व्यक्तित्व विकास की अवस्था है- (a) अधिगम एवं बृद्धि (b) व्यक्तिवृत अध्ययन (c) उपचारात्मक अध्ययन (d) इनमें से कोई नही
व्यक्तित्व के विकास में संवेगों का महत्वपूर्ण स्थान है। भय, क्रोध, चिन्ता, दुश्मनी आदि वे अवस्थाएँ हैं जिनसे संवेग उत्पन्न होते हैं। रुचि तथा भय से भी संवेगों की उत्पत्ति होती है। रोना, हँसना, लड़ना, भड़कना, प्रचण्डता आदि संवेगों की वे अवस्थाएँ हैं जो व्यक्तित्व को स्वरूप प्रदान करती हैं