Source: Safalta
| March Month Current Affairs Magazine- DOWNLOAD NOW |
चीन की वन चाइना पॉलिसी को ऐसे भी समझ सकते हैं कि, चीन पर साल 1911 से 1949 के बीच रिपब्लिक ऑफ़ चाइना यानी ROC का कब्ज़ा था, जबकि अब उसके पास ताइवान और अन्य कुछ द्वीप समूह हैं. इसे आम बोलचाल में ताइवान कहा जाता है. जबकि पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना यानी PRC साल 1949 में अस्तित्व में आया था. इसे आम तौर पर चीन कहा जाता है. इसके अंतर्गत मेनलैंड चीन और हांगकांग-मकाऊ जैसे दो क्षेत्र आते हैं. ये विशेष रूप से प्रशासित क्षेत्र हैं. चीन का मानना है कि चीन एक सम्पूर्ण राष्ट्र है और ताइवान उसी का एक हिस्सा है जिस तरह हांगकांग और मकाऊ, चीन के अधिकार क्षेत्र में आते हैं वैसे हीं ताइवान भी आता है. यही कारण है कि दुनिया के अधिकतर देश ताइवान को मान्यता नहीं देते हैं, जबकि ताइवान खुद को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित करता है और चीन की वन चाइना पॉलिसी को नहीं मानता.
इस प्रकार वन चाइना पॉलिसी का तात्पर्य चीन की एक ऐसी नीति से है, जिसके अनुसार 'चीन' केवल एक ही राष्ट्र है जिसमें ताइवान शामिल है. कहने का मतलब कि ताइवान कोई अलग देश नहीं है बल्कि यह चीन का हीं एक प्रांत है, एक हिस्सा है.
ताइवान पिछले कई सालों से भारत के साथ एक डील को अंतिम रूप देने की कोशिश कर रहा था. परन्तु चीन की ‘वन चाइना पॉलिसी’ के की वजह से भारत की ओर से यह डील संभव नहीं हो पा रही थी. वैसे अब भारत की ओर से भी इसको लेकर सकारात्मक संकेत मिलने शुरू हो गए हैं. जबकि उधर चीन ने भारत द्वारा ताइवान के साथ अलग से किसी भी ट्रेड डील पर आपत्ति शुरू कर दी है. चीन का यह कहना है कि भारत को चीन के ‘वन चाइना पॉलिसी’ का ध्यान रखना चाहिए.
Free Daily Current Affair Quiz-Attempt Now
Hindi Vyakaran E-Book-Download Now
Polity E-Book-Download Now
Sports E-book-Download Now
Science E-book-Download Now
‘वन चाइना पॉलिसी’ विवाद - (One China Policy)
आइए इस विवाद के कारण को समझने के लिए हम इतिहास में चलते हैं. साल 1644 में चीन में चिंग वंश सत्ता में आया था और उसने चीन का एकीकरण किया था. इसके बाद जब 1911 में चिन्हाय क्रांति हुई तो चिंग वंश को सत्ता से हटना पड़ा था. इसके बाद चीन में कॉमिंगतांग की सरकार बनी थी. चिंग वंश के अधीन चीन के जितने भी इलाके थे, वे सब अब कॉमिंगतांग सरकार को चले गए. इसी कॉमिंगतांग सरकार के शासन के दौरान चीन का आधिकारिक नाम ''रिपब्लिक ऑफ चाइना'' कर दिया गया था.इसके बाद साल 1949 में माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्टों ने चियांग काई शेक के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कॉमिंगतांग पार्टी के खिलाफ विद्रोह कर दिया और चीन में गृह युद्ध की शुरुआत हो गई. इस गृह युद्ध में अन्ततः कॉमिंगतांग पार्टी कम्युनिस्टों से हार गई. हार के बाद कॉमिंगतांग ने ताइवान में जाकर अपनी अलग सरकार बनाई और फिर यहीं से दो राजनीतिक इकाइयां अस्तित्व में आ गईं और ये दोनों हीं अपनी अपनी तरफ से आधिकारिक चीन होने का दावा करने लगीं.
जानें एक्सिस और सेंट्रल पॉवर्स क्या है व इनमें क्या अंतर हैं
जानें प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक इतिहास के बीच क्या है अंतर
नरम दल और गरम दल क्या है? डालें इतिहास के पन्नों पर एक नजर
‘वन चाइना पॉलिसी’ और भारत का दृष्टिकोण-
भारत की विदेश नीति पर अगर नजर डालें तो हम पाते हैं कि पिछले कुछ सालों में भारत चीन की ‘One China Policy’ के समर्थन में दिखाई देता है. चीन के तमाम पड़ोसियों की सोच भी कमोवेश यही कहती है. वैसे देखा जाए तो भारत-चीन द्विपक्षीय रिश्तों में कई बार रुकावटें भी आई जैसे कि विवादित सीमाओं पर चीन द्वारा भारत में घुसपैठ की कोशिश, पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद को चीन द्वारा शह देना, दलाई लामा की अरुणाचल प्रदेश की यात्रा इत्यादि. देखा जाए तो बीते कुछ समय से भारत चीन के बीच जिस तरीके से सीमा विवाद बढ़ा है. ऐसी स्थिति में, भारत का ताइवान को लेकर कूटनीति खेलना कोई अस्वाभाविक घटना नहीं कही जा सकती.भारत चीन को एक हीं संकेत देता आ रहा है कि यदि उसे (चीन) को अपनी ‘वन चाइना पॉलिसी’ पर भारत की स्वीकृति चाहिये तो चीन को कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश के ऊपर भारतीय संप्रभुता को स्वीकार करना हीं होगा. चीन अपने देश में ‘वन चाइना पॉलिसी’ लागू करने जा रही है जिसके अंतर्गत चीन ताइवान को अपने देश का हिस्सा मानता है. चीन कहता है कि वह एक राष्ट्र है और ताइवान उसी का एक भाग है. यही वह बात है जो चीन और ताइवान के बीच लगातार तनाव का कारण बनी हुई है.
बाबरी मस्जिद की समयरेखा- बनने से लेकर विध्वंस तक, राम जन्मभूमि के बारे में सब कुछ
जाने क्या था खिलाफ़त आन्दोलन – कारण और परिणाम
2021 का ग्रेट रेसिग्नेशन क्या है और ऐसा क्यों हुआ, कारण और परिणाम