आशय स्पष्ट कीजिए- (क) जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं। (ख) प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं, चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न हो।
क) उपभोक्तावादी संस्कृति अधिकाधिक उपभोग को बढ़ावा देती है। लोग उपभोग का ही सुख मानकर भौतिक साधनों का उपयोग करने लगते हैं। इससे वे वस्तु की गुणवत्ता पर ध्यान दिए बिना उत्पाद के गुलाम बनकर रह जाते हैं। जिसका असर उनके चरित्र पर पड़ता है। (ख) लोग समाज में प्रतिष्ठा दिखाने के लिए तरह-तरह के तौर तरीके अपनाते हैं। उनमें कुछ अनुकरणीय होते हैं तो कुछ उपहास का कारण बन जाते हैं। पश्चिमी देशों में लोग अपने अंतिम संस्कार अंतिम विश्राम हेतु-अधिक-से-अधिक मूल्य देखकर सुंदर जगह सुनिश्चित करने लगे हैं। उनका ऐसा करना नितांत हास्यास्पद है।