न्यूटन के गति के नियम तथा महत्वपूर्ण भौतिक घटक Newton's laws of motion and important physical components

Safalta Experts Published by: Anonymous User Updated Mon, 30 Aug 2021 11:15 AM IST

Source: Physics world

                                                                                                  गति (Motion)

अदिश राशि ( Scalar quantity)
- वैसी  भौतिक राशि,जिनमे केवल परिणाम व्यक्त किया जाता है दिशा नहीं उसे अदिश राशि कहा जाता है; जैसे- द्रव्यमान,चाल,ऊर्जा,कार्य,समय आदि।

सदिश राशि(Vector quantity) - वैसी भौतिक राशि जो परिणाम के साथ साथ दिशा भी व्यक्त करती है और जो योग निश्चित नियमों के अनुसार जोड़ी जाती हैं, उन्हें सदिश राशि कहा जाता है; जैसे - वेग,विस्थापन, बल, त्वरण आदि।
  
दूरी (Distance) - किसी दिए गए समय अंतराल में वस्तु द्वारा तय किए गए मार्ग के लम्बाई को दूरी कहते हैं। यह एक अदिश राशि है।
यह सदैव धनात्मक (+ve) होती है।

विस्थापन (Displacement) - एक निश्चित दिशा में दो बिंदुओं की बीच की लंबवत दूरी को विस्थापन कहता हैं। यह एक सदिश राशि है। इसका S.I. मात्रक मीटर होता है। विस्थापन धनात्मक,ऋणात्मक, और शून्य कुछ भी हो सकता है।
चाल (Speed) - किसी वस्तु द्वारा इकाई समय में तय की गई दूरी को चाल कहते हैं।
                         अतः चाल =दूरी/समय, यह एक अदिश राशि है। इसका S.I. मात्रक मि ०/सै ० होता है।

वेग(Velocity) - वस्तु की स्थिति में किसी निश्चित दिशा में परिवर्तन का दर वेग कहलाती है। यह एक सदिश राशि है,इसका मात्रक मि/से० होती है।

त्वरण (Acceleration) - किसी वस्तु के वेग में परिवर्तन की दर को त्वरण कहते है।
यह एक सदिश राशि है,इसका मात्रक मि/(से.)२ होता है। यदि समय के साथ वस्तु का वेग घटता है तो त्वरण ऋणात्मक होता है,जिसे मंदन (Retardation) कहते है।

न्यूटन के गति के नियम

गति का पहला नियम - कोई भी वस्तु अपनी पूर्वावस्था बनाए रखना चाहती है जब तक कि उस पर कोई बाह्य बल न लगाया जाए।
  •  प्रथम नियम से स्पष्ट होता है कि बल वह भौतिक कारण है जो गति की अवस्था (विराम अथवा गति की अवस्था) को परिवर्तित करता है अथवा परिवर्तित करने की चेष्टा करता है।
  •  इस प्रकार न्यूटन के गति के प्रथम नियम से बल एवं जड़त्व की परिभाषा होती है, परन्तु बल का परिणाम प्राप्त नहीं होता है।
गति का दूसरा नियम - किसी वस्तु में उत्पन्न त्वरण लगाये गये बल के समानुपाती  और वस्तु के द्रव्यमान का व्युत्क्रानुपाती है। यदि a त्वरण,F बल,और m द्रव्यमान हो तो इस नियम से, F =m.a.
  • बल का मात्रक S.I. पद्धति में 'न्यूटन' एवं C.G.S. पद्धति में 'डाइन' है।  1 न्यूटन= 10⁵ डाइन।
संवेग (Momentum)- किसी वस्तु के वेग और द्रव्यमान के गुणनफल को संवेग कहा जाता है। और इसे 'P' द्वारा निरूपित किया जाता है,यह एक सदिश राशि है।

