक्ता पाणिग्राही, कुमकुम मोहंती, गंगाधर प्रधान, केलुचरण महापात्रा, माधवी मुदगल, रामिल इब्राहिम, प्रियम्वदा मोहंती, डी एन पटनायक आदि शामिल हैं.
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6. मणिपुरी (मणिपुर) -
मणिपुरी भारत के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर का शास्त्रीय नृत्य है. इस नृत्य की जड़ें मूलतः राज्य की लोक परंपराओं और रीति-रिवाजों से जुड़ी हुई हैं. यह भारत का एक प्रमुख शास्त्रीय नृत्य है. इस शास्त्रीय नृत्य में हिंदू तथा मणिपुरी देवताओं की कहानी, राधा-कृष्ण के प्रेम, विष्णु पुराण, भागवत पुराण तथा गीत गोविंदम् आदि से लिए गए विषय वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है. नृत्य में इन विषयों को बड़े हीं कोमल हाव भावों के साथ व्यक्त किया जाता है. नृत्य का मुख्य विषय रासलीला होता है. इस नृत्य को पारंपरिक मणिपुरी वेशभूषा और श्रृंगार करके नाजुक भंगिमाओं के साथ प्रस्तुत किया जाता है. यह नृत्य लय, ताल और राग का अद्भुत संगम बिखेरता है. अन्य शास्त्रीय नृत्यों की अपेक्षा मणिपुरी नृत्य भिन्न है क्योंकि इसकी खासियत है कि इसमें घुघरू नहीं पहने जाते हैं.मणिपुरी नृत्य की शैलियाँ -
नाटा-संकीर्तन, पुंग चोलम, रास, करतल चोलम, ढोला चोलम आदि मणिपुरी नृत्य की कुछ प्रमुख शैलियाँ हैं.
मणिपुरी नृत्य शैली के प्रमुख नर्तकों और नृत्यांगनाओं में झावेरी बहनें, चारू माथुर, कलावती देवी, नल कुमार सिंह आदि शामिल हैं.
7. मोहिनीअट्टम (केरल) -
यह नृत्य भगवान् विष्णु के मोहिनी अवतार प्रसंग से सम्बन्धित है इसलिए इसे मोहिनीअट्टम कहा जाता है. इस नृत्य की उत्पत्ति भी केरल में प्राचीन मंदिरों में हुई थी. मोहिनीअट्टम में भरतनाट्यम और कथकली दोनों नाट्य शैलियों का समावेश देखने को मिलता है. इस नृत्य में लास्य यानि कोमल मुद्राओं का प्रयोग होता है. इसमें नृत्य का एकल प्रस्तुतिकरण होता है. यह नृत्य शैली बहुत कठिन मानी जाती है. और इसे महिला कलाकार द्वारा प्रस्तुत किया जाता है.इस नृत्य शैली के प्रमुख कलाकारों में हेमा मालिनी, श्रीदेवी, के.कल्याणी अम्मा तंकमणि, काला देवी आदि शामिल हैं.
8. सात्रिया (असम) -
भगवान् कृष्ण की लीलाओं पर आधारित इस नाट्य शैली का जन्म मठों में हुआ. यह असम का लोकप्रिय शास्त्रीय नृत्य है. इस नृत्य में मुख्य कलाकार गाते और कहानियां सुनते हुए अभिनय करता है तथा नृत्त्यांगनाओं का समूह साथ में नृत्य करती हुई झांझ (एक प्रकार का वाद्य) बजाती हैं. भगवान् राम भी इस नृत्य के एक प्रमुख विषय होते हैं. संगीत नाटक अकादमी द्वारा इस नाट्य शैली को 15 नवम्बर 2000 को शास्त्रीय नृत्य की श्रृखला में शामिल किया गया था.इस नृत्य शैली के प्रमुख कलाकारों में मनिराम डटा मुक्तियार बरबयान, इन्दिरा बी पी बोरा, प्रदीप चलिहा, घनकंता बोरा बरबयान आदि शामिल हैं.