जैन धर्म
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जैन धर्म का संस्थापक “सम्राट भारती” के पिता ऋषभ को माना गया है।
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ऋषभदेव एंव अरिष्नेमि (भगवान कृष्ण का सम्बन्धी) का उल्लेख ऋग्वेद में है।
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श्वेताम्बर सम्प्रदाय के अनुसर 19वें जैन तीर्थंकर मल्लिनाथ स्त्री थी।
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अश्वसेन (काशी नरेश) के पुत्र पार्श्वनाथ जैन धर्म के 23 वे तीर्थकर थे।
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पार्श्वनाथ ने 4 महाव्रतों का प्रतिपादन किया था- 1. अहिंसा 2.सत् 3. अपरिग्रह 4. अस्तेय
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पार्श्वनाथ के अनुयायियों को निर्ग्रन्थ कहा जाता था।
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महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें एवं अन्तिम तीर्थकर थे।
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महावीर का जन्म 540ई.प. में कुण्डग्राम (वैशाली) में हुआ था। उनके पिता सिद्धार्थ 'ज्ञातृक' क्षत्रियों के संघ के सरदार थे और माता त्रिशला (विदेहदत्ता) लिच्छवी राजा चेटक की बहन थी।
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12 वर्ष की कठिन तपस्या के बाद महावीर को जृम्भिक ग्राम के समीप ऋजुपालिका नदी के तट पर साल वृक्ष के नीचे संपूर्ण ज्ञान का बोध हुआ। एंव अर्हत (पुज्य) और निर्ग्रन्थ (बंधनहीन) कहलाए।
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कैवल्य की प्राप्ति के पश्यात् उन्हें कई नामों से जाना जाने लगा तथा : कैवलिक जिन (विजेता), निर्ग्रन्थ (बन्धन रहित), महावीर, अर्हत (योग्य ) आदि ।
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लगभग 72 वर्ष की आयु में 468 ई पू में महावीर स्वामी की राजग्रह के समीप पावापुरी में मृत्यु हो गई ।
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मौर्य काल में जैन धर्म दो पंथो में बैटा - श्वेतामबर एंव दिगम्बर। श्वेतामबर पंथ को मानने वाले श्वेत वस्त्र धारण करते हैं। दिगम्बर पंथ मानने वाले वस्त्र का परित्याग करते हैं।
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पंच महाव्रत-अहिंसा, अमृषा (सत्य), अपरिग्रह , अस्तेय व ब्रहाचर्य (इसे महावीर स्वामी द्वारा जोड़ा गया।
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त्रिरत्न - सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञन, सम्यक् आचरण।
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कालान्तर में जैन धर्म दो संप्रदायों दिगम्बर और श्वेतांबर में विभाजित हो गया।
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श्वेत वस्त्र धारण करने वाले श्वेतांबर तथा नग्न रहने वाले दिगम्बर कहलाते थे।
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पूर्व जन्म के कर्मफल को सम्पत करने एंव वर्तमान जन्म के कर्मफल से बचने हेतू महावीर ने त्रिरत्त का सिध्दान्त दिया।
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जैन धर्म के त्रिरत्न हैं-
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सम्यक् ज्ञन: जैन धर्म के सिध्दान्तो का ज्ञान ही सम्यक् ज्ञन है।
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सम्यक् दर्शन: जैन तीर्थकरो के उपदेशों में ढृढ़ विशवस् ही सम्यक् दर्शन है
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सम्यक् आचरण:प्राप्त ज्ञान को कार्यरूप में परिणत करना ही सम्यक् आचरण है ।
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प्रमुख जैन तीर्थक एंव उनके प्रतीक
क्र.सं. |
तीर्थक |
प्रतीक |
क्रम |
तीर्थक |
प्रतीक |
प्रथम |
ऋषभ देव |
सांड |
सोलहवें |
शांतिनाथ |
हिरण |
दुसरे |
अजितनाथ |
हाथी |
अठारवें |
अरनाथ |
मत्स्य |
तीसरी |
सम्भवनाथ |
घोड़ा |
अन्नीसवें |
मल्लिनाथ |
कलश |
पाँचवें |
सुमतिनाथ |
सारस |
इक्कीसवें |
नेमिनाथ |
नीलकमल |
सातवें |
संपाश्वनाथ |
स्वास्तिक |
बाइसवें |
अरिष्टनेमी |
शंख |
दसवें |
सीतल |
वृक्ष |
तेइसवें |
पाश्वनाथ |
सर्प |
चौदहवें |
अनन्तनाथ |
बाज |
चौबीसवें |
महावीर स्वामी |
सिंह |
महाजनपदों का उदभव
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छठी शताब्दी ई. पू में भारतवर्ष 16 जन पादों में बंटा हुआ था। इन की जानकारी बौद्ध ग्रंथ अंगित्तर निकाय एंव जैन ग्रंन्थ भगवती सूत्र से मिलती है।
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मगध, वत्स, कोशल एंव अवन्ति सर्वाधिकार शक्तिशाली जनपद थे।
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मगध के दसरे नाम मगधपुर, बृह्दयपुर, वसुमति, कुशाग्रपुर और बिम्बिसासुरी थे।
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महाजनपदों के अस्मक एकमात्रा ऐसा जनपद था जो दक्षिण भारत में स्थित था।
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गंधार एंव कम्बोज के क्षत्रीयों को वार्ताशस्त्रोप जीविनः कहा जाता था।
महाजनपद |
प्रमुख शासक |
राजधानी |
वर्तमान स्थान |
अंग |
ब्रहादत |
चंपा |
भागलपुर, मुंगेर(बिहार) |
मगध |
बिम्बिसार, अजातशत्रु |
गिरिव्रज/ राजगृह |
पटना, गया, शाहाबाद(बिहार) |
काशी |
अजातशत्रु(मगध में मिलाया) |
वाराणसी |
इलाहावाद के आसपास(उ.प्र.) |
वत्स |
उदयन |
कौशाम्बी |
इलाहावाद के आसपास(उ.प्र.) |
वज्जि |
लिच्छवी वंश |
वैशाली |
वैशाली व उत्तरी बिहार |
कोसल |
प्रसेनजित |
श्रीवस्ती/साकेत |
अवध(उ.प्र.) |
अवन्ति |
चन्डप्रघोत |
उत्तरी अवन्ति उज्जैन |
द.प.(मध्य प्रदेश) |
मल्ल |
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पावा/कुशीनगर |
देवरिया (उ.प्र) |
पांचाल |
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अहिच्छत्र, काम्पिल्य |
बरेली, बदायूँ, फर्रुखाबाद(उ.प्र) रुहेलखण्ड |
चेदि |
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शत्किमती/ शौत्थीवती |
बुंदेलखंड(उ.प्र), द.पू. राजस्थान |
कुरु |
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हस्तिनापुर/ इन्द्रप्रस्थ |
आधुनिक दिल्ली, मेरठ एंव हरियाणा के कुछ क्षेत्र |
मत्स्य |
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विराटनगर |
जयपुर, (राजस्थान), भरतपुर, अलवर |
कम्बोज |
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हाटक/रगजपुर |
राजोरी एंव हजारा क्षेत्र (पकिस्तान) |
शूरसेन |
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मथुरा |
ब्रजमण्डल क्षेत्र (उ.प्र) |
अश्मक |
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पोटली/पोतन |
नर्मदा, गोदावरी नदी क्षेत्र(द. भारत) |
गान्धार |
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तक्षशिला |
कश्मीर एंव उ.प्र., पाकिस्तान |