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उधम सिंह का जीवन परिचय
उधम सिंह का पूरा नाम शहीद-ए-आजम सरदार उधम सिंह था। माता पिता का नाम नारायण कौर और सरदार तेहाल सिंह था। इनका जन्म 26 दिसंबर 1899 में पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम क्षेत्र में हुआ था। यह पेशे से क्रांतिकारी थे और गदर पार्टी, हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन जैसे राजनीतिक पार्टी में शामिल थे।
उधम सिंह का जन्म और प्रारंभिक जीवन
उधम सिंह को लोग शुरुआत में शेर सिंह के नाम से जानते थे और इनके पिता तेहाल सिंह जो कि जम्मू अपने गांव के रेलवे क्रॉसिंग में वॉचमैन का काम करते थे। उनकी माता नारायण कौर एक गृहणी थी। माता पिता के गुजर जाने के बाद उधम सिंह एवं उनके भाई का जीवन अनाथालय में बीता। उधम सिंह के भाई की भी मौत हो गई। 1918 में उधम सिंह ने मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की और 1919 में अनाथालय छोड़ दिया।
उधम सिंह का विचारधारा क्या था?
शहीद भगत सिंह द्वारा दिए गए देश के प्रति समर्पण और क्रांतिकारी कार्य से उधम सिंह बहुत प्रभावित हुए थे। जलिया वाला बाग में निर्दोष लोगों की हत्या के बाद उधम सिंह को इस घटना में मारे गए बुजुर्ग, बच्चे, महिलाएं एवं नौजवान पुरुष की लाश को देखकर उन्हें बहुत बड़ा धक्का लगा और इस गहरे दुख के बाद उन्होंने यह ठान लिया कि यह हत्याकांड जिसके भी इशारे पर हुआ है उसे वह जरूर सजा देंगे ।इस बात का उन्होंने प्रण किया और गुनहगार को सजा देने में जुट गए।
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उधम सिंह की क्रांतिकारी गतिविधियां क्या थी?
उधम सिंह ने अंग्रेजों से बदला लेने के प्राण को पूरा करने के लिए विदेशों में अलग-अलग जगह गए और वहां अपना नाम बदल कर यात्रा किया। उनकी यात्राओं में दक्षिण अफ्रीका, जिंबाब्वे, ब्राजील, अमेरिका ने नैरोबी जैसे बड़े देश शामिल थे।
उधम सिंह भगत सिंह के राह में चलने लगे थे और उनके द्वारा दिए गए विचारों का पालन कर रहे थे।
गदर पार्टी के निर्माण करने के बाद भारत में क्रांति भड़काने के लिए इस पार्टी का उपयोग किया गया ।
1924 में उधम सिंह ने इस पार्टी से जुड़ने का निश्चय किया और इस पार्टी से जुड़ने के बाद. भगत सिंह ने उधम सिंह को 1927 में भारत आने का आदेश दिया।
उधम सिंह लौटने के बाद अपने साथ 25 सहयोगी रिवाल्वर, गोला बारूद भी लेकर आए थे लेकिन बिना लाइसेंस के इन हथियारों को रखने के लिए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। जिसके बाद उन्हें 4 साल की जेल की सजा सुनाई गई।
जेल से छूटने के बाद उन्होंने अपना संकल्प पूरा करने के लिए कश्मीर वापस गए और वहां से जर्मनी भाग गए।
जिसके बाद लंदन पहुंच गए और वहां पर उन्होंने अपना कार्य को अंजाम देने के लिए सही समय का इंतजार शुरू किया।
उधम सिंह ने 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी लंदन के हॉल में बैठक आयोजित की गई थी। जहां पर जनरल डायर को दंड देने के लिए उनका इंतजार कर रहे थे। जिसके बाद बैठक के दौरान ही जनरल डायर को उधम सिंह ने दो शार्ट दाग दिए। और घटनास्थल पर ही जनरल डायर की मृत्यु हो गई। इतिहास में यह कहा गया है कि उधम सिंह ने इस दिन का इंतजार इसलिए किया था कि जनरल डायर की मृत्यु और उनके द्वारा किए गए जघन्य अपराधों की सजा पूरी दुनिया देख सकें। जिसके बाद उन्होंने अपने काम को अंजाम देने के बाद भागने के बजाए गर्व से घटना स्थल पर खड़े रहे।
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उधम सिंह की मृत्यु
उधम सिंह को 4 जून 1940 को जनरल डायर के मृत्यु के आरोप में दोषी करार दिया गया। 31 जुलाई 1940 को लंदन के पेंटोनविले जेल में उनको फांसी की सजा दी गई थी। जिसके बाद उधम सिंह के मृत शरीर के अवशेषों को उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर 31 जुलाई 1974 को भारत को सौंपा गया था। उधम सिंह की अस्थियों को सम्मान के साथ भारत लाया गया और उनकी अस्थियों से उनके गांव में समाधि बनाया गया। उधम सिंह ने मात्र 40 साल के उम्र में देश के लिए अपने आप को समर्पण कर दिया था। जिस दिन उधम सिंह को फांसी दी गई थी उस दिन भारत में क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों का आक्रोश अंग्रेज के प्रति और भी ज्यादा बढ़ गया था। इनके शहीद होने के 7 साल बाद भारत अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हो गया।
उधम सिंह के सम्मान और विरासत क्या-क्या है
सिखों के हथियार जैसे चाकू, डायरी और शूटिंग के दौरान उपयोग की गई गोलियों को स्कॉटलैंड यार्ड में ब्लैक म्यूजियम में उनके सम्मान के रूप में रखा गया है। राजस्थान के अनूपगढ़ में शहीद उधम सिंह के नाम पर एक चौकी मौजूद है। जलिया वाले बाग के नजदीक में उधम सिंह लोगों को समर्पित है म्यूजियम बनाया गया है। उधम सिंह नगर जो झारखंड में मौजूद है इस जिले के नाम को भी उनके नाम से प्रेरित होकर रखा गया है। इनकी पुण्यतिथि के दिन पंजाब और हरियाणा में सार्वजनिक अवकाश रहता है।
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