जनजातीय संस्कृति किसे कहते हैं ?
जनजातियों का जनजीवन, उनकी वेश-भूषा, रंगसज्जा तथा उनका रहन-सहन जनजातीय संस्कृति कहलाती है। भारत में जनजातियाँ विभिन्न रूपों में अपने मूल्यों, परंपरा और स्वदेशी संस्कृति को दर्शाती हैं।जनजाति एक ऐसा सामाजिक समूह है, जो एक निश्चित क्षेत्र में, एक निश्चित भाषा, विशिष्ट संस्कृति और सामाजिक संगठन रखता है।" जिसके माध्यम से ये अपने अपने विचारों को अभिव्यक्त करते हैं।जनजाति के सदस्य अपने नाम से ही अपना परिचय प्रस्तुत करते हैं। जैसे गोंड, बैगा, भील, संथाल, सहरिया आदि।जनजातियों में सामाजिक-आर्थिक विकास की कोई खास होड़ भी नहीं है, इसी कारण इस समुदाय में सदियों बाद भी विकासात्मक परिवर्तन देखने को नहीं मिलता है। ये जनजाति अपने परिवार, समाज में ही खुश या सुखी-सम्पन्न है। ऐसा लगता है कि ये दूसरे समुदाय या समाज के लोगों से मिलना ही नहीं चाहते हैं, और कोई समाजशास्त्री इसके बारे में अध्ययन करना चाहता है, तो ये अपने इतिहास के बारे में जानते ही नहीं हैं या अपने बारे में कुछ बताना ही नहीं चाहते हैं। वर्तमान में ये जनजाति अत्यंत पिछड़ी, गरीब, अभावयस्त और मुख्यधारा से विमुख है।