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कैबिनेट मिशन क्या था और इसके सदस्य कौन थे? (Cabinet Mission 1946 and why did it fail)
क्लेमेंट एटली (ब्रिटिश प्रधान मंत्री) ने 1946 में ब्रिटिश भारत सरकार से भारतीय नेताओं को सत्ता के नेतृत्व की शक्तियों के हस्तांतरण के लिए भारत में एक मिशन भेजने का फैसला किया. मिशन के तीन सदस्यों का उल्लेख उनके पदों के साथ नीचे दी गई तालिका में किया गया है:
कैबिनेट मिशन के सदस्य
| कैबिनेट मिशन के सदस्य | पदनाम |
| पेथिक लॉरेंस | भारत के राज्य सचिव |
| स्टैफोर्ड क्रिप्स | व्यापार बोर्ड के अध्यक्ष |
| ए.वी. अलेक्जेंडर | फर्स्ट लॉर्ड ऑफ एडमिरल्टी |
हालाँकि लॉर्ड वेवेल कैबिनेट मिशन के सदस्य नहीं थे लेकिन वो भी इस मिशन में शामिल थे.
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कैबिनेट मिशन के उद्देश्य
- भारत के लिए एक संविधान के निर्माण के संबंध में भारतीय नेताओं के साथ एक समझौता प्राप्त करना
- संविधान बनाने वाली एक संस्था (भारत की संविधान सभा) का खाका तैयार करना
- प्रमुख भारतीय दलों के समर्थन से एक कार्यकारी परिषद की स्थापना करना
कैबिनेट मिशन की विफलता के मुख्य कारण नीचे दिए गए हैं:
- कांग्रेस पार्टी एक मजबूत केंद्र और प्रांतों के लिए न्यूनतम शक्तियां चाहती थी
- मुस्लिम लीग मुसलमानों के लिए एक मजबूत राजनीतिक सुरक्षा चाहती थी जैसे कि विधानमंडल में समान अधिकार
- चूंकि दोनों पक्षों के बीच कई वैचारिक मतभेद थे और वो एकमत नहीं हो पा रहे थे, इसलिए कैबिनेट मिशन ने मई 1946 में अपने कुछ प्रस्ताव पेश किये
कैबिनेट मिशन द्वारा पेश किये गए प्रस्ताव
- भारत के अधिराज्य को बिना किसी विभाजन के स्वतंत्रता दी जाएगी
- प्रांतों को तीन समूहों / वर्गों में विभाजित किया जाएगा:
- ग्रुप ए: मद्रास, सेंट्रल प्रोविंस, यूपी, बिहार, बॉम्बे और उड़ीसा
- ग्रुप बी: पंजाब, सिंध, एनडब्ल्यूएफपी और बलूचिस्तान
- ग्रुप सी: बंगाल और असम
- मुस्लिम-बहुल प्रांतों को दो समूहों में बांटा जायेगा और शेष हिंदू-बहुसंख्यक प्रान्तों को एक समूह में.
- दिल्ली की केंद्र सरकार के पास रक्षा, विदेशी मामलों, संचार और मुद्रा सम्बंधित अधिकार होंगे. शेष शक्तियाँ प्रांतों में निहित होंगी.
- देश के लिए नया संविधान लिखने के लिए एक संविधान सभा का गठन किया जाएगा. संविधान सभा द्वारा लिखित संविधान के आधार पर एक नई सरकार बनने तक एक अंतरिम सरकार की स्थापना की जाएगी.
- कांग्रेस हिंदू-मुस्लिम बहुमत के आधार पर प्रांतों के समूह निर्माण के लिए उत्सुक नहीं थी और चाहती थी कि केंद्र में हीं सारी शक्तियां निहित हों. वह एक कमजोर केंद्र के विचार के खिलाफ थी और मुस्लिम लीग इन प्रस्तावों में कोई बदलाव नहीं चाहती थी.
- चूंकि कैबिनेट मिशन की इस योजना को स्वीकार नहीं किया गया, जून 1946 में मिशन द्वारा एक नई योजना प्रस्तावित की गई. इस योजना ने भारत को एक हिंदू-बहुल भारत और एक मुस्लिम-बहुल भारत (बाद में जिसका नाम पाकिस्तान कर दिया गया) में विभाजित करने का प्रस्ताव दिया. रियासतों की भी एक सूची बनाई गई और उन्हें या तो संघ में शामिल होने या स्वतंत्र रहने का विकल्प दिया गया.
- जवाहरलाल नेहरू के अधीन कांग्रेस पार्टी ने दूसरी योजना को स्वीकार नहीं किया. इसके बजाय, वह संविधान सभा का हिस्सा बनने के लिए सहमत हो गए
- वायसराय ने अंतरिम सरकार बनाने के लिए 14 लोगों को आमंत्रित किया. इनमें कांग्रेस से 5, मुस्लिम लीग से 5, 1 सिख, 1 पारसी, 1 भारतीय ईसाई और 1 अनुसूचित जाति समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्य थे
- लीग और कांग्रेस दोनों को वायसराय की अंतरिम परिषद में 5 सदस्यों को मनोनीत करने का अधिकार दिया गया था. कांग्रेस ने जाकिर हुसैन को एक सदस्य के रूप में नामित किया, जिस पर लीग ने यह कहते हुए आपत्ति जताई कि केवल वह भारतीय मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करेगी और कोई अन्य पार्टी नहीं. मुस्लिम लीग ने इसमें भाग नहीं लिया.
