Raja Ram Mohan Roy and Brahmo Samaj: जानिए राजा राम मोहन रॉय और ब्रह्म समाज के बारे में

Safalta Experts Published by: Nikesh Kumar Updated Tue, 22 Mar 2022 10:41 AM IST

राजा राम मोहन राय एक महान विद्वान, समाज सुधारक और एक स्वतंत्र विचारक थे. उन्होंने ब्रह्म समाज की स्थापना की थी जो कि पहले भारतीय सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलनों में से एक था. उन्हें 'आधुनिक भारत के पिता' या 'बंगाल पुनर्जागरण के पिता' के रूप में जाना जाता है. 'भारत में आधुनिक युग के प्रतिष्ठापक' शीर्षक के अपने संबोधन में, टैगोर ने राजा राम मोहन राय को 'भारतीय इतिहास के आकाश में एक चमकदार सितारा' कहा था. यदि आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और विशेषज्ञ मार्गदर्शन की तलाश कर रहे हैं, तो आप हमारे जनरल अवेयरनेस ई बुक डाउनलोड कर सकते हैं  FREE GK EBook- Download Now.

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राजा राम मोहन राय (1772-1833) - के जीवन के बारे में कुछ मुख्य तथ्य-

राजा राम मोहन राय का जन्म मई 1772 में बंगाल प्रेसीडेंसी में, हुगली जिले के अंतर्गत, राधानगर नामक स्थान पर एक रूढ़िवादी बंगाली हिंदू परिवार में हुआ था. शिक्षा - उनकी शिक्षा दीक्षा वाराणसी में हुई जहाँ उन्होंने वेदों, उपनिषदों और हिंदू दर्शन का गहन अध्ययन किया. बाद में राजा राम मोहन राय को उच्च अध्ययन के लिए पटना भेजा गया जहाँ पर उन्होंने फारसी और अरबी का अध्ययन किया. राजा राम मोहन राय ने कुरान, प्लेटो, अरस्तू और कई सूफी रहस्यवादी कवियों के कार्यों को पढ़ा तथा इस्लाम, क्रिश्चियन एवं यहूदी धर्मों का गहन अध्ययन किया. पंद्रह वर्ष की आयु तक, राजा राम मोहन राय ने बांग्ला, फारसी, अरबी और संस्कृत भाषाएँ सीख ली थी. यही नहीं उन्होंने अंग्रेजी, ग्रीक और हिब्रू भाषाएँ भी सीखी. फ्रेंच और लैटिन भाषा के अलावा वह हिंदी और अंग्रेजी भाषा के भी अच्छे जानकार थे. मात्र सोलह वर्ष की आयु में, उन्होंने हिंदू मूर्ति पूजा के विरुद्ध एक तर्कसंगत आलोचना लिखी थी. राजा राम मोहन राय ने संस्कृत, हिंदी, बंगाली, पारसी और अंग्रेजी भाषा में अनेक पुस्तकें लिखी हैं. राजा राम मोहन राय समाचार पत्र भी निकालते थे जिनमें दो समाचारपत्र पारसी भाषा में तथा एक बंगाली भाषा में निकलते थे.

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वर्ष 1809 से वर्ष 1814 तक, उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी के राजस्व विभाग में अपनी सेवाएं दी. इसके अलावा वुडफोर्ड और जॉन डिग्बी के लिए एक व्यक्तिगत दीवान के रूप में भी उन्होंने काम किया था. वर्ष 1814 से उन्होंने अपना जीवन धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक सुधारों के लिए समर्पित कर दिया. राजा राम मोहन राय ने मुगल बादशाह अकबर शाह द्वितीय (बहादुर शाह के पिता) के राजदूत के रूप में इंग्लैंड का दौरा किया था. वहीँ पर एक बीमारी से सितंबर सन 1833 में ब्रिस्टल, इंग्लैंड में उनका निधन हो गया. राजा राम मोहन राय को 'राजा' की उपाधि दिल्ली के मुगल सम्राट अकबर द्वितीय ने प्रदान किया था. जिनकी शिकायतों को उन्होंने ब्रिटिश राजा के सामने प्रस्तुत किया था.

