Martyrs Day :हाल ही में, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने घोषणा किया है कि, 15 फरवरी को अब “शहीद दिवस” के रूप में मनाया जाएगा। सीएम ने यह भी घोषणा किया है कि तारापुर में हुए घटना के बाद अब घटना स्थल के साथ साथ तारापुर पुलिस थाना का भी विकास किया जाएगा।
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प्रमुख बिंदु क्या है?
1. बिहार के तारापुर शहर में 90 साल पहले पुलिस द्वारा मारे गए 34 स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान में 15 फरवरी को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाएगा।2. इन स्वतंत्रता सेनानियों को उनका हक कभी नहीं मिला, यह भी एक बड़ा नरसंहार था भले ही 1919 में अमृतसर में जलियांवाला बाग के बाद ब्रिटिश पुलिस द्वारा किया गए नरसंहार को सबसे बड़ा नरसंहार घोसित किया गया है।
3.मूर्ती निर्माण की कुल लागत 1.28 करोड़ रुपय है।
4.जिसमें 21 अज्ञात अमर बलिदानियों की सांकेतिक मूर्तियों पर 45.67 लाख की लागत निर्धारीत किया गया है।
5.शहीद दिवस के बाद अब बिहार के तारापुर शहर में लोग सभी 34 अमर सेनानियों की शहादत को जान सकेंगे।
तारापुर नरसंहार क्या है?
यह घटना 15 फरवरी, 1932 को हुई, जब युवा स्वतंत्रता सेनानियों के एक समूह ने तारापुर के थाना भवन में राष्ट्रीय ध्वज फहराने की योजना बनाई थी। पुलिस को उनकी योजना की जानकारी नहीं थी लेकिन कई अधिकारी मौके पर मौजूद थे। इस दौरान पुलिस ने उन पर क्रूर लाठीचार्ज किया।Source: social media
लाठीचार्ज के बावजूद, स्वतंत्रता सेनानियों में से एक गोपाल सिंह नामक सेना ने थाना भवन में जबरदस्ती झंडा फहराने में सफल रहे। 4,000 की भारी भीड़ ने पुलिस पर पथराव किया, जिसमें नागरिक प्रशासन का एक अधिकारी घायल हो गया था। इसके जवाब में पुलिस ने भीड़ पर अंधाधुंध फायरिंग कर दी जिसमें करीब 75 राउंड फायरिंग की गई, और जिसके बाद मौके पर 34 लोगों की लाशें मिली।स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मान
1967 में महामाया प्रसाद सिन्हा के नेतृत्व वाली बिहार सरकार के दौरान, तारापुर के विधायक बी.एन. प्रशांत ने सबसे पहले इन स्वतंत्रता सेनानियों के लिए सम्मान की मांग की थी। जिसके बाद 1984 में चंद्रशेखर सिंह की सरकार ने थाना भवन के सामने इन सेनानियों के लिए स्मारक बनवाने के लिए 100 वर्ग फुट जमीन दिया था। यहां पर एक संगमरमर की पट्टिका बनाई गई थी, जिसमें पहचाने गए स्वतंत्रता सेनानियों के नाम लिखे गए थे।Current Affairs Ebook Free PDF: डाउनलोड करे