- राष्ट्रीय आपातकाल
- राष्ट्रपति शासन
- वित्तीय आपातकाल
April Month Current Affairs Magazine- DOWNLOAD NOW
राष्ट्रीय आपातकाल (National Emergency)
राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा मुख्यतः युद्ध की परिस्थिति में, बाहरी आक्रमण होने की संभावना पर और सशस्त्र विद्रोह होने की स्थिति में की जाती है. जब युद्ध की परिस्थिति में या बाहरी आक्रमण होने की संभावना के कारण राष्ट्रीय आपातकाल लगाया जाता है तब उसे बाह्य आपातकाल कहते हैं. और जब सशस्त्र विद्रोह होने की स्थिति में राष्ट्रीय आपातकाल लगाया जाता है तब उसे आतंरिक आपातकाल कहते हैं. आपातकाल की उद्घोषणा राष्ट्रपति द्वारा की जाती है. हालांकि राष्ट्रपति कैबिनेट द्वारा प्राप्त लिखित अनुशंसा मिलने पर हीं राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं. जिस तिथि से आपातकाल लगाने की घोषणा की गयी हो उसके 1 महीने के अन्दर इस घोषणा को संसद के दोनों सदनों द्वारा स्वीकृति प्रदान करना अनिवार्य है. अगर दोनों सदनों की स्वीकृति मिल जाती है तो 6 महीने के लिए आपातकाल लग जाता है. इसकी अवधि और बढ़ानी हो तो हर 6 महीने में संसद की स्वीकृति लेकर यह अवधि अनिश्चितकाल तक बढ़ाई जा सकती है.
सभी सरकारी परीक्षाओं के लिए हिस्ट्री ई बुक- Download Now
राष्ट्रीय आपातकाल की अब तक की गयी घोषनाएं
आज तक के इतिहास में तीन बार राष्ट्रीय आपातकाल लगाया गया है.
- 1962 में
- 1971 में
- 1975 में
2. 1971 का राष्ट्रीय आपातकाल - वर्ष 1971 का राष्ट्रीय आपातकाल भारत पर पाकिस्तान द्वारा हमले करने के बाद लगाया गया था.
3. 1975 का राष्ट्रीय आपातकाल – वर्ष 1975 का राष्ट्रीय आपातकाल जिस समय लगाया गया उस समय 1971 का राष्ट्रीय आपातकाल प्रभाव में हीं था. 1975 का आपातकाल आतंरिक अशांति के आधार पर लगाया गया था. इस आपातकाल की उद्घोषणा करने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने राष्ट्रपति से अनुशंसा की थी. आपातकाल की उद्घोषणा करने के बाद संसद को इससे अवगत कराया गया था. उस समय संविधान में भी एक संशोधन किया गया था जिससे आपातकाल लगाने से पहले संसद की मंजूरी लेना अनिवार्य नहीं होने का प्रावधान कर दिया गया था. दूसरे और तीसरे आपातकाल की उद्घोषणा की समाप्ति एक साथ मार्च 1977 में की गयी थी.
अनुच्छेद 358 और 359
- संविधान की अनुच्छेद संख्या 358 और 359 में राष्ट्रीय आपातकाल लगने के कारण मौलिक अधिकारों पर क्या प्रभाव पड़ेगा इस बात को परिभाषित किया गया है.
- अनुच्छेद 358 अनुच्छेद 19 में वर्णित छः मौलिक अधिकारों के निलंबन से सम्बंधित है. और अनुच्छेद 359 बाकि मौलिक अधिकारों (अनुच्छेद 20 और 21 को छोड़कर) के निलंबन से सम्बंधित है.
अनुच्छेद 19 में वर्णित मौलिक अधिकारों का निलंबन
अनुच्छेद 358 के अनुसार जैसे हीं देश में राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की जाती है वैसे हीं अनुच्छेद 19 में वर्णित मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए जाते हैं. इसके निलंबन के लिए अलग से किसी भी प्रकार के आदेश की आवश्यकता नहीं होती. जब आपात काल की उद्घोषणा हो गयी हो तो राज्य अनुच्छेद 19 द्वारा लगाये गए प्रतिबंधों से मुक्त हो जाता है. इसका मतलब यह है कि जिस समय आपात काल लगा हुआ हो उस समय राज्य कोई भी ऐसा कानून बना सकता है जिसके द्वारा अनुच्छेद 19 में वर्णित भारत के नागरिकों के छः मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा हो. और इस समय कोई भी भारतीय नागरिक इस कानून को इस आधार पर चुनौती नहीं दे सकता कि उस कानून के द्वारा अनुच्छेद 19 में वर्णित मौलिक अधिकार का हनन हो रहा है. जैसे हीं आपातकाल समाप्त होता है अनुच्छेद 19 स्वतः लागू हो जाता है.