राजा राम मोहन रॉय और ब्रह्म समाज-

  • राजा राम मोहन राय ने सन 1828 में, ब्रह्म समाज की स्थापना की थी.
  • ब्रह्म समाज का मुख्य उद्देश्य सनातन शाश्वत अनादि शक्ति की उपासना करना था. यह समाज पुरोहिती, कर्मकांडों और बलि प्रथाओं जैसे अंधविश्वासों के विरुद्ध था. ब्रह्म समाज प्रार्थना, ध्यान, मेडिटेशन और शास्त्रों के अध्ययन पर बल देता था. ब्रह्म समाज की शुरुआत मूल रूप से धार्मिक पाखंडों को बेनकाब करने के लिए की गई थी.
  • यह आधुनिक भारत का पहला बौद्धिक सुधार आंदोलन था जहां पर सभी सामाजिक बुराइयों की निंदा की गई और उन्हें समाज से दूर करने के प्रयास किए गए.
  • इससे भारत में तर्कवाद और ज्ञानोदय का उदय हुआ जिसने परोक्ष रूप से राष्ट्रवादी आंदोलन में योगदान दिया.
  • ब्रह्म समाज सभी धर्मों की एकता में विश्वास करता था.
  • ब्रह्म समाज के प्रमुख नेता देबेंद्रनाथ टैगोर (रवींद्र नाथ टैगोर के पिता), केशुब चंद्र सेन, पंडित शिवनाथ शास्त्री, और रवींद्रनाथ टैगोर थे.
  • बाद में 1866 में, ब्रह्म सभा को दो भागों में विभाजित कर दिया गया. पहला केशुब चंद्र सेन के नेतृत्व वाला ब्रह्म समाज और दूसरा देवेंद्रनाथ टैगोर के नेतृत्व वाला ब्रह्म समाज.
  • राजा राम मोहन राय और उनके ब्रह्म समाज ने उस समय के समाज में व्याप्त ज्वलंत मुद्दों के प्रति भारतीय समाज को जागृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
  • यह आधुनिक भारत के सभी सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक आंदोलनों का अग्रदूत था.
  • 1803 में प्रकाशित राजा राम मोहन राय की पहली प्रकाशित कृति तुहफत-उल-मुवाहहिद्दीन (देवताओं के लिए एक उपहार) में तर्कहीन धार्मिक मान्यताओं को उजागर किया गया है.
  • उन्होंने भविष्यवक्ताओं, चमत्कारों, रहस्योद्घाटन आदि में विश्वास तथा मूर्तिपूजा और हिंदुओं की भ्रष्ट प्रथाओं का विरोध किया.
  • वह हिंदू धर्म के कथित बहुदेववाद के खिलाफ थे. वे शास्त्रों में दिए गए एकेश्वरवाद का समर्थन करते थे.
  • 1814 में, उन्होंने मूर्तिपूजा, जातिगत कठोरता, अर्थहीन कर्मकांडों और अन्य सामाजिक बुराइयों के खिलाफ अभियान चलाने के लिए कलकत्ता में आत्मीय सभा की स्थापना की थी.
  • उन्होंने ईसाई धर्म के कर्मकांड की भी आलोचना की और ईसा को ईश्वर के अवतार के रूप में खारिज कर दिया.
  • उन्होंने वेदों और पांच उपनिषदों का बंगाली भाषा में अनुवाद किया था.
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ब्रह्म समाज और राजा राम मोहन राय की विचारधारा-

  • राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा को मानवीय और सामाजिक भावना के उल्लंघन के रूप में तथा मनुष्य जाति के नैतिक पतन के लक्षण के रूप में चित्रित किया.
  • उन्होंने जोर देकर कहा था कि हिंदू समाज तब तक प्रगति नहीं कर सकता जब तक महिलाओं को अमानवीय उत्पीड़न जैसे कि, सती प्रथा, पर्दा प्रथा, बाल विवाह, अशिक्षा आदि कुप्रथाओं से मुक्त नहीं कर दिया जाता.
  • राजा राम मोहन राय का कहना था कि बलिदान और कर्मकांड लोगों के पापों की भरपाई नहीं कर सकते. यह आत्म-शुद्धि और पश्चाताप के माध्यम से हीं संभव है.
  • वे उस समय के बंगाल की धार्मिक और सामाजिक स्थितियों के पतन से वे दुखी थे.
  • वह जाति व्यवस्था के प्रबल विरोधी थे और सभी मनुष्यों की सामाजिक समानता में विश्वास करते थे.
  • राम मोहन राय इस्लामी एकेश्वरवाद के प्रति आकर्षित थे. उनका मानना था कि एकेश्वरवाद मानवता के लिए एक अच्छी सोच है. उन्होंने कहा कि एकेश्वरवाद भी वेदांत का मूल संदेश है.
  • उनका वैचारिक समर्थन एकल, एकात्मक ईश्वर के प्रति था. न कि रूढ़िवादी हिंदू धर्म के बहुदेववाद और ईसाई त्रित्ववाद के प्रति.
  • उन्होंने तर्कवाद, आधुनिक विचारों तथा पश्चिम के आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर जोर दिया.

राजा राम मोहन राय द्वारा आर्थिक और राजनीतिक योगदान-

राजा राम मोहन राय ब्रिटिश संवैधानिक शासन प्रणाली के तहत लोगों को दी जाने वाली नागरिक स्वतंत्रता से प्रभावित थे और इस कार्य की प्रशंसा करते थे. वह सरकार की इस प्रणाली के लाभों को भारतीय नागरिकों तक पहुंचाना चाहते थे.
 
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करों के लिए सुधार-
  • वे बंगाली जमींदारों की दमनकारी प्रथाओं की निंदा करते थे.
  • उन्होंने न्यूनतम रेंट निर्धारित करने की मांग की थी.
  • उन्होंने विदेशों में भारतीय सामानों पर एक्सपोर्ट ड्यूटी (निर्यात शुल्क) को कम करने, करों को समाप्त करने तथा कर-मुक्त भूमि की मांग का आह्वान किया.
  • उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापारिक अधिकारों के उन्मूलन के लिए भी आवाज उठाई.
प्रेस की स्वतंत्रता-

राजा राम मोहन राय ने ब्रिटिश सरकार की अन्यायपूर्ण नीतियों के खिलाफ विशेषकर प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध के खिलाफ आवाज उठाई. अपने लेखन और गतिविधियों के माध्यम से, उन्होंने भारत में स्वतंत्र प्रेस के आंदोलन का समर्थन किया. सन 1819 में जब लॉर्ड हेस्टिंग्स द्वारा प्रेस सेंसरशिप में ढील दी गई, तो राम मोहन ने तीन जर्नल्स की शुरुआत की -
*द ब्राह्मणिकल मैगज़ीन (1821)
*बंगाली साप्ताहिक, संवाद कौमुदी (1821) और
*फारसी साप्ताहिक, मिरात-उल-अकबर.

प्रशासनिक सुधार-

राजा राम मोहन राय ने भारतीयों और यूरोपीय लोगों के बीच समानता की मांग की थी. वह ब्रिटिश के बेहतर सेवाओं का भारतीयकरण और न्यायपालिका से कार्यपालिका को अलग करना चाहते थे.

राजा राम मोहन राय द्वारा शैक्षणिक योगदान-
  • राजा राम मोहन राय ने भारतीयों को अंग्रेजी भाषा में वेस्टर्न साइंटिफिक एजुकेशन में शिक्षित करने के लिए कई स्कूल शुरू किए.
  • उनका यह मानना था कि अंग्रेजी भाषा की शिक्षा पारंपरिक भारतीय शिक्षा प्रणाली से बेहतर है.
  • राजा राम मोहन राय ने सन 1817 में हिंदू कॉलेज खोलने के डेविड हरे के प्रयासों का समर्थन किया. जबकि रॉय के अंग्रेजी स्कूल में मैकेनिक्स (यांत्रिकी) और वोल्टेयर का फिलोसोफी पढ़ाया जाता था.
  • 1822 में उन्होंने अंग्रेजी शिक्षा पर आधारित एक स्कूल की स्थापना की.
  • 1825 में, राजा राम मोहन राय ने वेदांत कॉलेज की स्थापना की, जहां भारतीय शिक्षा और पश्चिमी सामाजिक और भौतिक विज्ञान दोनों हीं पाठ्यक्रमों को पढाया जाता था.
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