Mokshagundam Visvesvaraya Biography, मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरय्या कौन हैं, जाने इनके जीवनी,शिक्षा एवं करियर के बारे में

safalta expert Published by: Chanchal Singh Updated Wed, 07 Sep 2022 06:17 PM IST

Highlights

 मैसूर में किए गए उनके द्वारा सामाजिक कार्यों के कारण मैसूर के महाराजा कृष्णराज वोडिआर ने साल 1912 में इन्हें राज्य का दीवान यानी मुख्यमंत्री के रूप में अप्वॉइंट किया था

Source: Safalta

Mokshagundam Visvesvaraya Biography: मॉडर्न इंडिया के भागीरथ यानी मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरय्या एक महान इंजीनियर और दूरदर्शी राजनेता थे। इंजीनियरिंग के एरिया में अपने विशिष्ट योगदान के लिए उन्हें भारत सरकार द्वारा देश के सर्वोच्च सम्मान यानी भारत रत्न से सम्मानित किया गया है।

एम विश्वेश्वरय्या की स्मृति में उनके जन्म दिवस के अवसर पर इंजीनियर डे मनाया जाता है।  अगर आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और विशेषज्ञ मार्गदर्शन की तलाश कर रहे हैं, तो आप हमारे जनरल अवेयरनेस ई बुक डाउनलोड कर सकते हैं   FREE GK EBook- Download Now. / GK Capsule Free pdf - Download here

 

विषय सूची

 जीवनी 
 शिक्षा
 एम विश्वेश्वरय्या का करियर
विश्वेश्वरय्या के मैसूर में दीवान के रूप में कार्य
मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या डाक टिकट के बारे में
सम्मान और पुरस्कार के बारे में
मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या की मृत्यु
एम विश्वेश्वरय्या से जुड़े FAQ
 

जीवनी 


एम. विश्वेश्वरय्या का जन्म 15 सितंबर 1261 को मैसूर के चिकलापुर जिले में एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था। एम विश्वेश्वरय्या के पिता का नाम मोक्षगुण्डम श्रीनिवास शास्त्री था, जो संस्कृत के प्रकाण्ड पंडित थे, इनकी माता का नाम वेंकटालक्ष्म्मा था। यह एक ग्रहणी थी। जब विश्वेश्वरय्या 12 साल के थे तभी उनके पिता का निधन हो गया। 

शिक्षा

एम विश्वेश्वरय्या की शिक्षा घर में आर्थिक समस्या होने के चलते गांव के सरकारी स्कूल में हुई थी। जिसके बाद हाई स्कूल की पढ़ाई इन्होंने बेंगलुरु से की और बाद में एम विश्वेश्वरय्या ने बेंगलुरु के सेंट्रल कॉलेज में आगे की पढ़ाई जारी रखी और मात्र 20 साल की उम्र में बीए की परीक्षा में प्रथम स्थान हासिल किया था। इस दौरान उन्होंने शिक्षक के रूप में काम किया। जिसके बाद उनके काबिलियत को देखते हुए सरकार ने उन्हें आर्थिक सहायता दी थी। विश्वेश्वरय्या ने पुणे के साइंस कॉलेज में सिविल इंजीनियरिंग की पाठ्यक्रम में भर्ती ली। विश्वेश्वरय्या 1883 में  LCE व FCE की परीक्षा में पहला स्थान हासिल किया था वर्तमान में  इसे बीई के उपाधि के समान माना जाता है।

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 एम विश्वेश्वरय्या का करियर


 साल 1883 की एलसीई व एफसीई की परीक्षा में प्रथम आने के बाद विश्वेश्वरय्य को तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार ने इन्हें नासिक जिले के असिस्टेंट इंजीनियर के पद पर अप्वॉइंट किया। जिसके बाद एम विश्वेश्वरय्या ने एक जटिल सिंचाई व्यवस्था का बनाया। विश्वेश्वरय्या ने कृष्णराज सागर बांध, भद्रावती आयरन एंड स्टील वर्क्स, मैसूर संदल ऑयल एंड सोप फैक्ट्री, मैसूर यूनिवर्सिटी और बैंक ऑफ मैसूर जैसे कई प्रोजेक्ट को अपने काबिलियत से बनाया है। अपने क्षेत्र में विशिष्ट कार्य के कारण अंग्रेज इंजीनियर भी एम विश्वेश्वरय्या के स्कील के फैन हो गए थे। जिसके बाद एम विश्वेश्वरैया ने विभिन्न दायित्वों का पालन किया और साल 1894 में शख्खर बांध का निर्माण किया जो सिंध प्रांत में जल व्यवस्था का पहला चरण था। किसानों के लिए सिंचाई करने हेतु जल की व्यवस्था करने और पानी को व्यर्थ ना करने के लिए विश्वेश्वरय्या ने एक ब्लॉक पद्धति का निर्माण किया, जिसमें एम विश्वेश्वरय्या  ने स्टील के दरवाजे का उपयोग कर पानी को व्यर्थ बहने से रोकने का इंतजाम बनाया था।साल 1916 में विश्वेश्वरय्या को मैसूर राज्य के मुख्य इंजीनियर के रूप में अप्वॉइंट किया गया था। अपने जन्म स्थान की आधारभूत समस्या जैसे अशिक्षा ,गरीबी, बेरोजगारी, बीमारी आदि को लेकर अक्सर चिंतित रहते थे। जिसके लिए उन्होंने बहुत सारे सामाजिक कार्य किए थे। 

