रंग (Colour)
- यह प्रकाश का एक गुण है जो इसके तरंगदैर्ध्य कर निर्भर करता है।
- प्राथमिक रंग(primary colour)- लाल, हरा एवं नीला। इन रंगों को उचित मात्रा में मिलाने से अन्य रंग प्राप्त किए जाते है।
- द्वितीयक रंग(secondary colour)- मैजेंटा,पीकॉक,नीला और पीला,ये दो रंगो के प्राथमिक वर्णों के संयोग से बनते है।
- अवरक्त किरणे- वर्ण विक्षेपण के पश्चात वर्ण पट लाल रंग के ऊपर जो अदृश्य प्रकाश की किरणे विद्यमान रहती है,अवरक्त किरणे कहलाती हैं।
- पराबैंगनी किरणे- वर्ण पट पर बैंगनी रंग के नीचे स्थित किरणे पराबैंगनी किरणे कहलाती है। इनका तरंगदैर्ध्य 100A° से अधिक और 4000A° से कम होता है।
- कुछ विकिरण -
- तरंग लम्बाई के बढ़ते हुए क्रम में- गामा एक्स पराबैंगनी, अवरक्त, माइक्रो रेडियो तरंग।
- आवृति के बढ़ते हुए क्रम में - रेडियो, माइक्रो, अवरक्त, दृश्य, पराबैंगनी, एक्स, गामा।
- प्रतिदीप्ति - वे पदार्थ जो कम तरंगदैर्ध्य की आपतित प्रकाश की किरणों को अवशोषित कर लेते है और अधिक तरंगदैर्ध्य का प्रकाश उत्सर्जित करते है,यह तब तक ही होता है, जब तक कि प्रकाश की किरणे आपतित होता रहता है।
- स्फूरदिप्ति - इसमें प्रकाश उत्सर्जन विकिरण हटा लेने पर भी होता रहता है।
दृष्टि दोष (Defects of mission)*
1. निकट दृष्टि दोष(Myopio) - निकट की वस्तुओं को देखना लेकिन दूर की वस्तुओं को स्पष्ट नहीं देख सकना।- कारण- (i). नेत्र गोलक का लंबा होना।
- (ii). नेत्र लेन्स का मोटा होना, अर्थात फोकस दूरी का काम होना।
- (iii). प्रतिबिंब का रेटीना से पीछे बनना।
2. दूर दृष्टि दोष(Hypermetropia)- निकट की वस्तुओं को नही देख सकना,और दूर की वस्तुओं को देखना।
- कारण- (i). नेत्र गोलक का छोटा होना।
- (ii). नेत्र लेन्स का पतला होना,अर्थात नेत्र की फोकस दूरी अधिक होना।
- (iii). प्रतिबिंब का रेटीना से पीछे बनना।
- उपचार - उत्तल लेन्स का प्रयोग करना।
3. जरा दृष्टि दोष(Presbyopia)- न तो निकट और न ही दूर की वस्तु को स्पष्ट देख पाना।
कारण - नेत्र लेन्स की प्रत्यास्थता समाप्त होना।
उपचार - बाईफोकल लेन्स का प्रयोग करना।
बाईफोकल लेन्स - ऊपरी आधा भाग अवतल तथा निचला भाग उत्तल लेन्स।
नोट:- सरल सूक्ष्मदर्शी में एक उत्तल लेन्स, संयुक्त सूक्ष्मदर्शी एवं खगोलीय दूरबीन में एक उत्तल और एक अवतल लेन्स प्रयुक्त होता है !