| March Month Current Affairs Magazine- DOWNLOAD NOW |
दरअसल रानी सुभद्रांगी उर्फ धर्म एक ब्राह्मण कन्या थी. वह किसी राज्य की राजकुमारी नहीं थी. राजघराने की नहीं होने के कारण सुभद्रांगी उर्फ धर्म को निम्न कोटि की रानी समझा जाता था. और उसका पुत्र होने के कारण अशोक को सम्राट बिन्दुसार उत्तराधिकारी के रूप में नहीं देखते थे. इसके अलावा अशोक बिन्दुसार के ज्येष्ठ पुत्र भी नहीं थे. देखा जाए तो वास्तव में अशोक राजमहल के सबसे उपेक्षित व्यक्ति थे. उनके पिता ने कभी भी न तो उन्हें प्यार दिया और न हीं उन पर ध्यान दिया. जबकि अशोक अपने सभी भाईयों में सबसे मजबूत, बहादुर और साहसी थे. एक बार तो वह एक शेर से नंगे हाथों लड़ गए थे. इसके अलावा, उनकी व्यवहार कुशलता और रवैया बड़े राजकुमार सुशीम जो संभावित राजा थे से काफी बेहतर था. राजकुमार सुशीम, बिंदुसार की पटरानी (मुख्य पत्नी) चारुमती जो एक शाही परिवार से थी, के सबसे बड़े बेटे थे. कहते हैं कि एक बार एक पुजारी ने भविष्यवाणी की थी कि रानी सुभद्रांगी उर्फ धर्म का बेटा एक महान राजा बनेगा. धर्म के 2 पुत्र हुए - अशोक और वितशोक
अशोक से सम्राट अशोक तक
हुआ यूँ कि जब सम्राट बिंदुसार अपनी अंतिम सांस ले रहे थे तो मंत्रियों ने अशोक को अस्थायी राजा बनवाना चाहा. पर सम्राट ने इनकार कर दिया. तब अशोक ने सम्राट बनने की कसम खा ली थी. उन्हें यह विश्वास था कि प्रकृति खुद उन्हें एक दिन सम्राट बनाएगी. और वही हुआ मंत्रियों के साथ-साथ प्रजा ने भी सुशीम को नकार कर अशोक का साथ दिया. 272 ईसा पूर्व में बिंदुसार की मृत्यु के बाद उत्तराधिकार के लिए हुए युद्ध में, अशोक अपने पिता के मंत्रियों की सहायता से विजयी हुए.
Free Daily Current Affair Quiz-Attempt Now
Hindi Vyakaran E-Book-Download Now
Polity E-Book-Download Now
Sports E-book-Download Now
Science E-book-Download Now
जब अशोक राजा बने, तो उसे दुष्ट, निर्दयी और अत्यंत क्रूर राजा कहा गया. उसने अपने कैदियों को मौत के घाट उतारने के लिए एक यातना कक्ष भी बनवाया था. इसलिए उन्हें मोनिकर चंदाशोक (क्रूर अशोक) कहा गया.एक प्रशासक के रूप में सम्राट अशोक ने महान कौशल दिखाए. राजा बनने के बाद उसने अपने साम्राज्य का विस्तार करना शुरू कर दिया. सम्राट अशोक के अन्य नाम देवनम्पिया (संस्कृत देवनमप्रिय जिसका अर्थ है देवताओं का प्रिय) और पियादसी भी थे.
अपने चरम पर, अशोक का साम्राज्य पश्चिम में अफगानिस्तान से लेकर पूर्व में बांग्लादेश तक फैला हुआ था. सम्राट अशोक का राज्य वर्तमान केरल, तमिलनाडु और आधुनिक श्रीलंका को छोड़कर लगभग पूरे भारतीय उपमहाद्वीप तक फैला हुआ था. अशोक ने वर्तमान नेपाल और पाकिस्तान सहित पूरे भारत में अनेकों शिलालेख बनवाए थे. उनकी राजधानी पाटलिपुत्र (पटना) में थी और तक्षशिला तथा उज्जैन उनकी प्रांतीय राजधानियाँ थीं. अपने शासनकाल के नौवें वर्ष में, अशोक ने कलिंग (वर्तमान ओडिशा में) के साथ युद्ध किया. और यहीं से उनकी सोच में परिवर्तन की शुरुआत हुई.
