वैज्ञानिकों के अनुसार विटामिन डी का प्राकृतिक स्त्रोत क्या है?
विटामिन डी वसा-घुलनशील प्रो-हार्मोन का एक समूह होता है। इसके दो प्रमुख रूप हैं:विटामिन डी२ (या अर्गोकेलसीफेरोल) एवं विटामिन डी३ (या कोलेकेलसीफेरोल).[1] सूर्य के प्रकाश, खाद्य एवं अन्य पूरकों से प्राप्त विटामिन डी निष्क्रीय होता है। इसे शरीर में सक्रिय होने के लिये कम से कम दो हाईड्रॉक्सिलेशन अभिक्रियाएं वांछित होती हैं। शरीर में मिलने वाला कैल्सीट्राईऑल (१,२५-डाईहाईड्रॉक्सीकॉलेकैल्सिफेरॉल) विटामिन डी का सक्रिय रूप होता है। त्वचा जब धूप के संपर्क में आती है तो शरीर में विटामिन डी निर्माण की प्रक्रिया आरंभ होती है। यह मछलियों में भी पाया जाता है। विटामिन डी की मदद से कैल्शियम को शरीर में बनाए रखने में मदद मिलती है जो हड्डियों की मजबूती के लिए अत्यावश्यक होता है। इसके अभाव में हड्डी कमजोर होती हैं व टूट भी सकती हैं।[2] छोटे बच्चों में यह स्थिति रिकेट्स कहलाती है और व्यस्कों में हड्डी के मुलायम होने को ओस्टीयोमलेशिया कहते हैं। इसके अलावा, हड्डी के पतला और कमजोर होने को ओस्टीयोपोरोसिस कहते हैं।[3] इसके अलावा विटामिन डी कैंसर, क्षय रोग जैसे रोगों से भी बचाव करता है।[4