Bhagat Singh Biography: पढ़िए भगत सिंह की जीवनी और क्यों मनाया जाता है 23 मार्च को शहीदी दिवस

Safalta Experts Published by: Nikesh Kumar Updated Wed, 23 Mar 2022 04:53 PM IST

Source: Safalta

''सूर्य अपने लीक पर जब तक भी परिक्रमा करे उसे कभी भी हमारे देश से ज्यादा स्वतंत्र, सुखी, सुंदर और प्यारा देश पूरे ब्रह्माण्ड में कहीं न मिले.'' अपने देश के बारे में ऐसी सोच रखने वाले ''वीर क्रांतिकारी भगत सिंह'' का नाम और स्थान भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में अंकित है. वह एक बहादुर क्रांतिकारी नेता थे जिन्हें अंग्रेजों ने फाँसी पर लटका कर मार डाला था. 23 मार्च को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को लाहौर जेल में फाँसी पर लटका दिया गया था. इन्हीं क्रांतिकारियों के सम्मान में आज के दिन यानि 23 मार्च को 'शहीद दिवस' या 'सर्वोदय दिवस' के रूप में मनाया जाता है. यदि आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और विशेषज्ञ मार्गदर्शन की तलाश कर रहे हैं, तो आप हमारे जनरल अवेयरनेस ई बुक डाउनलोड कर सकते हैं  FREE GK EBook- Download Now.
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भगत सिंह के बारे में -

भगत सिंह का जन्म 26 सितंबर सन 1907 ईस्वी को पंजाब के जालंधर दोआब जिले में (वर्तमान पाकिस्तान) के लायलपुर में एक सिख परिवार में हुआ था. वे बहुत हीं कम उम्र में हीं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की ओर आकर्षित हो गए थे. वे जब छोटी उम्र के हीं थे तभी उन्होंने ब्रिटिशों द्वारा अनुशंसित पाठ्यपुस्तकों को जलाकर ब्रिटिश सरकार की अवहेलना की थी. प्रारंभ में, उन्होंने महात्मा गांधी और असहयोग आंदोलन का समर्थन किया था. परन्तु जब गांधी ने चौरी चौरा की घटना के मद्देनजर आंदोलन वापस ले लिया था, तो भगत सिंह ने क्रांतिकारी राष्ट्रवाद की ओर अपना रुख कर लिया था. भगत सिंह विशेष रूप से जलियांवाला बाग हत्याकांड (1919) और ननकाना साहिब (1921) में निहत्थे अकाली प्रदर्शनकारियों के खिलाफ हिंसा से आक्रोशित थे. भगत सिंह वैचारिक रूप से नास्तिक और पूंजीवाद के खिलाफ थे.

भगत सिंह की क्रांतिकारी गतिविधियाँ/स्वतंत्रता संग्राम में योगदान -

  • भारत के क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में जब भी बात चलेगी तो भगत सिंह का नाम हमेशा सबसे पहले उद्धृत किया जाएगा.
  • भगत सिंह ने सन 1926 में नौजवान भारत सभा की स्थापना की थी. इस संगठन का उद्देश्य रैली करके किसानों और श्रमिकों को ब्रिटिश शासन के खिलाफ क्रांति के लिए प्रोत्साहित करना था. इस संगठन के सचिव के रूप में भगत सिंह स्वयं कार्य सँभालते थे.
  • वर्ष 1928 में, भगत सिंह ने सुखदेव, चंद्रशेखर आज़ाद और अन्य लोगों के साथ मिलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) की स्थापना की थी.
  • सन 1928 में साईमन कमीशन के विरोध में प्रदर्शन के दौरान जब एक पुलिस अधीक्षक, जेम्स स्कॉट के आदेश पर पुलिस लाठीचार्ज में लगी चोटों के परिणामस्वरूप लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई तब भगत सिंह और उनके क्रांतिकारी दोस्तों ने अपने प्रिय नेता की मौत का बदला लेने का फैसला किया था.
  • इसी सिलसिले में जेम्स स्कॉट की गलत पहचान के वहम की वजह से उन्होंने एक अन्य पुलिस अधिकारी जे पी सॉन्डर्स की हत्या कर दी. इसे लाहौर षडयंत्र केस (लाहौर कांस्पीरेसी) कहा गया था. इस घटना के बाद, भगत सिंह लाहौर से दिल्ली आ गए थे.

