Scheduled Tribes and Scheduled Castes : कौन हैं अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति ? संविधान के अनुसार अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति की परिभाषा

Safalta Experts Published by: Kanchan Pathak Updated Sat, 11 Jun 2022 03:51 PM IST

Highlights

भारतीय समाज में सदियों से अनेक जातियों और धर्मों के लोग मिलजुल कर रहते आए हैं, परन्तु इसी उदार समाज में कुछ जातियों के साथ छुआछूत, भेदभाव, अस्पृश्यता जैसे कर्म जाने कब आकर जुड़ गए. 

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भारतीय समाज में सदियों से अनेक जातियों और धर्मों के लोग मिलजुल कर रहते आए हैं, परन्तु इसी उदार समाज में कुछ जातियों के साथ छुआछूत, भेदभाव, अस्पृश्यता जैसे कर्म कब आकर जुड़ गए इसके बारे में स्पष्ट रूप से कुछ कहा नहीं जा सकता. समाज़ से बहिष्कृत ये जातियां हज़ारों वर्षों से अपने अधिकारों से वंचित रही हैं. समाज में उन्हें समानता का दर्ज़ा नहीं दिया जाता था. विभिन्न कारणों से ये जातियाँ समाज में पिछड़ती चली गयी. कालान्तर में इन जातियों को शिड्यूल्ड कास्ट और शिड्यूल्ड ट्राइब के रूप में चिन्हित कर इनकी एक विशिष्ट सूची बनाई गयी तथा समाज में इनके विकास के लिए इन्हें कई प्रकार के अधिकार भी दिए गए. जिसके लिए अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति आयोग की स्थापना की गयी थी. बाद में इन दोनों जातियों के बीच के अंतर को समझते हुए 89 वें संविधान संशोधन अधिनियम 2003 के द्वारा दोनों को एक दूसरे से द्विभाजित कर दिया गया. तो आइए आज के इस आर्टिकल में हम यह समझने का प्रयास करते हैं कि कि शिड्यूल्ड कास्ट और शिड्यूल्ड ट्राइब किसे कहते हैं ? अगर आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और विशेषज्ञ मार्गदर्शन की तलाश कर रहे हैं, तो आप हमारे जनरल अवेयरनेस ई बुक डाउनलोड कर सकते हैं  FREE GK EBook- Download Now. 

अनुसूचित जाति -
अनुसूचित जाति, शिड्यूल्ड कास्ट या SC वास्तव में जातियों की एक संवैधानिक सूची है जिनमें उन जातियों को शामिल किया गया है जो किसी समय समाज से बहिष्कृत, अस्पृश्य, शूद्र, अछूत, हरिजन या दलित कहे जाते थे. इन जातियों को अनुसूचित कहने के पीछे का उद्द्येश्य समाज में इनसे हो रहे भेदभाव को दूर करना तथा इनका सामाजिक, आर्थिक विकास करना है. इसके लिए हमारे संविधान ने इन्हें कई अधिकार प्रदान किये गए हैं, जैसे - सरकारी नौकरियों, शिक्षा से जुड़े क्षेत्र तथा चुनावों में आरक्षण, आर्थिक मदद के साथ उनकी सुरक्षा के लिए कानून की व्यवस्था भी की गयी है.
भारतीय संविधान में अनुसूचित जाति को आर्टिकल 366 (24) में परिभाषित किया गया है. संविधान के इस आर्टिकल के अनुसार अनुसूचित जाति का मतलब, ऐसी स्वतंत्र जातियां, जनजतियाँ अथवा इन जातियों के कुछ भाग से है जिन्हें भारतीय संविधान के प्रयोजनों के लिए आर्टिकल 341 के अंतर्गत अनुसूचित जाति का माना गया है.

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अनुसूचित जनजाति -
भारत में आज भी कई ऐसी जनजातियां हैं, जो समाज के बीच में न रहकर अपना जीवन अलग- थलग गुज़रते हैं. इनका न सिर्फ अपना एक अलग समाज होता है, बल्कि इनके रीति-रिवाज, नियम कानून यहाँ तक कि देवी देवता भी बिल्कुल अलग होते हैं. ये लोग प्रायः समाज से दूर जंगलों और पहाड़ों के निकट अपना जीवन यापन करते हैं.
साधारण बोलचाल की भाषा में हम इन्हें आदिवासी कहते हैं. समाज से दूर रहनें के कारण जाहिरी तौर पर इन लोगो में शिक्षा का अभाव, गरीबी, कुपोषण, अन्धविश्वास आदि पाया जाता है. इसलिए संविधान और सरकार द्वारा इनके विकास और इन्हें समाज की मुख्य धारा में लाने के लिए कई अधिनियम और कानून बनाए गए हैं.
भारतीय संविधान के आर्टिकल 366 (25) के मुताबिक, ऐसे आदिवासी समुदाय या आदिवासी जाति और आदिवासी समुदायों का भाग या उनके समूह के रूप में, जिन्हें इस संविधान के उद्देश्यों के लिए अनुच्छेद 342 में अनुसूचित जनजातियां माना गया है अनुसूचित जनजाति कहते हैं.

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भारतीय संविधान में अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe) शब्द का प्रयोग सबसे पहले किया गया था और इसकी परिभाषा वर्ष 1931 में अंग्रेजी शासनकाल में करायी गयी जनगणना के आधार पर किया गया था. अनुसूचित जनजाति अध्यादेश 1950 के मुताबिक अनुसूचित जनजाति में शामिल जातियों की संख्या लगभग 734 थी.  वर्ष 2011 में की गयी जनगणना के मुताबिक भारत में अनुसूचित जनजातियों का प्रतिशत 8.6 है.

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