गुप्त वंश की स्थापना श्रीगुप्त ने की थी, जो संभवत: वैश्य जाति वंश के थे। वह या तो मगध (बिहार) के रहने वाला था। उसका बेटा घटोत्कच, जिसने महाराजा की उपाधि धारण की थी।
गुप्त वंश के बाद
गुप्त वंश का पतन 550 ईसवी में हुआ था।
गुप्त वंश के पतन के बाद कुछ समय तक बड़े पैमाने पर लोगों का एक जगह से दूसरी जगह विस्थापन हुआ।
गुप्त वंश की विरासत के लिए छोटे-छोटे राज्य आपस में झगड़ने लगे थे। उत्तर भारत चार राज्यों में विभाजित हो गया था, मगध, मौखरी, पुश-अभूति और मैत्रकासी। गुप्त वंश के पतन के बाद राजनीतिक तस्वीर हतोत्साहित करने वाली बन गई थी।
इन चार राज्यों मैं आने वाली कई छोटी-छोटी रियासतें आपस में लगातार लड़ रही थीं। हुनिनवेशन के आते ही सभी राज्य प्रमुखता से एक साथ आ गए जिसके कारण उत्तरी भारत में एक राजनीतिक केंद्र आ गया था। कई शिल्प कला से पता चलता है कि कई राजाओं ने गुप्त वंश की संपत्तियों पर अपना अधिकार जताया था।
शाही वंश के अंतिम महान सम्राट बालादित्य गुप्त द्वारा उत्तर भारत के शासकों पर हमला किया और 528 ईस्वी की लड़ाई में हुन राजवंश को उखाड़ फेंका।
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