Simon Commission, Report & Recommendations: जानिए साइमन कमीशन के बारे में

Safalta Experts Published by: Nikesh Kumar Updated Thu, 03 Mar 2022 11:34 AM IST

Source: Safalta

‘’साइमन कमीशन को आधिकारिक तौर पर 'भारतीय सांविधिक कमीशन' के रूप में जाना जाता है. इस आयोग का गठन सर जॉन साइमन के नेतृत्व में भारत में संवैधानिक व्यवस्था के कामकाज को देखने और बदलाव का सुझाव देने के उद्देश्य से किया गया था. इस आयोग में चार कंजर्वेटिव, दो लेबोराइट्स और ब्रिटिश संसद के एक लिबरल सदस्य शामिल थे.’’ ब्रिटिश सरकार ने सन 1919 में गवर्मेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट (भारत सरकार अधिनियम) के कामकाज की जांच करने और प्रशासन प्रणाली में सुधारों का सुझाव देने के लिए एक आयोग को नियुक्त किया था. सर जॉन साइमन के नाम पर इस आयोग को ‘’साइमन कमीशन’’ के नाम से जाना जाता है. इस आयोग की नियुक्ति से भारतीय जनता को एक गहरा धक्का लगा. क्योंकि इस आयोग के सभी सदस्य अंग्रेज थे और इसमें एक भी भारतीय व्यक्ति को शामिल नहीं किया गया था. और सरकार ने स्वराज की मांग को स्वीकार करने की न हीं कोई इच्छा नहीं दिखाई. इस आयोग की स्थापना ने भारतीय लोगों के मन में बसे डर की पुष्टि कर दी थी. इसलिए तब इस आयोग की नियुक्ति से पूरे देश में विरोध की एक बड़ी लहर दौड़ गई थी. यदि आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और विशेषज्ञ मार्गदर्शन की तलाश कर रहे हैं, तो आप हमारे जनरल अवेयरनेस ई बुक डाउनलोड कर सकते हैं  FREE GK EBook- Download Now.
Weekly Current Affairs Magazine Free PDF: डाउनलोड करे 

साइमन गो बैक-

सन 1927 में मद्रास में जब कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन हुआ तब उस अधिवेशन में आयोग का बहिष्कार करने का निर्णय लिया गया. मुस्लिम लीग ने भी आयोग का बहिष्कार करने का निर्णय लिया. यह आयोग 3 फरवरी 1928 को भारत आया था. साइमन कमीशन के विरोध में उस दिन भारत के लोगों ने देशव्यापी हड़ताल की थी. उस दिन दोपहर में, आयोग की नियुक्ति की निंदा करने और यह घोषणा करने के लिए कि भारत के लोगों का इससे कोई लेना-देना नहीं होगा, पूरे देश में बैठकें हुईं. मद्रास में प्रदर्शनकारियों पर फायरिंग हुई और कई जगहों पर लाठीचार्ज भी किया गया.

आयोग जहां भी गया, उसे बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों और हड़तालों का सामना करना पड़ा. केंद्रीय विधान सभा ने बहुमत से निर्णय लिया कि इसका आयोग से कोई लेना-देना नहीं होगा. पूरे देश में 'साइमन गो बैक' का शोर मच गया. जिसके बाद पुलिस ने दमनकारी कदम उठाए और हजारों लोगों को पीटा गया. इन प्रदर्शनों के दौरान हीं शेर-ए-पंजाब के नाम से मशहूर महान नेता लाला लाजपत राय पर पुलिस ने गंभीर हमला कर दिया. ब्रिटिश पुलिस द्वारा लगी गम्भीर चोटों की वजह से उसकी मौत हो गई थी. इधर लखनऊ में, नेहरू और गोविंद बल्लभ पंत को भी पुलिस की लाठियों का सामना करना पड़ा. ब्रिटिश पुलिस की लाठियों से लगी चोटों के कारण गोविंद बल्लभ पंत जीवन भर के लिए अपंग हो गए.

सभी सरकारी परीक्षाओं के लिए हिस्ट्री ई बुक- Download Now

साइमन कमीशन के खिलाफ आंदोलन में भारतीय जनता ने एक बार फिर से अपनी स्वतंत्रता के लिए एकता और दृढ़ संकल्प का प्रदर्शन किया. उन्होंने अब खुद को एक बड़े संघर्ष के लिए तैयार कर लिया था. मद्रास में कांग्रेस के अधिवेशन में, जिसकी अध्यक्षता डॉ. एम.ए. अंसारी ने की थी, ने एक प्रस्ताव पारित किया था जिसमें पूर्ण स्वतंत्रता की प्राप्ति को भारतीय लोगों का लक्ष्य घोषित किया गया. यह प्रस्ताव नेहरू द्वारा पेश किया गया था और एस सत्यमूर्ति द्वारा समर्थित किया गया था. इस बीच पूर्ण स्वतंत्रता की मांग को बढ़ाने  के लिए इंडियन इंडिपेंडेंस लीग नामक एक संगठन का गठन किया गया. लीग का नेतृत्व जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, श्रीनिवास अयंगर, सत्यमूर्ति और सुभाष चंद्र बोस के बड़े भाई शरत चंद्र बोस जैसे कई महत्वपूर्ण नेताओं ने किया था. दिसंबर 1928 में, मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में कलकत्ता में कांग्रेस की बैठक हुई. इस अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस और कई अन्य लोगों ने कांग्रेस पर पूर्ण स्वतंत्रता की मांग करने के लिए दबाव डाला. हालाँकि, कांग्रेस ने डोमिनियन स्टेटस की मांग करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया. पर इसका मतलब पूर्ण स्वतंत्रता से कम था. लेकिन तब यह घोषित किया गया था कि यदि एक वर्ष के भीतर डोमिनियन का दर्जा नहीं दिया गया, तो कांग्रेस पूर्ण स्वतंत्रता की मांग करेगी और इसे प्राप्त करने के लिए एक जन आंदोलन शुरू करेगी. इंडियन इंडिपेंडेंस लीग ने सन 1929 में पूर्ण स्वतंत्रता की मांग के लिए लोगों का रैली करना जारी रखा. कांग्रेस के अगले वार्षिक सत्र के समय तक पूरे देश में लोगों का मूड बदल गया था.

