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Praveen Kumar Yadav

Ssc & Railways
General Awareness
2 years ago

. चैतन्य महाप्रभु का जन्म स्थल हैं A.नदिया/नवद्वीप B.तलवंडी C.निम्बापुर D.मगहर

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Sundaram Singh

2 years ago

चैतन्य महाप्रभु (१८ फरवरी, १४८६-१५३४) वैष्णव धर्म के भक्ति योग के परम प्रचारक एवं भक्तिकाल के प्रमुख कवियों में से एक हैं। इन्होंने वैष्णवों के गौड़ीय संप्रदाय की आधारशिला रखी, भजन गायकी की एक नयी शैली को जन्म दिया तथा राजनैतिक अस्थिरता के दिनों में हिंदू-मुस्लिम एकता की सद्भावना को बल दिया, जाति-पांत, ऊंच-नीच की भावना को दूर करने की शिक्षा दी तथा विलुप्त वृंदावन को फिर से बसाया और अपने जीवन का अंतिम भाग वहीं व्यतीत किया। उनके द्वारा प्रारंभ किए गए महामंत्र नाम संकीर्तन का अत्यंत व्यापक व सकारात्मक प्रभाव आज पश्चिमी जगत तक में है। यह भी कहा जाता है, कि यदि गौरांग ना होते तो वृंदावन आज तक एक मिथक ही होता।[1] वैष्णव लोग तो इन्हें श्रीकृष्ण का राधा रानी के संयोग का अवतार मानते हैं।[2][3][4] गौरांग के ऊपर बहुत से ग्रंथ लिखे गए हैं, जिनमें से प्रमुख है श्री कृष्णदास कविराज गोस्वामी विरचित चैतन्य चरितामृत। इसके अलावा श्री वृंदावन दास ठाकुर रचित चैतन्य भागवत[5] तथा लोचनदास ठाकुर का चैतन्य मंगल भी हैं।[6] श्रीमन्महाप्रभु चैतन्य देव Chaitanya-Mahabrabhu-at-Jagannath.jpg श्री चैतन्य महाप्रभु जगन्नाथ पुरी में जन्म फाल्गुनी पुर्णिमा तिथि 1486 फ़रवरी 18 नवद्वीप (नादिया ज़िला), पश्चिम बंगाल मृत्यु १५३४ (आयु ४६-४७) पुरी, उड़ीसा राष्ट्रीयता भारतीय अन्य नाम विश्वम्भर मिश्र,निमाई पण्डित, गौराङ्ग महाप्रभु, गौरहरि, गौरसुंदर, श्रीकृष्ण चैतन्य भारती आदि जीवनसाथी श्रीमती लक्ष्मीप्रिया देवी और श्रीमती विष्णुप्रिया देवी

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