Baikho Festival : जाने बैखो महोत्सव क्यों मनाया जाता है, और इसे कौन लोग मनाते हैं

safalta experts Published by: Chanchal Singh Updated Wed, 08 Jun 2022 06:23 PM IST

Highlights

इस त्योहार में लोग बुरी आत्माओं को दूर भगाने के लिए, समुदाय में सद्भावना लाने और राज्य में फसल के लिए पर्याप्त बारिश के लिए विभिन्न अनुष्ठान एवं पुजा  करते हैं।

Source: Safalta

Baikho Festival : बैखो त्योहार असम राज्य में मनाया जाता है,  असम जिसे पूर्वोत्तर भारत का प्रवेश द्वार कहा जाता है। यह भारत के राभा जनजातियों द्वारा हर साल मनाया जाता है।
असम  भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में स्थित है जिसे भारत का नेचुरल खुबसुरत और नेचुरल व्यू का राज्य है। यह ब्रह्मपुत्र नदी के पार तक फैला हुआ है और हरी-भरी पहाड़ियों से घिरा हुआ है। इस राज्य में बहुत सारे वनस्पति और जीव निवास करते हैं जो यहां की खुबसुरती और मनमोहकता हो बढ़ाते हैं। असम को रेड रिवर और ब्लू हिल्स के रूप में भी जाना जाता है। यह एक केंद्रक है, जो भारत की सुंदर बायो डाईवसिटी को रोकता है।  अगर आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और विशेषज्ञ मार्गदर्शन की तलाश कर रहे हैं, तो आप हमारे जनरल अवेयरनेस ई बुक डाउनलोड कर सकते हैं  FREE GK EBook- Download Now.

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राभास जनजाति क्या है और यह कहां निवास करती है।

राभा एक तिब्बती-बर्मन समुदाय हैं। वे निचले असम में गारो पहाड़ियों और पश्चिम बंगाल के डूअर क्षेत्र में निवास करते हैं। वे राज्य के मैदानी जनजातियों में से हैं। राभास एक कृषि आधारित समुदाय हैं जिनका आय केवल कृषि पर ही निर्भर करता है। बैखो त्योहार उनकी विशिष्ट संस्कृति और उत्सव का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

बैखो महोत्सव के बारे में

असम में राभास जनजाति द्वारा हर साल बैको उत्सव मनाया जाता है। यह शुभ फसल के मौसम में लाने और इसे प्रचुर मात्रा में फसलों और लोगों अच्छे स्वास्थ्य की कामना के लिए मनाया जाता है। यह राज्य में अच्छी फसल का उत्सव है साथ ही यह राभा जनजाति की एक प्राचीन परंपरा और सभ्यता है। यह मुख्य रूप से असम में राभा जनजाति द्वारा ही मनाया जाता है। हालाँकि, अन्य समुदायों के लोग भी इस उत्सव में शामिल होते हैं।

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कैसे मनाया जाता है यह त्यौहार?

इस त्योहार में लोग बुरी आत्माओं को दूर भगाने के लिए, समुदाय में सद्भावना लाने और राज्य में फसल के लिए पर्याप्त बारिश के लिए विभिन्न अनुष्ठान एवं पुजा  करते हैं। दोपहर के समय में राभा लोग अपना पारंपरिक पोशाक पहनकर ढोल बजा कर नाचते हैं। शाम को, वे बांस के बंडलों से बने एक लंबे ढांचे को जलाते हैं। सूर्यास्त के बाद पुजारी फसल के देवता की पूजा करते हैं। प्रार्थना के बाद पुजारी गर्म अंगारों पर दौड़ते हैं, जिन्हें आग से उबाल कर छोड़ दिया जाता है। इस त्यौहार में लोग ऐसा इसलिए करते हैं ताकि वे फसल देवता का सम्मान कर सके। बाद में महिलाएं पुजारियों के पैर धोकर उन्हें भोजन कराती हैं एवं उन्हें दक्षिणा देती हैं । एक अन्य अनोखे रीति-रिवाज में, राभा जनजाति चावल के आटे से अपने चेहरे पर धब्बा लगाती है और दूसरों के लिए चावल की बीयर डालती है।

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