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सेंट्रल असेंबली बॉम्बिंग केस -

8 अप्रैल सन 1929 को, भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में विजिटर्स गैलरी से बम फेंका था. उन्होंने असेंबली में पर्चे भी फेंके और क्रांतिकारी नारे लगाए. जिसके परिणामस्वरूप दोनों क्रांतिकारियों ने गिरफ्तारी भी दी. हालाँकि इस घटना में किसी को भी चोट नहीं आई और न हीं किसी को शारीरिक नुकसान पहुंचाना उनका मकसद था. वे बस क्रांति और ब्रिटिश साम्राज्यवाद विरोधी अपने संदेश को फैलाना चाहते थे, और इसके लिए उन्हें एक मंच की जरूरत थी. उनका घोषित उद्देश्य बस इतना सा था कि ''बहरों को सुनाने के लिए धमाकों की जरुरत होती है.''

इस घटना के पीछे भगत सिंह का हीं मास्टरमाइंड था और यह विचार एक फ्रांसीसी क्रान्तिकारी ऑगस्टे वैलेंट से प्रेरित था, जिसे पेरिस में इसी तरह की घटना के लिए फ्रांस में मार डाला गया था. इस घटना के बाद हुए मुकदमे में, भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी.

इसी बीच जेपी सॉन्डर्स की हत्या का मामला भी सामने आ गया और भगत सिंह उस मामले से भी जुड़े हुए थे. भगत सिंह को राजगुरु, सुखदेव और अन्य क्रांतिकारियों के साथ सॉन्डर्स हत्याकांड में गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर कई सारे आरोप लगाए गए. भगत सिंह को लाहौर जेल में कैद करके रखा गया था. उन्हें राजनीतिक कैदी माना जाता था. वहाँ युवा नेताओं ने उनके बेहतर इलाज की मांग करते हुए भूख हड़ताल शुरू कर दी. जवाहरलाल नेहरू सहित कई नेताओं ने जेल में उनसे मुलाकात की, और उनका संकट देखकर दुख व्यक्त किया. जेल में भगत सिंह ने 116 दिनों तक उपवास किया. जिसे बाद में उन्होंने अपने पिता और कांग्रेस नेताओं के अनुरोध करने पर समाप्त कर दिया.
कहने की जरूरत नहीं है कि मुकदमा एकतरफा था और भगत सिंह को राजगुरु और सुखदेव के साथ मौत की सजा सुनाई गई.

मुकदमे और उसके बाद मौत की सजा की व्यापक निंदा हुई. कई राष्ट्रीय नेताओं ने ब्रिटिश सरकार से इस सजा को कम करने का अनुरोध किया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ, उनकी एक नहीं सुनी गई. यही नहीं अंग्रेजों के जुल्म की ये इन्तहां रही कि तीनों क्रांतिकारियों को 24 मार्च 1931 को फांसी देने का आदेश दिया गया था परन्तु  एक दिन पहले हीं यानि 23 मार्च 1931 को हीं उन्हें लाहौर जेल में फाँसी दे दी गई. फांसी के बाद गुप्त रूप से उनके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

ऐसा कहा जाता है कि फाँसी देने के पहले भगत सिंह ने अंग्रेज ऑफिसर से ये कहा था कि - मिस्टर मजिस्ट्रेट आप बहुत भाग्यशाली है कि आपको यह देखने के लिए मिल रहा है कि भारत माता के क्रान्तिकारी बेटे किस तरह अपने आदर्शों के लिए फाँसी पर भी झूल जाते हैं. फाँसी के वक्त उनकी जबान पर ''इन्कलाब जिंदाबाद'' के शब्द थे.

