पंडित दीनदयाल उपाध्याय के प्रारंभिक जीवन
पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म सन 1916 में उत्तर प्रदेश के चंद्रभान नामक एक छोटे से गांव में हुआ था। इनके पिता का निधन जब ये 2 साल के थे तभी हो गया था, जो कि रेलवे में एक सहायक स्टेशन मास्टर के तौर पर कार्यरत थे। इनकी माता की भी देहांत इनके पिता के कुछ सालों बाद हो गया था।
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जिसके बाद इनके नाना जी ने इनका और इनके छोटे भाई का पालन पोषण किया था। पंडित दीनदयाल उपाध्याय अट्ठारह 18 साल के थे तब उनके छोटे भाई का भी निधन हो गया। जिसके बाद यह अपने जीवन में एकदम अकेले पड़ गए।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय के शिक्षा के बारे में
पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने अपने जीवन में परेशानियों का असर कभी भी अपने पढ़ाई लिखाई पर नहीं पड़ने दी और हर परिस्थिति में इन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी थी। अपनी मैट्रिक स्तर की शिक्षा इन्होंने राजस्थान से ली और इंटरमीडिएट की शिक्षा पिलानी राजस्थान से ली थी। राजस्थान में इंटरमीडिएट शिक्षा लेने के बाद उत्तर प्रदेश के कानपुर में स्थित सनातन धर्म कॉलेज में एडमिशन लिया और 1936 में इस कॉलेज से प्रथम स्थान के साथ स्नातक की उपाधि ली। स्नातक स्तर की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर करने के लिए आगरा के सेंट जॉन्स कॉलेज में भर्ती लिया। कई कारणों के चलते इन्होंने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। सभी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए इस ऐप से करें फ्री में प्रिपरेशन - Safalta Application
पंडित दीनदयाल उपाध्याय का राजनैतिक सफर
पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने जब अपनी स्नातक की शिक्षा हासिल कर ली, उस वक्त यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आए थे और ये आरएसएस के प्रचारक बने थे। सन 1955 में इन्हें लखीमपुर जिले में आरएसएस के प्रचारक के रूप में अप्वॉइंट किया गया था और प्रचार करने की जिम्मेदारी उन्हें दी गई थी। प्रचारक बनने से पहले उन्होंने साल 1939 और 1942 में संघ की शिक्षा और ट्रेनिंग ली थी और इस ट्रेनिंग के बाद ही उन्हें प्रचारक नियुक्त किया गया था।
भारतीय जनसंघ पार्टी में निभाई अहम भूमिका
साल 1954 में भारतीय जनसंघ की नींव रखी गई और इस पार्टी को बनाने का कार्य श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ मिलकर उन्होंने किया था। इस पार्टी के गठन के बाद पंडित दीनदयाल उपाध्याय को इस पार्टी के महासचिव के रूप में चुना गया और ये आरएसएस से जुड़ी एक पार्टी थी जो कि हिंदू राष्ट्रवाद की विचारधारा रखती थी। वहीं साल 1970 में यह पार्टी जनता पार्टी के नाम से प्रसिद्ध हुई और 1980 में इस पार्टी के नाम पर भारतीय जनता पार्टी हो गया। Free Daily Current Affair Quiz-Attempt Now with exciting prize
पंडित दीनदयाल उपाध्याय का पत्रकार और लेखक के तौर पर काम
उपाध्याय जी ने बतौर पत्रकार के रूप में भी काम किया हुआ है और यह काफी प्रसिद्ध पत्रकार रह चुके हैं। इन्होंने राष्ट्र धर्म नामक अखबार के लिए काफी लेख लिखे थे, इन्होंने साप्ताहिक और दैनिक दो अखबार शुरू किए थे। इसके अलावा इन्होंने चंद्रगुप्त मौर्य पर एक नाटक भी लिखा था एवं शंकराचार्य के जीवन पर एक किताब लिखी थी।
दीनदयाल उपाध्याय के मृत्यु के बारे में
दीनदयाल उपाध्याय की मृत्यु बहुत कम उम्र में हो गई थी और जब इनकी मृत्यु हुई थी तब किसी ने भी इस महान नेता की मृत्यु की कल्पना नहीं की थी। जिस वक्त इनकी मृत्यु हुई थी उस वक्त उनकी उम्र केवल 51 साल की थी और उस समय जनसंघ पार्टी से जुड़े हुए थे। 10 फरवरी 1960 को यह अपनी पार्टी से जुड़े काम के लिए लखनऊ से पटना जाने वाली ट्रेन में सवार हुए थे और इस दौरान उनकी हत्या की गई थी। उनका शव अगले दिन रहस्यमई परिस्थितियों में मुगलसराय रेलवे स्टेशन के पास मिला था। काफी समय बाद उनके शव की पहचान की गई। सीबीआई जांच के मुताबिक पंडित दीनदयाल उपाध्याय और उनकी हत्या किसे लुटेरे ने की थी।
पंडित दीनदयाय उपाध्याय की उपलब्धियां
दीनदयाल उपाध्याय में अपनी सेवाएं भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस के लिए की है, इसको अभी भी बीजेपी पार्टी के द्वारा याद किया जाता है, साथ ही इस पार्टी ने इनकी याद में कई कार्य किए हैं। बीजेपी पार्टी की ओर से कई योजनाओं के नाम उनके नाम के ऊपर रखा गया है। जैसे दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्या योजना और दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई सार्वजनिक स्थानों का नाम बदलकर पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर रखा है।
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