Japan Preparing to Go to Moon and Mars by Train, क्या ट्रेन से जा सकेंगे चाँद और मंगल पर

Safalta Experts Published by: Kanchan Pathak Updated Mon, 18 Jul 2022 04:54 PM IST

Highlights

चाइना और जर्मनी की ट्रेनें पटरी पर नहीं बल्कि पटरी से ऊपर चलती हैं. यह सिस्टम इलेक्ट्रो मैग्नेटिक फ़ोर्स पर काम करता है उसी तर्ज़ पर यह इन्टरप्लेनेटरी ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम भी काम करेगा.

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Japan Preparing to Go to Moon and Mars by Train- सुनने में बड़ा अजीब लग रहा है लेकिन यह सच है कि जापान की काजिमा कंस्ट्रक्शन कंपनी ने जापान के हीं क्योटो यूनिवर्सिटीज के रिसर्चर्स के साथ मिल कर पृथ्वी से चाँद और मंगल पर जाने के लिए अंतरग्रहीय बुलेट ट्रेन चलाने का निर्णय लिया है. आज से 50 साल पहले अगर कोई यह कहता कि चंद सेकंड के भीतर एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप पर बैठे लोगों से वीडियो कॉल पर एक दूसरे को देखते हुए बातें की जा सकती हैं तो शायद कोई इस बात पर यकीन नहीं करता. आज से सौ साल पहले कोई अगर ये कहता कि फ्लाइट के माध्यम से चंद घंटों के भीतर एक कॉन्टिनेंट से दूसरे कॉन्टिनेंट पहुँचा जा सकता है या वो चाँद जिसे हम पृथ्वी से रात के वक्त आसमान में देखते हैं, इन्सान उस चाँद के ऊपर पहुँच जाएगा तो लोग इसे कोरी गप्प समझते पर आज ये सब एक साधारण सी बात है. इसी तरह इस बात की भी बहुत अधिक सम्भावना है कि आज से 50 साल, 75 साल या फिर सौ साल बाद इन्सान पृथ्वी से ट्रेन के द्वारा चांद और मंगल पर पहुँच सकेगा. आपको अब भी यकीन नहीं हो रहा ना ? पर जब आप जापान के इस प्रोजेक्ट के पूरे प्लान को सुनेंगे तो यक़ीनन आप भी कह उठेंगे कि चलो दिलदार चलो चाँद के पार चलो .. अगर आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और विशेषज्ञ मार्गदर्शन की तलाश कर रहे हैं, तो आप हमारे जनरल अवेयरनेस ई बुक डाउनलोड कर सकते हैं  FREE GK EBook- Download Now. / GK Capsule Free pdf - Download here
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नासा का मिशन 2025

वैसे भी 2025 में लोगों को चन्द्रमा पर ले जाने और 6 महीने वहीँ रखने का नासा का मिशन है, तो फिर अगला मिशन चाँद और मंगल क्यों नहीं हो सकता ? अगर आपको याद हो तो एलेन मस्क भी एक प्रोजेक्ट चलाना चाहते हैं जिसके अंतर्गत वे ऐसी फ्लाइट के बारे में कह चुके हैं जो मार्स के पृथ्वी पर अप डाउन करेगा.

ग्रेविटेशनल फोर्स के बिना असंभव

यह सच है कि चांद और मंगल पर जाने, रहने और घर बसाने के लिए पहले वहाँ के वातावरण को इंसान के रहने लायक बनाना होगा और इसके लिए ग्रेविटेशनल फोर्स यानि गुरुत्वाकर्षण बल की सबसे पहले जरुरत होगी. तो इसके लिये भी इस टीम ने तैयारी कर ली है. टीम के मुताबिक इसके लिए शैम्पेन के ग्लास की तरह का एक मॉडल डिज़ाइन किया गया है जिसके भीतर एक हैविटेट का निर्माण किया जाएगा, यानि इसके भीतर पेड़ पौधे, पानी और घर भी होंगे. मतलब इस इस ग्लास में पृथ्वी जैसा पर्यावरण और ग्रेविटेशनल फोर्स होगा. यह ग्रेविटेशनल फोर्स यानि गुरुत्वाकर्षण बल सेंट्रीफ्युगल फ़ोर्स के द्वारा तैयार किया जाएगा. इससे अंतरिक्ष में रहना पृथ्वी की तरह हीं आसान हो जाएगा.
 
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कैसे और कहाँ लगेगी रेल की पटरी ?

चाइना और जर्मनी की ट्रेनें पटरी पर नहीं बल्कि पटरी से ऊपर चलती हैं. यह सिस्टम इलेक्ट्रो मैग्नेटिक फ़ोर्स पर काम करता है उसी तर्ज़ पर यह इन्टरप्लेनेटरी ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम भी काम करेगा इससे ट्रेन की गति बहुत तेज़ हो पाती है.

पूरा फार्मूला

चाँद और मंगल पर जाने के लिए दो तरह के कैप्सूल बनाए जाएंगे, एक पृथ्वी से चांद पर जाने के लिए और दूसरा पृथ्वी से मंगल पर जाने के लिए. चांद वाले कैप्सूल का रेडियस 15 मीटर का होगा वहीं मंगल पर जाने वाले कैप्सूल का रेडियस 30 मीटर होगा. यह कैप्सूल सफर के दैरान ग्रेविटेशनल फ़ोर्स को बरकरार रखेगा.

यह संरचना एक उलटे कोन के शेप की होगी जो सेंट्रीफ्यूगल पुल बनाने के लिए तेजी से घूमेगा और पृथ्वी जैसा ग्रेविटेशनल फोर्स पैदा करेगा. ट्रेनों में हेक्सागोनल शेप के कैप्सूल भी होंगे जिन्हें हेक्साकैप्सूल कहा जाएगा जिसके बीच में एक मुविंग डिवाइस होगी.

शैम्पेन ग्लास के आकार की इस संरचना को चांद पर जाने के लिए ‘लूनाग्लास’ और मंगल पर जाने के लिए ‘मार्सग्लास’ कहा जाएगा. चांद पर मौजूद स्टेशन गेटवे उपग्रह का उपयोग करेगा और इसे चंद्र स्टेशन के रूप में जाना जाएगा, वहीं मंगल पर रेलवे स्टेशन को मंगल स्टेशन कहा जाएगा. यह मंगल ग्रह के उपग्रह फोबोस पर स्थित होगा. मंगल पर जाने वाली ट्रेन मार्स के सेटेलाइट फोबोस पर उतरेगी. पृथ्वी पर के स्टेशन जहाँ से ये ट्रेनें चलेंगी या उडेंगी को टेरा स्टेशन कहा जाएगा. और ट्रेन का नाम होगा स्पेस एक्सप्रेस. इस कैप्सूल का नाम द ग्लास दिया गया है. इस योजना के तहत अंतर-ग्रहीय ट्रेनों के आवागमन में लगभग 30 साल लग सकते हैं.
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