भारतेंदु हरिश्चंद्र जी का संबंध कहां से है?
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जीवन परिचय Bhartendu harishchandra ka jeevan parichay जीवन-परिचय- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जन्म भाद्रपद शुक्ल 5 सं०1907 वि० (सन् 1850 ई०) में काणी के एक वैश्य परिवार में हुआ। इनके पिता गोपालचन्द्र (उपनाम गिरधार दास) बड़े काव्य-रसिक व्यक्ति थे। भारतेन्दु जी जन्मजात कवि थे। पाँच वर्ष की आयु में ही उन्होंने निम्नलिखित दोहा बनाकर अपने पिता की सुनाया और उनसे सुकवि बनने का आशीर्वाद प्राप्त किया- “ले ब्योढा ठाढ़े भये, श्री अनिरुद्ध सुजान। बाणासुर, की सैन्य को, हनन लगे 'बलवान्॥ बचपन में ही माता-पिता का स्वर्गवास हो जाने के कारण भारतेन्दु को शिक्षा का अनुकुल वातावरण रहीं मिल सका। विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने घर पर ही हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी तथा बंगला का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। 18 वर्ष की अवस्था में ही आपने साहित्य रचना आरंभ कर दी थी। आपने 'पेनी रीडिंग' चंथा 'तदीय समाज” नाम की दो संस्थाएँ चलायीं तथा एक स्कूल खोला। आपने 'हरिश्चन्द्र मैगजीन' तथा 'कवि वचन सुधा' दो पत्रिका भी निकालीं। भारतेन्दु जी दीन-दुःखियों की सेवा, देश-सेवा तथा साहित्य सेवा पर खूब खर्च करते थे। कई पुस्तकालयों और नाट्यशालाओं की भी इन्होंने स्थापना की और काफी व्यय करके उन्हें चलाया। धन को पानी की तरह बहाने के कारण जीवन का अन्तिम समय कष्ट में बिताना पड़ा। अंत में क्षय रोग से ग्रस्त होकर केवल 35 वर्ष की अल्पायु में सं०1942 वि० (सन् 1885 ई०) में परलाोकवासी हो गये।