वंशानुक्रम एवं वातावरण का प्रभाव [Inheritance and the influence of environment in child development]
बालक ईश्वर की सर्वोत्तम कृति है। व्यक्तित्व विकास में वंशानुक्रम तथा परिवेश दो प्रधान तत्व को जन्मजात शक्तियां प्रदान करता हैं।
बालक का विकास वंशानुक्रम तथा वातावरण की अंतः क्रिया का परिणाम है। शिशु की क्षमताएं वंशानुक्रम से और उनका विकास वातावरण से निश्चित होता है। परिवार यानी माता पिता बच्चे के व्यक्तित्व के निर्माण की प्रथम पाठशाला है। अगर माता पिता बच्चे के व्यक्तित्व निर्माण की प्रथम पाठशाला है। उसमें भी मां को भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है। अगर माता पिता अपने बालक से प्रेम करते है। अगर माता पिता अपने बालक से प्रेम करते है और उसकी अभिव्यक्ति का सम्मान करते है तो बालक में उत्तरदायित्व, सहयोग, सद्भावना आदि सामाजिक गुणों का विकास होगा और वह समाज के संगठन में सहायता देने वाला एक सफल नागरिक बन सकेगा। अगर घर में ईमानदारी व सहयोग का वातावरण है तो बालक में इन गुणों का विकास भलीभांति होगा।
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व्यक्तित्व वंशानुक्रम तथा वातावरण का गुणन फल होता है।
वंशानुक्रम तथा वातावरण के ज्ञान से व्यक्ति मानवीय मूल्यों के विकास में रुचि लेने लगता है तथा दोनों की अंतःक्रिया के माध्यम से व्यक्तित्व का मूल्यों में विकास होता है।
बालक बाह्य वातावरण से ही अभिप्रेरणा, चरित्र, क्षमताओं, रुचियों, अभिवृतियों आदि का विकास कर अपने व्यक्तित्व को प्रभावी बनाने का प्रयास करता है।
इन सब गुणों का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से उसकी अधिगम प्रक्रिया पर भी पड़ता है।
वंशानुक्रम से बालक अपने पूर्वजों के गुण का विकास भी ठीक है यदि वातावरण उचित नहीं है तो उसके गुणों का विकास भी ठीक प्रकार से नहीं ही वातावरण बालक की जन्मजात शक्तियों को निर्देशित तथा प्रोत्शाहित करता है।
वातावरण ही बालक के व्यवहार का निर्धारण कर उसमें अधिगम क्षमता का उत्तम विकास करता है।
बालक के विकास के लिए घर में माता पिता, विद्यालय में शिक्षक और समाज की हर इकाई, बालसेवी संस्थाएं एवं प्रेरक साहित्य की संयुक्त भूमिका है।
इनमें से एक की भी भूमिका विघटित होती है तो बालक का सामाजिक दृष्टि से विकास अवरूद्ध हो जाता है और व्यक्तित्व कुंठित हो जाता है।
स्किनर के अनुसार उन सीमाओं का निर्धारण करता है।
जिसके आगे बालक का विकास नहीं किया जा सकता है।
वंशानुक्रम में अर्जित विशेषताओं तथा वातावरण जन्य विशेषताओं के योग से विकास को निर्धारित किया जा सकता है।
अतः शिशु का भावी विकास उसके वंशानुक्रम और वातावरण की अंतः क्रिया पर निर्भर करता है।
अधिगम और वातावरण का एक दूसरे से निकट का संबंध है।
यदि विद्यालय अथवा परिवार का अच्छा, शांत, स्नेहपूर्ण तथा रुचिकर वातावरण है तो बच्चा अपने कार्य को शीघ्र सिख लेता है।
बच्चों का नैतिक विकास उसके पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन संबंधित है।
जन्म के समय उनका अपना कोई मूल्य, धर्म नहीं होता है, लेकिन जिस परिवार समाज में वह जन्म लेता है, वैसा ही उसका विकास होता है।
बालक की अधिगम प्रक्रिया पर उसके परिवार के वातावरण का काफी प्रभाव पड़ता है।
परिवार के सदस्यों की मध्य संबंध उनकी शिक्षा, उनकी सामाजिक व आर्थिक स्थिति, परिवार से प्राप्त स्नेह एवं सुरक्षा की भावना आदि समस्त बातें प्राप्त स्नेह एवं सुरक्षा की भावना आदि समस्त बातें बालक की अधिगम प्रक्रिया प्रभावित करती है।
परिवार का अच्छा वातावरण बालक को निरंतर आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करता रहता है।
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