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विश्वेश्वरय्या के मैसूर में दीवान के रूप में कार्य

 मैसूर में किए गए उनके द्वारा सामाजिक कार्यों के कारण मैसूर के महाराजा कृष्णराज वोडिआर ने साल 1912 में इन्हें राज्य का दीवान यानी मुख्यमंत्री के रूप में अप्वॉइंट किया था। दीवान के रूप में एम विश्वेश्वरय्या ने राज्य में आर्थिक और सामाजिक स्थिति को सुधारी और उत्थान की दृष्टि से औद्योगिक विकास के लिए कठिन प्रयास किए थे। एम विश्वेश्वरय्या ने तेल फैक्ट्री, साबुन फैक्ट्री, धातु फैक्ट्री, क्रोम टेनिंग फैक्ट्री को शुरू किया था। साल 1918 में मैसूर के दीवान के रूप से ये रिटायर हो गए थे।

 मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या डाक टिकट के बारे में


भारत निर्माण में विशिष्ट योगदान के चलते उनके 100 वें जन्म दिवस के अवसर पर भारत सरकार ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया था।

 सम्मान और पुरस्कार के बारे में

 50 साल तक लंदन इंस्टिट्यूट ऑफ़ सिविल इंजीनियर्स की मानद सदस्यता
 1906 इनकी सेवाओं की मान्यता में केसर ए हिंद की उपाधि दी गई
 1911 में कैम्पैनियन ऑफ द इंडियन एंपायर
 नाइट ऑफ द ऑर्डर ऑफ़ द आर्डर ऑफ इंडियन एंपायर
 कोलकाता विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टर ऑफ साइंस से सम्मानित किया गया 
बाम्बे यूनिवर्सिटी द्वारा  LLD
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय द्वारा D.LITT से सम्मानित किया गया 1983 इंस्टिट्यूशन ऑफ इंजीनियर भारत के आजीवन मानद सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए
 1944 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी द्वारा D.SC 
1948 मैसूर यूनिवर्सिटी ने डॉक्टरेट LLD से नवाजा
 1953 आंध्र विश्वविद्यालय द्वारा D.LITT से सम्मानित किया गया
 1953 इंस्टीट्यूट आफ टाउन प्लानर्स भारत के फेलोशिप से भी सम्मानित किया गया
 1955 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया 
1958 में बंगाल की रॉयल एशियाटिक सोसाइटी दुर्गा प्रसाद खेतान मेमोरियल गोल्ड मेडल सम्मानित किया गया
1959 इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस फेलोशिप से नवाजा गया।
 

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मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या की मृत्यु


101 साल की उम्र में भी काम करने वाले इस महान व्यक्ति का कहना था कि जंग लग जाने से बेहतर है काम करते रहना। भारत के इस महान इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या का निधन 14 अप्रैल 1965 को बेंगलुरु में हुआ था।
 
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 एम विश्वेश्वरय्या से जुड़े FAQ


एम विश्वेश्वरय्या द्वारा लिखी गई पुस्तकों के नाम 
रिकंस्ट्रक्टिंग इंडिया 1920 
नेशनल बिल्डिंग 1937 

विश्वेश्वरय्या के जन्म के उपलक्ष में भारत में कौन सा दिन मनाया जाता है?
 इंजीनियर डे ।

विश्वेश्वरय्या को मैसूर का दीवान किस सन् में नियुक्त किया गया था?
 1912।
मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या को भारत के राष्ट्रीय पुरस्कार भारत रत्न से कब सम्मानित किया गया था?
 1955। 

एम विश्वेश्वरय्या के जन्म स्थान का क्या नाम है ?
चिकलापुर मैसूर।

 भारत सरकार ने विश्वेश्वरय्या के नाम से डाक टिकट कब जारी किया था?
विश्वेश्वरय्या के 101 वे जन्म दिवस के अवसर पर एक डाक टिकट जारी किया गया था।