- कांग्रेस नेताओं ने वायसराय की अंतरिम परिषद में प्रवेश किया और इस तरह नेहरू ने अंतरिम सरकार का नेतृत्व किया. नई सरकार ने देश के लिए एक संविधान बनाने का काम शुरू किया.
- NWFP सहित अधिकांश प्रांतों में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकारें बनीं. बंगाल और सिंध में मुस्लिम लीग ने सरकारें बनाईं
- जिन्ना और लीग ने नई केंद्र सरकार पर आपत्ति जताई. उन्होंने पाकिस्तान के लिए आंदोलन करने की तैयारी की और मुसलमानों से किसी भी तरह से पाकिस्तान की मांग करने का आग्रह किया. उन्होंने 16 अगस्त 1946 को 'डायरेक्ट एक्शन डे' का आह्वान किया.
- इस आह्वान के कारण देश में व्यापक सांप्रदायिक दंगे हुए और कलकत्ता में पहले दिन हीं 5000 लोग मारे गए. सांप्रदायिक दंगे कई अन्य क्षेत्रों विशेषकर नोआखली और बिहार में फैल गए.
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Source: Safalta
कैबिनेट मिशन फरवरी 1946 में एटली सरकार (ब्रिटिश प्रधान मंत्री) द्वारा भारत भेजा गया एक उच्चस्तरीय मिशन था. 22 जनवरी 1946 को कैबिनेट मिशन को भारत भेजने का निर्णय लिया गया था और 19 फरवरी 1946 को ब्रिटिश पीएम सीआर एटली की सरकार ने हाउस ऑफ लॉर्ड्स में कैबिनेट मिशन और भारत छोड़ने की अपनी योजना के बारे में औपचारिक घोषणा की थी. कैबिनेट मिशन में तीन ब्रिटिश कैबिनेट सदस्य थे - पेथिक लॉरेंस, स्टैफोर्ड क्रिप्स, और ए.वी. अलेक्जेंडर. कैबिनेट मिशन का मुख्य उद्देश्य भारतीय सत्ता के नेतृत्व को ब्रिटिशों के पास से भारतीयों को हस्तांतरित करने पर चर्चा करना था. यदि आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और विशेषज्ञ मार्गदर्शन की तलाश कर रहे हैं, तो आप हमारे जनरल अवेयरनेस ई बुक डाउनलोड कर सकते हैं FREE GK EBook- Download Now.| March Month Current Affairs Magazine- DOWNLOAD NOW |
कैबिनेट मिशन क्या था और इसके सदस्य कौन थे? (Cabinet Mission 1946 and why did it fail)
क्लेमेंट एटली (ब्रिटिश प्रधान मंत्री) ने 1946 में ब्रिटिश भारत सरकार से भारतीय नेताओं को सत्ता के नेतृत्व की शक्तियों के हस्तांतरण के लिए भारत में एक मिशन भेजने का फैसला किया. मिशन के तीन सदस्यों का उल्लेख उनके पदों के साथ नीचे दी गई तालिका में किया गया है:
कैबिनेट मिशन के सदस्य
| कैबिनेट मिशन के सदस्य | पदनाम |
| पेथिक लॉरेंस | भारत के राज्य सचिव |
| स्टैफोर्ड क्रिप्स | व्यापार बोर्ड के अध्यक्ष |
| ए.वी. अलेक्जेंडर | फर्स्ट लॉर्ड ऑफ एडमिरल्टी |
हालाँकि लॉर्ड वेवेल कैबिनेट मिशन के सदस्य नहीं थे लेकिन वो भी इस मिशन में शामिल थे.
