शस्यावर्तन (फसल-चक्र) से आप क्या समझते हो? यह उपयोगी क्यों है?
फसल-चक्र या शस्यावर्तन-किसी भूमि पर फसलों को पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार अदल-बदल कर उगाना, फसल-चक्र या शस्यावर्तन कहलाता है। इस विधि में दो अनाज वाली फसलों के मध्य एक फलीदार (लेग्यूम) फसल जैसे मटर, सोयाबीन, चना, मूंगफली आदि लगायी जाती है। फसल भूमि से नाइट्रोजन यौगिक अधिकता से ग्रहण करती है जो भूमि की उर्वरता बढ़ाने के लिए अत्यन्त आवश्यक है। अनाज वाली फसल भूमि से नाइट्रोजन यौगिक अधिकता से ग्रहण करती है जिससे भूमि में नाइट्रोजन की कमी हो जाती है। दाल वाली फसलों के पौधों की जड़ों में एक प्रकार के जीवाणु रहते हैं जो वायुमण्डल की नाइट्रोजन को नाइट्रोजन यौगिकों में बदलकर भूमि को प्रदान करते हैं। इस प्रकार भूमि को आवश्यक पोषक तत्त्व नाइट्रोजन की आपूर्ति से हो जाती है। इस प्रकार मृदा की उर्वरता बढ़ जाती है तथा यदि फसल-चक्र उचित ढंग से अपनाया जाए तो वर्ष में तीन तक फसलें उगायी जा सकती हैं।