ऊधो मन न भये दस बीस किसकी रचना है?
उधो, मन न भए दस बीस। एक हुतो सो गयौ स्याम संग, को अवराधै ईस॥ सिथिल भईं सबहीं माधौ बिनु जथा देह बिनु सीस। स्वासा अटकिरही आसा लगि, जीवहिं कोटि बरीस॥ तुम तौ सखा स्यामसुन्दर के, सकल जोग के ईस। सूरदास, रसिकन की बतियां पुरवौ मन जगदीस॥ इसकी रचना सूरदास ने की है।
surdas
प्रस्तुत रचना सूरदास जी की है यह कविता हाई स्कूल की हिंदी काव्य में पद नामक शीर्षक से लिया गया है उपरोक्त पंक्ति का तात्पर्य है की - हे! उद्धव मन 10 - 20 नहीं होते हैं वह केवल एक ही है और वह श्रीकृष्ण से लगा हुआ है
सूरदास जी
सूरदास जी की रचना है
ye Mahakavi surdas ki rachna h
surdas ji ne ki h
सूरदास
सूरदास जी
सूरदास जी
Tulsi das