कार्य तथा ऊर्जा एवं इसके प्रमुख घटक और प्रकार Energy and its Major Components and Types

Safalta Experts Published by: Anonymous User Updated Sat, 28 Aug 2021 06:05 PM IST

Source: sunbadger

कार्य तथा ऊर्जा(work and energy)

 कार्य(Work)- किसी वस्तु पर बल लगाने से वस्तु की स्थिति,वेग,रसायनिक संघटन,ताप अथवा रंग में किसी में भी परिवर्तन हो, तो वह कार्य कहलाएगा।
                       जैसे:- किसी वस्तु को उठाकर या धकेलकर दूसरी जगह रखना (स्थान परिवर्तन)।
"किसी वस्तु पर कार्य करने के लिए निम्न दो परिस्थितियां आवश्यक है" -
(i). वस्तु पर कोई बल लगाया जाए।
(ii) वस्तु,लगाए गए बल की दिशा में विस्थापन करे।

  ऊर्जा(Energy)- "किसी वस्तु द्वारा कार्य करने या परिवर्तन करने की कुल क्षमता ऊर्जा कहलाती है"।

ऊर्जा के प्रकार

ऊर्जा के निम्नलिखित प्रकार हैं ---
  1. .यांत्रिक ऊर्जा(Mechanical energy)
  2. .ऊष्मा ऊर्जा(Thermal energy)
  3. .प्रकाश ऊर्जा(Light energy)
  4. .ध्वनि ऊर्जा(Sound energy)
  5. .रसायनिक ऊर्जा(Chemical energy)
  6. वैद्युत ऊर्जा(Electrical energy)
  7. .सौर ऊर्जा (Solar energy)
  8. नाभिकीय ऊर्जा(Nuclear energy).
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. यांत्रिक ऊर्जा- यह दो प्रकार की होती है: 

1.गतिज ऊर्जा (kinetic energy) - किसी वस्तु का वह ऊर्जा जो उसकी गति के कारण होती है,गतिज ऊर्जा कहलाती है।
यदि m द्रव्यमान,का वस्तु v वेग से चल रही हो तो 
         K.E.=1mv²/2
उदाहरण:- बंदूक से निकली गोली,चलती हुई रेलगाड़ी,बहती हुई वायु आदि गतिज ऊर्जा रखते हैं।

2. स्थितिज ऊर्जा(potential energy)-  किसी वस्तु की वह ऊर्जा जो जो उसकी स्थिति और विशिष्ट आकार के कारण होती है, स्थितिज ऊर्जा कहलाती है।
     उदाहरण:- ऊंचाई पर रखा हुआ पत्थर, चाभी भरी हुई घड़ी की कमानी स्तिथिज ऊर्जा रखते है।
 शक्ति(Power) - एकांक समय में  किए गए कार्य का उपयोग शक्ति कहलाता है। 

         शक्ति=कार्य/समय=W/t=E/t
  शक्ति का मात्रक-यदि कार्य को जूल में मापा जाए तथा समय को सेकंड में तो शक्ति का मात्रक वाट(watt) कहलाता है।
  • अतः 1  वाट =1जूल(1K)/1सेकंड= जू०/ से० ।।
  • अतः कोई अभिकर्ता 1 जूल कार्य/सेकंड में  में करता है तो उसकी शक्ति 1 वाट होगी। 
  •  कभी कभी शक्ति को किलोवाट में भी व्यक्त किया जाता है।
   1 किलोवाट =1000 वाट
     1Kw = 1000w

       प्लवन -

प्लवन का नियम(law of floatation)- "संतुलित अवस्था में तैरने पर वस्तु अपने भार के बराबर द्रव विस्थापित करती है।" इस नियम को प्लवन का नियम कहते है।
अधिक घनत्व वाले द्रव में तैरने पर वस्तु का कम भाग डूबेगा तथा काम घनत्व वाले द्रव में वस्तु का अधिक भाग डूबेगा।

