24. कर्मण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचना किस धर्म ग्रन्थ की उक्ति है ? (A) रामचरितमानस (B) रामायण (C) श्रीमदभागवत गीता (D) इनमें से कोई नहीं
श्रीमदभागवत गीता कुरुक्षेत्र की पृष्ठभूमि में 5000 वर्ष पूर्व भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया जो श्रीमद्भगवदगीता के नाम से प्रसिद्ध है | यह कौरवों व पांडवों के बीच युद्ध महाभारत के भीष्मपर्व का अंग है। जैसा गीता के शंकर भाष्य में कहा है- तं धर्मं भगवता यथोपदिष्ट वेदव्यासः सर्वज्ञोभगवान् गीताख्यैः सप्तभिः श्लोकशतैरु पनिबन्ध। गीता में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं | कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन । मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥ अर्थात : अर्थात तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए तू फल की दृष्टि से कर्म मत कर और न ही ऐसा सोच की फल की आशा के बिना कर्म क्यों करूं |