अन्य मौलिक अधिकारों (अनुच्छेद 20 और 21 को छोड़कर) का निलंबन
अनुच्छेद 359 राष्ट्रपति को यह अधिकार देता है कि वो चाहें तो अनुच्छेद 20 और 21 को छोड़कर बाकि सभी या किसी भी मौलिक अधिकार की प्रभावशीलता को ख़तम कर सकते हैं. इसका मतलब यह है कि अनुच्छेद 359 के अंतर्गत मौलिक अधिकारों का निलंबन नहीं होता बल्कि सिर्फ उनकी प्रभावशीलता ख़तम की जाती है. सैद्धांतिक रूप से यह मौलिक अधिकार जीवंत रहते हैं लेकिन उनके आधार पर न्यायिक उपाय तलाश पाने का अधिकार निलंबित रहता है.
यह निलंबन तब तक प्रभावशाली रहता है जब तक कि आपातकाल लगा रहे या फ़िर यह उससे कम समय की अवधि के लिए भी लागू रह सकता है. यह पूर्णतः राष्ट्रपति की इच्छा पर निर्भर करता है कि वह कितने समय के लिए इन मौलिक अधिकारों के प्रभाव को समाप्त करना चाहते हैं.
पढ़िए दुनिया के सबसे ताकतवर राजनेता व्लादिमीर पुतिन की बायोग्राफी
अनुच्छेद 20 – अपराधों के लिए दोषसिद्धि में संरक्षण और अनुच्छेद 21 – जीवन और व्यक्तिगत स्वंत्रता का अधिकार की प्रभावशीलता को अनुच्छेद 359 द्वारा निलंबित नहीं किया जा सकता है. यह दोनों मौलिक अधिकार आपातकाल की उद्घोषणा के दौरान भी प्रवर्तनीय बने रहते हैं.
अनुच्छेद 358 और 359 के बीच का अंतर
| क्रम संख्या | अनुच्छेद 358 | अनुच्छेद 359 |
| 1 | राष्ट्रीय आपातकाल लगने के साथ अनुच्छेद 358 स्वतः लागू हो जाता है. | राष्ट्रीय आपातकाल लगने के साथ स्वतः लागू नहीं होता. राष्ट्रपति की इच्छा पर निर्भर करता है. |
| 2 | अनुच्छेद 19 में वर्णित छः मौलिक अधिकारों को निलंबित कर देता है. | मौलिक अधिकार का निलंबन नहीं करता, सिर्फ प्रभावशीलता ख़तम करता है. |
| 3 | सिर्फ बाह्य आपातकाल के दौरान लागू किया जा सकता है. | बाह्य और आतंरिक दोनों आपातकाल के दौरान लागू किया जा सकता है. |
| 4 | यह पूरे देश में लागू होता है. | पूरे देश में या देश के किसी एक भाग में लागू किया जा सकता है. |
| 5 | अनुच्छेद 19 को पूर्णतः निलंबित कर देता है. | अनुच्छेद 20 और 21 को निलंबित नहीं करता. |
| 6 | आपातकाल की सम्पूर्ण अवधि के दौरान लागू रहता है. | यह आपातकाल की सम्पूर्ण अवधि के दौरान लागू रह सकता है अथवा उससे कम समयावधि के लिए भी लागू रह सकता है. |
| 7 | आपातकाल ख़तम होते हीं स्वतः यह निलंबन ख़तम हो जाता है. | राष्ट्रपति के ऊपर निर्भर करता है कि यह प्रभावशीलता का निलंबन वह कब ख़तम करते हैं. |
जाने क्या था खिलाफ़त आन्दोलन – कारण और परिणाम
2021 का ग्रेट रेसिग्नेशन क्या है और ऐसा क्यों हुआ, कारण और परिणाम
जानिए मराठा प्रशासन के बारे में पूरी जानकारी
क्या आप जानते हैं 1857 के विद्रोह विद्रोह की शुरुआत कैसे हुई थी
भारत में पुर्तगाली शक्ति का उदय और उनके विनाश का कारण
मुस्लिम लीग की स्थापना के पीछे का इतिहास एवं इसके उदेश्य
भारत में डचों के उदय का इतिहास और उनके पतन के मुख्य कारण
आपातकाल से सम्बंधित प्रावधान संविधान के किस भाग और अनुच्छेद में वर्णित हैं ?
राष्ट्रीय आपातकाल से सम्बंधित प्रावधान का वर्णन किस अनुच्छेद में किया गया है ? आज तक के इतिहास में भारत में कितनी बार राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा की गयी है ?
- 1962 में
- 1971 में
- 1975 में