सीखने में कठिनाई, 'अक्षमता' आदि वाले बच्चों की आवश्यकताओं की पहचान कैसे करे Identification Of Needs of Children With Learning Difficulties

Safalta Experts Published by: Blog Safalta Updated Sat, 11 Sep 2021 04:25 PM IST

Source: Verywell Mind

 जो बालक किसी अन्य की अपेक्षा किसी काम में पिछड़ जाये  , वे पिछड़े हुए बालक होते हैं। जबकि शिक्षा के संदर्भ में पिछड़े बालक वे होते हैं जो किसी तथ्य को बार बार समझाने के बावजूद नहीं समझते व औसत बालकों के समान प्रगति नहीं कर पाते।
पिछड़े बालकों की सीखने की गति मंद होती है तथा उन्हें सामान्य बच्चों के साथ कार्य करने में असुविधा होती है । पढ़ाई के मामले में वे अपनी उम्र के बच्चों से बहुत पिछड़े होते हैं। बर्ट के अनुसार पिछड़ा बालक वह है जो स्कूली जीवन के मध्य में अपनी आयु स्तर की कक्षा से एक सीढ़ी कम की कक्षा का कार्य करने में असमर्थ होता है। साथ ही अगर आप भी इस पात्रता परीक्षा में शामिल होने जा रहे हैं और इसमें सफल होकर शिक्षक बनने के अपने सपने को साकार करना चाहते हैं, तो आपको तुरंत इसकी बेहतर तैयारी के लिए सफलता द्वारा चलाए जा रहे CTET टीचिंग चैंपियन बैच- Join Now से जुड़ जाना चाहिए।

हॉल के अनुसार , सामान्यत: पिछड़ेपन का प्रयोग उन बालकों के लिए होता है, जिनकी शैक्षणिक उपलब्धि वास्तविक योग्यताओं के स्तर से कम हो। 

बर्टन हॉल के अनुसार  एक बालक मंद बुद्धि या पिछड़ा हुआ दोनों हो सकता है , लेकिन उसका पिछड़ा हुआ होना इसलिए आवश्यक नहीं है, क्यों कि वह मंद बुद्धि है। पिछड़ापन प्राय: दो प्रकार का होता है - एक सामान्य पिछड़ापन , जिसके अंतर्गत बालक विद्यालय के पाठ्यक्रम के सभी विषयों में पिछड़ा होना पाया जाता है। जबकि विशिष्ट पिछड़ेपन के अंतर्गत वह केवल एक या दो विषयों में पिछड़ा होता है, अन्य में उसकी स्तिथ अच्छी होती है। पिछड़ेपन  के मुख्य कारण बालक की शारीरिक और दैहिक दुर्बलता या अपाहिज होना, बौद्धिक कमजोरी होना, पारिवारिक वातावरण का अस्वस्थ होना, विद्यालय वातावरण में प्रतिकूल परिस्थिति होना, सामाजिक धार्मिक स्थानों का परिवेश ठीक नही होना आदि। इस प्रकार के बालकों का बौद्धिक स्तर उपलब्धि परीक्षाओं के प्रयोग से ज्ञात किया जाता है। इन बच्चों की शिक्षा के लिए विशेष विद्यालय या कक्षाओं की व्यवस्था की जाती है, जिसमें विशिष्ट पाठ्यक्रम या शिक्षण विधियों के लिए व्यवस्था अधिक उपयोग होती है। इन बच्चों पर व्यक्तिगत ध्यान देकर इन्हें विद्यालय से जोड़ा जा सकता हैं।
 
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शिक्षा के अधिकार अधिनियम  - 2009 में 6 से 14 वर्ष के बालक बालिकाओं की मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान किया गया है। इसे 1अप्रैल , 2010 को जम्मू कश्मीर को छोड़कर पूरे भारत में लागू कर दिया था। अधिनियम में विकलांगता वाले बच्चों सहित सभी बच्चों के लिए नि :शुल्क और अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था है। इन विकलांगताओ का विकलांग व्यक्ति ( समान अवसर , अधिकारों की रक्षा और पूर्ण भागीदारी)  अधिनियम 1995 में और स्वलीनता , मस्तिष्क पक्षाघात , मंद बुद्धि और बहु - विकलांगता वाले व्यक्तियों के कल्याण के लिए राष्टीय न्यास अधिनियम - 1999 में उल्लेख है। ये विकलांगता है - (1) अंधता (2) कम दृष्टि (3) उपचारित कुष्ठ रोग (4) बहरापन (5) लोकोलीटर विकलांगता (6) मंदबुद्धि (7) मानसिक रोग (8) स्वलीनता और (9) मस्तिष्क पक्षाघात । सर्व शिक्षा अभियान यह सुनिश्चित करता हैं कि विशेष आवश्यकता वाले प्रत्येक बच्चे को , चाहे वह किसी प्रकार की विकलांगता से प्रभावित हो , उद्देश्यपूर्ण और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जाए। इसलिए इस अभियान के अंतर्गत किसी को भी शिक्षा देने से इंकार करने का कोई प्रावधान नहीं हैं। इसका मतलब है कि विशेष अवश्यकताओं वाले किसी भी बच्चे को शिक्षा के अधिकार से वंचित नहीं रखा जाना चाहिए  और उसकी पढ़ाई ऐसे वातावरण में होनी चाहिए , जो उसकी सीखने की अवध्यकताओ के अनुरूप हो। 

समावेशी शिक्षा का उद्देश्य विकलांगता वाले सभी छात्रों प्राथमिक शिक्षा से बारहवीं तक की शिक्षा अनुकूल वातावरण में प्रदान करना है। इसमें शिक्षा प्राप्त कर रहे ऐसे बच्चे शामिल हैं, जो उपयुक्त अधिनियमों के मानदंडों के अनुसार एक या अधिक विकलांगता से प्रभावित हैं। सभी स्तर पर विकलांग बच्चों के लिए समावेशी शिक्षा की योजना के विभिन्न पहलू है - 
 (1) चिकित्सा शिक्षा संबंधी आवश्यकताओं का आकलन 
(2) छात्र की विशिष्ट आवश्यकता वाली सुविधा की व्यवस्था 
(3) शिक्षा सामग्री का विकास 
(4) सहायक सेवाएं जैसे विशेष शिक्षकों की व्यवस्था 
(5) संसाधन कक्षों का निर्माण और उपकरण और
(6) सामान्य विधालय शिक्षकों को प्रशिक्षण देना ताकि वे विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों की आवश्यकता की पूर्ति करने की क्षमता प्राप्त कर सकें 
(7) स्कूलों को अवरोधों से मुक्त रखना। प्रत्येक राज्य में मॉडल समावेशी स्कूलों की स्थापना का भी प्रावधान है। विकलांगता से ग्रस्त लड़कियों पर विशेष ध्यान दिया जाता है और उनकी सहायता की जाती है ताकि वे स्कूल में पहुंच सकें । योजना में शामिल सभी मदों के लिए शत प्रतिशत केंद्रीय सहायता दी जाती है। राज्य सरकारों / केंद्र शासित प्रदेशों के शिक्षा विभाग इस योजना को लागू करते हैं। योजना को लागू करने में वे विकलांगों की शिक्षा के क्षेत्र में अनुभवी गैर सरकारी संगठनों की सहायता भी ले सकते हैं।