आर्कमिडीज का सिद्धांत -(i). जब कोई वस्तु किसी तरल में पूर्णतः या अंशतः डुबाई जाती है तो उस वस्तु के भार में आभासी कमी आ जाती है जो कि वस्तु द्वारा विस्थापित तरल के भार के बराबर होती है,जबकि दिया हुआ रहे कि तरल स्थैतिक अवस्था में है।
(ii). डुबाई गई वस्तु पर ऊपर की ओर एक उत्प्लावन बल कार्य करता है जो कि विस्थापित तरल के भार के बराबर होता है।

ऊष्मा-

  • (i).ऊष्मा वह भौतिक कारण है जिसके अवशोषण से वस्तु के अणु तेजी से गतिशील हो जाते है, जबकि निष्कासन से धीरे धीरे चलने लगते है।
  • (ii). इस प्रकार,किसी पदार्थ में विद्यमान ऊष्मा की पहचान उसके अणुओं में वर्तमान गतिज ऊर्जा से की जाती है।
  • (iii). ताप किसी वस्तु का वह गुण,जो किसी वस्तु के ठंडेपन और गर्माहट की माप को प्रदर्शित करता है। दो वस्तु के बीच उनके तापांतर के कारण एक वस्तु से दूसरी वस्तु में बहने वाली ऊर्जा को ऊष्मा कहा जाता है। ऊष्मा चालकता के आधार पर हम पदार्थों का वर्गीकरण निम्न तीन प्रकार से कर सकते है --
  1.  चालक(Conducter) -- जिन पदार्थों से होकर ऊष्मा का चालन सरलता से ही जाता है,उन्हें चालक कहते है। उदाहरण -- सभी धातु,अम्लीय जल, मानव शरीर आदि।
  2.  कुचालक(Bad Conducter) -- जिन पदार्थों में ऊष्मा का चालन सरलता से नही होता या बहुत कम होता हैं। उदाहरण -- लकड़ी, कांच,सिलिका,वायु आदि।
  3.  ऊष्मा रोधी(Thermal less)-- जिन पदार्थों में ऊष्मा का चालन बिल्कुल नही होता है,उन्हें ऊष्मारोधी पदार्थ कहते है।
जैसे :- एस्बेस्टस, ऐबोनाइट आदि।
  • संवहन(convection)-ऊष्मा संचरण की इस विधि में ऊष्मा का संचरण वस्तु के अणुओं के स्थान परिवर्तन करने से होता हैं। द्रव और गैस में ऊष्मा का संचरण इसी विधि से होता है।।

 विकिरण(radiation) - यह ऊष्मा की संचरण की वह विधि है,जिसके लिए माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है। सूर्य से पृथ्वी पर ऊष्मा का पहुंचना इसी विधि का उदाहरण है।

 तापक्रम मापने की इकाई -  सेंटीग्रेड (C): 0 से 100; , फारेनाइट(F): 32 से 212; , केल्विन(K): 273 से 373; , रोमर (R): 0 से 80 ; रैकिन (Ra):492 से 672.
नोट-- मानव शरीर का सामान्य तापक्रम 98.6°F या 37°C होता है। -40°C वह तापक्रम जिस पर सेंटीग्रेड और फारेनहाइट पैमाने समान पठन(reading) प्रदर्शित करते हैं।
              

                 तरंग

विद्युत चुम्बकीय तरंग - सभी विद्युत चुम्बकीय तरंगे फोटान की बनी होती हैं। विद्युत चुम्बकीय तरंगों का तरंगदैर्ध्य परिसर  10-¹⁴ मीटर से लेकर 10⁴ मि० तक होता है।

विद्युत चुम्बकीय तरंगों के गुण -
  1. यह उदासीन होता है।
  2. यह अनुप्रस्थ होती है।
  3. यह आकाश के वेग से गमन करती है।
  4. इसके पास ऊर्जा एवम संवेग होती है।
  5. इसकी अवधारणा मैक्सवेल(maxwell) द्वारा प्रतिपादित की गई।।