साइमन कमीशन की सिफारिशें-
  • प्रोविंशियल द्वैध शासन को समाप्त किया जाना चाहिए और प्रांतीय विधायिकाओं के लिए मंत्रियों की जिम्मेदारियों को बढ़ाया जाना चाहिए.
  • प्रांत की सुरक्षा और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए विशेष शक्ति राज्यपाल की शक्तियों के अंतर्गत आती है.
  • संघीय विधानसभा (केंद्र में) में जनसंख्या के आधार पर प्रांतों और अन्य क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व.
  • बर्मा के लिए अनुशंसित डोमिनियन स्टेटस और उसे अपना खुद का संविधान प्रदान किया जाना चाहिए.
  • अनुशंसित राज्य परिषद का प्रतिनिधित्व प्रत्यक्ष चुनाव के आधार पर नहीं बल्कि प्रांतीय परिषद के माध्यम से अप्रत्यक्ष चुनाव द्वारा चुना जाना चाहिए जो कमोबेश आधुनिक समय की चुनाव प्रक्रिया की तरह आनुपातिक प्रतिनिधित्व के रूप में है.
Polity E Book For All Exams Hindi Edition- Download Now

निष्कर्ष-
साइमन कमीशन का गठन सर जॉन साइमन के नेतृत्व में भारत में संवैधानिक व्यवस्था के कामकाज को देखने और बदलाव का सुझाव देने के लिए किया गया था. आयोग में एक भी भारतीय सदस्य नहीं था. इसलिए, इसके आगमन पर इसका स्वागत 'साइमन वापस जाओ' के नारे के साथ किया गया. विरोध को दूर करने के लिए, वायसराय, लॉर्ड इरविन ने अक्टूबर 1929 में भारत के लिए 'डोमिनियन स्टेटस' की पेशकश की और भविष्य के संविधान पर चर्चा करने के लिए एक गोलमेज सम्मेलन की घोषणा की. आयोग की रिपोर्ट 1930 में प्रकाशित हुई थी. प्रकाशन से पहले, सरकार ने आश्वासन दिया था कि अब से, भारतीय राय पर विचार किया जाएगा और संवैधानिक सुधारों का स्वाभाविक परिणाम भारत के लिए डोमिनियन का स्टेटस होगा. साइमन कमीशन ने भारत सरकार अधिनियम 1935 का नेतृत्व किया जिसने वर्तमान भारतीय संविधान के कई हिस्सों के आधार के रूप में कार्य किया.

पहला प्रांतीय चुनाव 1937 में हुआ था और इसने लगभग सभी प्रांतों में कांग्रेस की सरकारें स्थापित कीं. आयोग के आगमन ने नेताओं और जनता को प्रेरित करके भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को एक गति दे दी.
बाबरी मस्जिद की समयरेखा- बनने से लेकर विध्वंस तक, राम जन्मभूमि के बारे में सब कुछ
जाने क्या था खिलाफ़त आन्दोलन – कारण और परिणाम
2021 का ग्रेट रेसिग्नेशन क्या है और ऐसा क्यों हुआ, कारण और परिणाम
जानिए मराठा प्रशासन के बारे में पूरी जानकारी
क्या आप जानते हैं 1857 के विद्रोह विद्रोह की शुरुआत कैसे हुई थी
भारत में पुर्तगाली शक्ति का उदय और उनके विनाश का कारण
मुस्लिम लीग की स्थापना के पीछे का इतिहास एवं इसके उदेश्य
भारत में डचों के उदय का इतिहास और उनके पतन के मुख्य कारण

साइमन कमीशन क्या है?

‘’साइमन कमीशन को आधिकारिक तौर पर 'भारतीय सांविधिक कमीशन' के रूप में जाना जाता है. इस आयोग का गठन सर जॉन साइमन के नेतृत्व में भारत में संवैधानिक व्यवस्था के कामकाज को देखने और बदलाव का सुझाव देने के उद्देश्य से किया गया था.

साइमन कमीशन को साइमन कमीशन के नाम से क्यों जाना जाता है?

सर जॉन साइमन के नाम पर इस आयोग को ‘’साइमन कमीशन’’ के नाम से जाना जाता है.