1. सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नाडियाद में हुआ था। वह खेड़ा जिले के कारमसद में रहने वाले झावेर भाई और लाडबा पटेल की चौथी संतान थी।
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1897 में 22 साल की उम्र में उन्होंने अपनी मैट्रिक की परीक्षा पास की थी। वल्लभ भाई की शादी झबेरबा से हुई थी। पटेल जब सिर्फ 33 साल के थे तभी उनकी पत्नी का निधन हो गया था।2.सरदार वल्लभभाई पटेल अन्याय नहीं सहन करते थे। अन्याय का विरोध करने की शुरूआत उनके चरित्र में स्कूल के दिनों से ही थी। नाडियाड में उनके स्कूल के अध्यापक पुस्तक का व्यापार करते थे एवं छात्रों को मजबूर करते थे कि पुस्तक बाहर से ना खरीद कर उन्हीं से खरीदे। वल्लभभाई ने इसका विरोध किया और छात्रों को अध्यापकों से पुस्तक ना खरीदने के लिए प्रेरित किया, जिसके परिणाम स्वरुप अध्यापकों और सभी विद्यार्थियों में संघर्ष छिड़ गया था। 5 से 6 दिन तक स्कूल बंद रहा और अंत में इस बात की जीत सरदार की हुई और अध्यापक की ओर से पुस्तक बेचने की प्रथा भी बंद हुई।
3. सरदार पटेल अपने स्कूल की शिक्षा पूरी करने में समय लगा दिया था। उन्होंने 22 साल की उम्र में दसवीं की परीक्षा पूरी की। सरदार पटेल का सपना वकील बनने का था और अपने इस सपने को पूरा करने के लिए विदेश इंग्लैंड जाना चाहते थे लेकिन इस सपने को पूरा करने के लिए उनके पास आर्थिक साधन इतनी मजबूत नहीं थी कि वह एक भारतीय महाविद्यालय में भी प्रवेश ले सके। ऐसे में सरदार वल्लभभाई पटेल ने अपने एक परिचित वकील से पुस्तक उधार ली और घर बैठकर पढ़ाई करनी शुरू की थी और सपने को पूरा करने के लिए एक कदम आगे बढ़े।
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4. बारडोली सत्याग्रह का नेतृत्व करते हुए पटेल को सत्याग्रह में सफलता मिली और वहां की महिलाओं ने उन्हें सरदार की उपाधि दी। जिसके बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल के नाम से जाना जाने लगा। आजादी के बाद भारत की विभिन्न रियासतें बिखरी हुई थी, बिखरे भारत के भू राजनीतिक एकीकरण में मुख्य भूमिका निभाने वाले पटेल को भारत का बिस्मार्क और लौह पुरुष भी कहा गया। सरदार पटेल वर्ण तथा वर्ग भेद के कट्टर विरोधी थे।
5.इंग्लैंड में वकालत की पढ़ाई करने के बाद भी उनका रुख पैसा कमाने की ओर नहीं था। सरदार पटेल 1913 में भारत वापस लौटे और अहमदाबाद में अपनी वकालत शुरू की थी। जल्द ही वे एक लोकप्रिय वकील बने और अपने मित्रों के कहने पर पटेल ने 1917 में अहमदाबाद के सैनिटेशन कमिश्नर का चुनाव लड़ा और उसमें उन्हें भारी मतों से जीत हासिल हुई थी।
6. सरदार पटेल गांधीजी के चंपारण सत्याग्रह की सफलता से भी बहुत प्रभावित हुए थे, उन्होंने 1918 में गुजरात के खेड़ा खंड में सूखा पड़े किसानों को कर से राहत दिलाने की मांग की लेकिन ब्रिटिश सरकार ने कर माफ नहीं किया। गांधीजी ने किसानों का मुद्दा उठाया और अपना पूरा समय खेड़ा में ही बिताया था। गांधी जी खेड़ा में पूरा समय नहीं व्यतीत कर सकते थे इसलिए वे एक ऐसे व्यक्ति की तलाश कर रहे थे जो उनकी अनुपस्थिति में इस संघर्ष की अगवाई कर सके। ऐसे में इस समय सरदार वल्लभभाई पटेल अपनी इच्छा से आगे आए और इस संघर्ष का नेतृत्व किया था।
7. गृह मंत्री के रूप में उनकी पहली प्राथमिकता देसी रियासतों (राज्यों) को भारत में मिलाने था। इस काम को उन्होंने बिना खून बहाए करके दिखाया था। हैदराबाद के ऑपरेशन पोलो के लिए उन्हें सेना भेजनी पड़ी थी। भारत के एकीकरण करने के इस महान योगदान के लिए उन्हें भारत के लौह पुरुष के रूप में जाना जाता है। सरदार पटेल की महानतम देन के बदौलत से 562 छोटी-बड़ी सभी रियासतों को भारतीय संघ में एक कर भारतीय एकता का निर्माण करना था। सरदार पटेल भारत के इतिहास के एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने इतनी बड़ी संख्या में राज्यों को एक करने का साहस दिखाया था। 5 जुलाई 1947 को एक रियासत विभाग की भी स्थापना की गई थी।
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8. सरदार वल्लभ भाई पटेल देश के पहले प्रधानमंत्री बनने वाले थे, वे महात्मा गांधी के इच्छा का सम्मान करते थे। इसलिए वे प्रधानमंत्री के पद से पीछे हटे और जवाहरलाल नेहरू को देश का पहला प्रधानमंत्री बनाया गया। देश की स्वतंत्रता के बाद सरदार पटेल प्रधानमंत्री के साथ पहले गृहमंत्री, सूचना एवं रियासत विभाग के मंत्री बने। सरदार पटेल के निधन के 41 साल बाद 1991 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। जिसे उनके पौत्र विपिन भाई पटेल ने स्वीकार किया था।
9.सरदार पटेल के पास खुद का मकान नहीं था। अहमदाबाद के किराए के एक मकान में रहा करते थे। 15 दिसंबर 1950 में मुंबई में जब उनका निधन हुआ था तब उनके बैंक के खाते में मात्र ₹260 ही मौजूद थे।
10.आजादी से पहले जूनागढ़ रियासत ने 1947 में पाकिस्तान के साथ जाने का फैसला किया था, लेकिन भारत ने उनके इस फैसले को स्वीकार नहीं किया था जिसके बाद जूनागढ़ को भारत में मिला लिया गया। भारत के तत्कालीन उप प्रधानमंत्री सरदार पटेल ने 12 नवंबर 1947 को जूनागढ़ जाकर उन्हें भारतीय सेना को इस क्षेत्र में स्थिरता बहाल करने का निर्देश दिया और इसके साथ ही सोमनाथ मंदिर का भी पुनर्निर्माण करने का आदेश दिया था।
जम्मू एवं कश्मीर जूनागढ़ और हैदराबाद के राजाओं ने इस फैसले को स्वीकार नहीं किया जूनागढ़ के नवाब के विरुद्ध जब बहुत विरोध हुआ था वह भागकर जूनागढ़ चले गए और जूनागढ़ भारत में मिल गया। जब हैदराबाद के निजाम भारत में विलय के प्रस्ताव को अस्वीकार किए तो सरदार पटेल ने वहां भी सेना भेजकर निजाम को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर किया और हैदराबाद को भारत में मिलाया, लेकिन कश्मीर पर यथास्थिति रखते हुए इस मामले को शांत करवाया था।
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