अये _ पथि वचनमाकण्य गृहिणी
श्लोक 1 अये लाजानुच्चैः पथि वचनमाकण्यं गृहिणीं। शिशोः कर्णी यत्नात् सुपिहितवती दीनवदना।। मयि क्षीणोपाये यदकृतं दृशावश्रुबहुले। तदन्तः शल्यं मे त्वमसि पुनरुद्धमुचितः ।। (2017, 16, 13, 10) सन्दर्भ प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘भोजस्यौदार्यम्’ नामक पाठ से उद्धृत है। अनुवाद मार्ग पर ऊँचे स्वर में ‘अरे, खील लो’ सुनकर दीन मुख वाली (मेरी पत्नी ने बच्चों के कान सावधानीपूर्वक बन्द कर दिए और मुझ दरिद्र पर जो अश्रुपूर्ण दृष्टि डाली, वह मेरे हृदय में काँटे सदृश गड़ गई, जिसे निकालने में आप ही समर्थ हैं।