इस फाँसी से भारतीय लोगों में हाहाकार मच गया. इसने विशेष रूप से युवाओं में कड़े आक्रोश को जन्म दिया और अनेक युवा स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित हुए. 23 मार्च का दिन भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के सम्मान में 'शहीद दिवस' या 'सर्वोदय दिवस' के रूप में मनाया जाता है. भगत सिंह देश की आजादी चाहते थे पर आज़ादी से उनका तात्पर्य केवल अंग्रेजों को खदेड़ने तक ही सीमित नहीं था. बल्कि वे गरीबी से आज़ादी, अस्पृश्यता से आज़ादी, सांप्रदायिक संघर्ष से आज़ादी और हर तरह के भेदभाव और शोषण से भी आज़ादी चाहते थे. फाँसी के वक़्त भगत सिंह की उम्र मात्र 23 साल की थी.

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भगत सिंह के उद्धरण-

भगत सिंह के कई उद्धरण प्रसिद्ध हैं जिसका वर्णन नीचे किया जा रहा है -
* वे मुझे मार सकते हैं लेकिन वे मेरे विचारों को नहीं मार सकते. वे मेरे शरीर को कुचल सकते हैं, लेकिन वे मेरी आत्मा को कुचल नहीं सकते.
* बम और पिस्तौल से क्रांति नहीं होती. क्रांति की तलवार विचारों के पत्थर पर तेज होती है.
* सूर्य अपने लीक पर जब तक भी परिक्रमा करे उसे कभी भी हमारे देश से ज्यादा स्वतंत्र, सुखी, सुंदर और प्यारा देश पूरे ब्रह्माण्ड में कहीं न मिले.
* अंध आस्था और अंध विश्वास खतरनाक होता है. यह मस्तिष्क को सुस्त कर देता है और मनुष्य को प्रतिक्रियावादी बना देता है.
* क्रांति मानव जाति का एक अविभाज्य (अपरिहार्य) अधिकार है. स्वतंत्रता हरेक प्राणी का जन्मसिद्ध अविनाशी अधिकार है. श्रम हीं समाज का वास्तविक निर्वाहक है.

कुछ प्रमुख बिंदु -
  • अप्रैल 1926 में, भगत सिंह ने सोहन सिंह जोश के साथ 'वर्कर्स एंड पीजेंट्स पार्टी' की स्थापना की और पंजाबी में मासिक पत्रिका कीर्ति का प्रकाशन किया गया.
  • अगले साल भगत सिंह ने जोश के साथ काम किया और कीर्ति के संपादकीय बोर्ड में शामिल हो गए.
  • 1927 में, उन्हें पहली बार छद्म नाम विद्रोही (विद्रोही) के तहत लिखे गए एक लेख के आरोप में काकोरी मामले के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. उन पर दशहरा मेले के दौरान लाहौर में हुए
  • बम विस्फोट के लिए जिम्मेदार होने का आरोप लगाया गया.
  • 1928 में, भगत सिंह ने हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का नाम बदलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन (HSRA) कर दिया. पर 1930 में, जब आजाद को गोली मारी गई, हिंदुस्तान
  • सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन ध्वस्त हो गया.
  • नौजवान भारत सभा ने पंजाब में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन की जगह ली.
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शहीद दिवस कब मनाया जाता है ?

उत्तर - शहीद दिवस 23 मार्च को मनाया जाता है.
 

भगत सिंह को फाँसी कब हुई थी ?

उत्तर - 23 मार्च 1931 को.
 

भगत सिंह किस छद्मनाम से क्रान्तिकारी लेख लिखा करते थे ?

उत्तर – विद्रोही के नाम से.
 

फाँसी के वक़्त भगत सिंह की क्या उम्र थी ?

23 वर्ष.

किस केस में भगत सिंह को आजीवन कारावास की सजा हुई थी ?

सेंट्रल असेंबली बॉम्बिंग केस में .