न्यूटन के तृतीय गति का नियम - प्रत्येक क्रिया के बराबर, परन्तु विपरीत दिशा में एक प्रतिक्रिया होती है। उदाहरण:-
  1. बंदूक से गोली चलाने पर,चलाने वालो को पीछे की तरफ धक्का लगना।
  2. नाव से किनारे पर कूदने पर नाव का पीछे की ओर है जाना।
  3. रॉकेट को उड़ाने में।
 संवेग संरक्षण के सिद्धांत
  • संवेग संरक्षण के नियमानुसार,एक या एक से अधिक वस्तुओ के निकाय का संवेग तब तक अपरिवर्तित रहता है, जब तक कोई वस्तु या वस्तुओ के निकाय पर कोई बाह्य बल आरोपित न हो।
  • जब कोई बंदूक से गोली छोड़ी जाती है तो यह अत्याधिक वेग से आगे की ओर बढ़ती है, जिससे गोली में आगे की दिशा में संवेग उत्पन्न हो जाता जाता है। गोली भी बंदूक को प्रतिक्रिया बल के कारण पीछे की ओर धकेलती है। चुकी बंदूक का द्रव्यमान गोली से अधिक होता है, अतः बंदूक के पीछे हटने का वेग गोली के वेग से बहुत कम होता है।
  • रॉकेट के ऊपर जाने का सिद्धांत भी संवेग संरक्षण के सिद्धांत पर आधारित होता है।
कोणीय संवेग(Angular momentum) - घूर्णन गति करते हुए किसी पिण्ड के कोणीय वेग तथा जड़त्व आघूर्ण के गुणनफल को पिण्ड का कोणीय संवेग कहा जाता है। यदि घूर्णन करते पिण्ड का कोणीय वेग w हो तथा जड़त्व आघूर्ण 'I'  हो तो।
कोणीय संवेग =I.w= कोणीय वेग × जड़त्व आघूर्ण !


आवेग(Impulse) - बल एवं उनके कार्य करने के समय के गुणनफल को आवेग कहते हैं। आवेग = F.t., यह एक सदिश राशि है और इसका मान संवेग परिवर्तन के बराबर होता है।
उदाहरण :- कैच लेते समय क्रिकेट खिलाड़ी को अपना हाथ पीछे की तरफ खींचना।

गति का तीसरा नियम-  प्रत्येक क्रिया के बराबर एक विपरीत प्रतिक्रिया होती है!

घर्षण(friction)- जब कोई वस्तु किसी सतह पर सरकती या लुढ़कती है या चलने की चेष्टा करती है,तब स्पर्श के सतहों के बीच घर्षण बल उत्पन्न हो जाता है, जो गति के विपरीत दिशा में कार्य करता है।

गुरुत्वाकर्षण (Gravitation)- जिस बल के कारण दो वस्तुएं एक दूसरे को आकर्षित करती हैं,उसे गुरुत्वाकर्षण बल कहते हैं। किसी वस्तु पर पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल उस वस्तु पर पृथ्वी का गुरुत्व बल (force of gravity) कहा जाता है।

गुरुत्वीय त्वरण(Acceleration due to gravity)-
  • त्वरण गिरती हुई वस्तु के द्रव्यमान पर निर्भर नही करता है। यह पृथ्वी के द्रव्यमान और केंद्र से दूरी पर निर्भर करता है।
  • गुरूत्वीय त्वरण मुक्त रूप से पृथ्वी की ओर गिरती हुई किसी वस्तु के वेग में प्रति सेकंड में होने वाली वृद्धि को प्रदर्शित करता है।
  • गुरूत्वीय त्वरण का मान पृथ्वी के भिन्न भिन्न स्थानों पर भिन्न भिन्न होता है। भूमध्य रेखा पर इसका मान सबसे कम और ध्रुवों पर सबसे कम होता है।

भार (Weight)- जिस बल द्वारा पृथ्वी किसी वस्तु को अपनी तरफ खींचती है,उस बल को वस्तु का भार कहते हैं। इसे प्रायः ' W' से निरूपित किया जाता है। भार का S.I. पद्धति में मात्रक न्यूटन है। भार एक सदिश राशि है।

प्रत्यास्थता(Elasticity)- पदार्थ का वह गुण जिसके कारण किसी वस्तु पर से किसी विरूपक बल को हटा लेने के बाद वह अपनी पूर्वावस्था में आ जाती है या आने की चेष्टा करती है, 'प्रत्यास्थता' कहलाता है।

प्रतिबल( Stress)- प्रति इकाई अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल पर कार्यकारी आंतरिक प्रतिक्रिया बल प्रतिबल कहलाता है!
  प्रतिबल = बल/क्षेत्रफल,
  इकाई = डाइन/cm², न्यूटन/cm².
 