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कैबिनेट मिशन के उद्देश्य
- भारत के लिए एक संविधान के निर्माण के संबंध में भारतीय नेताओं के साथ एक समझौता प्राप्त करना
- संविधान बनाने वाली एक संस्था (भारत की संविधान सभा) का खाका तैयार करना
- प्रमुख भारतीय दलों के समर्थन से एक कार्यकारी परिषद की स्थापना करना
कैबिनेट मिशन की विफलता के मुख्य कारण नीचे दिए गए हैं:
- कांग्रेस पार्टी एक मजबूत केंद्र और प्रांतों के लिए न्यूनतम शक्तियां चाहती थी
- मुस्लिम लीग मुसलमानों के लिए एक मजबूत राजनीतिक सुरक्षा चाहती थी जैसे कि विधानमंडल में समान अधिकार
- चूंकि दोनों पक्षों के बीच कई वैचारिक मतभेद थे और वो एकमत नहीं हो पा रहे थे, इसलिए कैबिनेट मिशन ने मई 1946 में अपने कुछ प्रस्ताव पेश किये
कैबिनेट मिशन द्वारा पेश किये गए प्रस्ताव
- भारत के अधिराज्य को बिना किसी विभाजन के स्वतंत्रता दी जाएगी
- प्रांतों को तीन समूहों / वर्गों में विभाजित किया जाएगा:
- ग्रुप ए: मद्रास, सेंट्रल प्रोविंस, यूपी, बिहार, बॉम्बे और उड़ीसा
- ग्रुप बी: पंजाब, सिंध, एनडब्ल्यूएफपी और बलूचिस्तान
- ग्रुप सी: बंगाल और असम
- मुस्लिम-बहुल प्रांतों को दो समूहों में बांटा जायेगा और शेष हिंदू-बहुसंख्यक प्रान्तों को एक समूह में.
- दिल्ली की केंद्र सरकार के पास रक्षा, विदेशी मामलों, संचार और मुद्रा सम्बंधित अधिकार होंगे. शेष शक्तियाँ प्रांतों में निहित होंगी.
- देश के लिए नया संविधान लिखने के लिए एक संविधान सभा का गठन किया जाएगा. संविधान सभा द्वारा लिखित संविधान के आधार पर एक नई सरकार बनने तक एक अंतरिम सरकार की स्थापना की जाएगी.
- कांग्रेस हिंदू-मुस्लिम बहुमत के आधार पर प्रांतों के समूह निर्माण के लिए उत्सुक नहीं थी और चाहती थी कि केंद्र में हीं सारी शक्तियां निहित हों. वह एक कमजोर केंद्र के विचार के खिलाफ थी और मुस्लिम लीग इन प्रस्तावों में कोई बदलाव नहीं चाहती थी.
- चूंकि कैबिनेट मिशन की इस योजना को स्वीकार नहीं किया गया, जून 1946 में मिशन द्वारा एक नई योजना प्रस्तावित की गई. इस योजना ने भारत को एक हिंदू-बहुल भारत और एक मुस्लिम-बहुल भारत (बाद में जिसका नाम पाकिस्तान कर दिया गया) में विभाजित करने का प्रस्ताव दिया. रियासतों की भी एक सूची बनाई गई और उन्हें या तो संघ में शामिल होने या स्वतंत्र रहने का विकल्प दिया गया.
- जवाहरलाल नेहरू के अधीन कांग्रेस पार्टी ने दूसरी योजना को स्वीकार नहीं किया. इसके बजाय, वह संविधान सभा का हिस्सा बनने के लिए सहमत हो गए
- वायसराय ने अंतरिम सरकार बनाने के लिए 14 लोगों को आमंत्रित किया. इनमें कांग्रेस से 5, मुस्लिम लीग से 5, 1 सिख, 1 पारसी, 1 भारतीय ईसाई और 1 अनुसूचित जाति समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्य थे
- लीग और कांग्रेस दोनों को वायसराय की अंतरिम परिषद में 5 सदस्यों को मनोनीत करने का अधिकार दिया गया था. कांग्रेस ने जाकिर हुसैन को एक सदस्य के रूप में नामित किया, जिस पर लीग ने यह कहते हुए आपत्ति जताई कि केवल वह भारतीय मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करेगी और कोई अन्य पार्टी नहीं. मुस्लिम लीग ने इसमें भाग नहीं लिया.
- कांग्रेस नेताओं ने वायसराय की अंतरिम परिषद में प्रवेश किया और इस तरह नेहरू ने अंतरिम सरकार का नेतृत्व किया. नई सरकार ने देश के लिए एक संविधान बनाने का काम शुरू किया.
- NWFP सहित अधिकांश प्रांतों में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकारें बनीं. बंगाल और सिंध में मुस्लिम लीग ने सरकारें बनाईं
- जिन्ना और लीग ने नई केंद्र सरकार पर आपत्ति जताई. उन्होंने पाकिस्तान के लिए आंदोलन करने की तैयारी की और मुसलमानों से किसी भी तरह से पाकिस्तान की मांग करने का आग्रह किया. उन्होंने 16 अगस्त 1946 को 'डायरेक्ट एक्शन डे' का आह्वान किया.
- इस आह्वान के कारण देश में व्यापक सांप्रदायिक दंगे हुए और कलकत्ता में पहले दिन हीं 5000 लोग मारे गए. सांप्रदायिक दंगे कई अन्य क्षेत्रों विशेषकर नोआखली और बिहार में फैल गए.
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1. प्रश्न - कैबिनेट मिशन 1946 क्या था ?
2. प्रश्न - कैबिनेट मिशन के क्या उद्देश्य थे ?
- भारत के लिए एक संविधान के निर्माण के संबंध में भारतीय नेताओं के साथ एक समझौता प्राप्त करना.
- संविधान बनाने वाली एक संस्था (भारत की संविधान सभा) का खाका तैयार करना.