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क्या होता है फ्लोर टेस्ट
- फ्लोर टेस्ट यानि कि विश्वास मत या विश्वास प्रस्ताव. यह सदन में चलने वाली एक ऐसी पारदर्शी प्रक्रिया है, जिससे आधार पर यह फैसला लिया जाता है कि वर्तमान सरकार के पास पर्याप्त बहुमत उपलब्ध है अथवा नहीं ? यानि कार्यपालिका को विधायिका का विश्वास प्राप्त है या नहीं. फ्लोर टेस्ट या विश्वास प्रस्ताव सरकार की ओर से अपना बहुमत और मंत्रिमंडल में सदन का विश्वास स्थापित करने के लिए लाया जाता है.
- सत्ता में मौजूद पार्टी के लिए फ्लोर टेस्ट का सबसे अधिक महत्व होता है क्योंकि सत्ताधारी पार्टी को हीं फ्लोर टेस्ट में अपना बहुमत या अपनी शक्ति को साबित करना पड़ता है.
- फ्लोर टेस्ट को विश्वास मत के अलावा शक्ति परीक्षण भी कहा जाता है.
- जहाँ विपक्ष का काम अविश्वास प्रस्ताव लाना यानि यह साबित करना होता है कि सरकार के पास बहुमत नहीं है यानि वह अल्पमत में है, वहीँ सत्तारूढ़ दल को फ्लोर टेस्ट यानि विश्वास मत के जरिए विधानसभा या लोकसभा में अपना बहुमत साबित करना पड़ता है.
सांसदों का थोक समर्थन आवश्यक
जाहिर है कि बहुमत और अल्पमत साबित करने के लिए सत्तापक्ष और विपक्ष के पास विधायकों या सांसदों का थोक समर्थन होना आवश्यक है, क्योंकि विधायकों और सांसदों की संख्या के आधार पर ही बहुमत या अल्पमत का निर्धारण किया जाता है.| सामान्य हिंदी ई-बुक - फ्री डाउनलोड करें |
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अविश्वास प्रस्ताव
संविधान के अनुसार मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्य के राज्यपाल द्वारा की जाती है. जब सदन में विश्वास-मत हासिल करने के लिए भी विपक्ष की ओर से राज्यपाल या राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्ताव पेश किया जाता है, तो उसे अविश्वास प्रस्ताव कहते हैं.विश्वास प्रस्ताव और अविश्वास प्रस्ताव में फर्क
विश्वास प्रस्ताव सरकार की ओर से अपना बहुमत और मंत्रिमंडल में सदन का विश्वास स्थापित करने के लिए लाया जाता है. अविश्वास प्रस्ताव विपक्ष की ओर से सरकार के खिलाफ लाया जाता है.सदन में अब तक 26 बार अविश्वास प्रस्ताव और 12 बार विश्वास प्रस्ताव पेश किया जा चुका है.
संसद में सबसे ज्यादा 26 बार अविश्वास प्रस्ताव पेश किया जा चुका है. संसद में सबसे ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव इंदिरा गांधी के खिलाफ पेश किया गया है.
साल 1979 में विश्वास प्रस्ताव के पक्ष में ज़रूरी समर्थन न जुटा पाने के कारण तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को इस्तीफा देना पड़ा था. साल 2008 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अमेरिका से हुए न्यूक्लियर डील के बाद सदन में विश्वास मत हासिल किया था.
बहुमत साबित न कर पाने पर देना पड़ता है इस्तीफा
जब किसी एक दल को सदन में बहुमत प्राप्त होता है तो राज्यपाल उस दल के नेता को मुख्यमंत्री नियुक्त करता है. ऐसे में यदि बहुमत पर सवाल उठाया जाता है, तो बहुमत का दावा करने वाले पार्टी के नेता को विश्वास मत देना पड़ता है. सदन में बहुमत साबित करने में विफल रहने पर मुख्यमंत्री को इस्तीफा देना पड़ता है. यह प्रक्रिया संसद और राज्य विधानसभा दोनों जगहों पर होती है.गठबंधन सरकार के भीतर मतभेद की स्थिति में, राज्यपाल मुख्यमंत्री को सदन में बहुमत साबित करने के लिए कह सकता है.
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कंपोजिट फ्लोर टेस्ट क्या है ?
कंपोजिट फ्लोर टेस्ट वह प्रक्रिया है जिसे केवल तभी आयोजित किया जाता है जब एक से अधिक व्यक्ति सरकार बनाने का दावा कर रहे हों. यानि जब बहुमत स्पष्ट नहीं होता है, तो राज्यपाल यह देखने के लिए विशेष सत्र बुला सकता है कि किसके पास बहुमत है.बहुमत की गणना उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों की संख्या के आधार पर की जाती है. यह प्रक्रिया ध्वनि मत के माध्यम से भी किया जा सकता है जहां सदस्य मौखिक रूप से प्रतिक्रिया दे सकता है.
खरीद-फरोख्त की संभावना
फ्लोर टेस्ट में विधायक अनुपस्थित भी हो सकते हैं या मतदान नहीं करने का विकल्प चुन सकते हैं.राज्यपाल अपने विवेक का उपयोग करके मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के चयन में जल्द से जल्द बहुमत साबित करने के लिए भी कह सकता है. क्योंकि कई बार जब फ्लोर टेस्ट में देरी होती है, तो खरीद-फरोख्त की संभावना बन जाती है.