प्रत्यास्तथा सीमा(Elasticity' limit)- वह सीमा जिसको पार कर लेने के बाद वस्तु प्रत्यास्तथा से प्लास्टिक हो जाती है अर्थात् प्रत्यास्तथा का गुण त्याग देती है, प्रत्यास्तथा सीमा कहलाती है।
हुक का नियम- प्रत्यास्तथा सीमा के अंदर प्रतिबल सदैव विकृति के समानुपाती होता है, अर्थात्
प्रतिबल = E× विकृति, जहां E प्रत्यास्तथा  गुणांक है।
   E= प्रतिबल/ विकृति= प्रत्यास्तथा गुणांक।।
अतः प्रत्यास्तथा गुणांक का विमा व मात्रक वही होता है जो प्रतिबल के होता हैं।
  नोट:- वे ही पदार्थ अधिक प्रत्यास्तथ कहलाते है जो अपनी पूर्वावस्था में आने में अधिक समय लगाते है, जैसे:- इस्पात,रबर से अधिक प्रत्यास्तथ है।
 
पृष्ठ तनाव(Surface tension)- वह गुण जिसके कारण द्रव अपने मुक्त पृष्ठ का मान न्यूनतम बनाने की चेष्टा करता है,पृष्ठ तनाव कहलाता है। इसकी माप द्रव तल के कल्पित रेखा की प्रति इकाई लम्बाई पर लगता बल है,इसे प्रति वर्ग पृष्ठ ऊर्जा भी कहते हैं। इसका मात्रक (डाइन/सेमी, जू०/मि², न्यू०/मि०) होता है।
उदाहरण:- पानी की बूंद का गोला होना।
पृष्ठ तनाव(Surface tension)-
  1. पतली सुई पृष्ठ तनाव के कारण ही पानी पर तैराई जा सकती है।
  2. साबुन,डिटर्जेंट आदि जल का पृष्ठ तनाव कम कर देते हैं,अतः वे मेल के गहराई में चले जाते है जिससे कपड़ा ज्यादा साफ होता है।
  3. पानी पर मच्छरों का लारवा तैरते हैं, परन्तु पानी में मिट्टी का तेल छिड़क देने पर उसका पृष्ठ तनाव कम हो जाता हैं,जिससे लारवा डूबकर मर जाते हैं।

केशनली (Capillary tube)- एक ऐसी खोखली नली,जिसकी त्रिज्या बहुत कम तथा एक समान होती है, केशनली कहलाती है।

केशिकात्व(capillarity)- सामान्यतः जो द्रव काच को भिगोता है, वह केशनाली में ऊपर चढ़ जाता है और जो द्रव कांच को नही भिगोता है वह नीचे दब जाता हैं।
जैसे:-  केशनली को पानी में डुबोया जाता है,  तो पानी ऊपर चढ़ जाता है और पानी की सतह केशनली के भीतर धसी हुई रहती है। इसके विपरीत जब केशनली को पारे में डुबोया जाता है,तो पारा केशनली में बर्तन में रखे पारे के सतह से नीचे ही रहता है और केशनली में, पारे की सतह उभरी हुई रहती है।
उदाहरण:- (i). ब्लाटिंग पेपर - स्याही को शीघ्र सोख लेता है,क्योंकि इसमें बने छोटे छोटे छिद्र केशनली की तरह कार्य करते है।
(ii). लैंप ले बत्ती में केशिकात्व के कारण ही तेल ऊपर चढ़ता है।