List of Governors of Indian States and UT
बौद्ध धर्म में परिवर्तन
265 ईसा पूर्व में कलिंग के साथ लड़े गए युद्ध का नेतृत्व व्यक्तिगत रूप से अशोक ने स्वयं किया था. इस भयंकर युद्ध में कलिंग के सारे शहर पूरी तरह से नष्ट हो गए तथा एक लाख से अधिक लोग मारे गए. इस युद्ध की भयावहता ने सम्राट अशोक को इस कदर परेशान कर दिया कि उन्होंने जीवन भर हिंसा से दूर रहने का निर्णय ले लिया और बौद्ध धर्म की ओर चल पड़े.
अशोक के 13वें शिलालेख में कलिंग युद्ध का विशद वर्णन किया गया है. युद्ध से संन्यास लेकर सम्राट अशोक अब चंदाशोक से धर्मशोक (पवित्र अशोक) बन चुके थे. लगभग 263 ईसा पूर्व में अशोक ने बौद्ध धर्म को पूरी तरह से अपना लिया. उनके गुरु मोग्ग्लिपुत्त तिस्स नामक एक बौद्ध भिक्षु थे. सम्राट अशोक ने 250 ईसा पूर्व पाटलिपुत्र में तीसरी बौद्ध संगीति का संचालन भी मोग्ग्लिपुत्त तिस्स की अध्यक्षता में किया था.
अशोक का धम्म (या संस्कृत में धर्म)-
- अशोक ने पितृ राजत्व के विचार की स्थापना की.
- सम्राट अशोक अपनी पूरी प्रजा को अपनी संतान मानते थे और प्रजा के कल्याण तथा देखभाल करना अपना दायित्व समझते थे.
- सम्राट अशोक ने कहा कि प्रत्येक मनुष्य को अपने माता-पिता की सेवा करनी चाहिए, शिक्षकों का सम्मान करना चाहिए और अहिंसा एवं सच्चाई का पालन करना चाहिए.
- उन्होंने सभी मनुष्य से पशु वध और बलि से बचने के लिए कहा.
- उन्होंने जानवरों, नौकरों और कैदियों के साथ मानवीय व्यवहार न करने की बात कही.
- उन्होंने सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता की वकालत की.
- उन्होंने धम्म के माध्यम से विजय की मांग की न कि युद्ध से.
- उन्होंने बुद्ध के उपदेशों को फैलाने के लिए विदेश में मिशन भेजे. विशेष रूप से, उन्होंने अपने बेटे महिंदा और बेटी संघमित्रा को श्रीलंका भेजा.
- उनके अधिकांश शिलालेख पाली और प्राकृत भाषा में ब्राह्मी लिपि में लिखे गए हैं.
- कुछ शिलालेख खरोष्ठी और एरामिक लिपियों में भी लिखे गए हैं.
- कुछ शिलालेख ग्रीक में भी लिखे गए हैं. उनके शिलालेखों की भाषा, स्तंभ के स्थान (लोकेशन) पर निर्भर करती है.
जेम्स प्रिंसेप, जो एक ब्रिटिश पुरातन और औपनिवेशिक प्रशासक थे, अशोक के शिलालेखों को समझने वाले पहले व्यक्ति थे. अशोक के बारे में अधिकांश जानकारी अशोकवदन (संस्कृत) जो दूसरी शताब्दी में लिखा गया तथा दीपवंश और महावंश (श्रीलंकाई पाली इतिहास) से मिलती है.
जाने क्या था खिलाफ़त आन्दोलन – कारण और परिणाम
2021 का ग्रेट रेसिग्नेशन क्या है और ऐसा क्यों हुआ, कारण और परिणाम
जानिए मराठा प्रशासन के बारे में पूरी जानकारी
क्या आप जानते हैं 1857 के विद्रोह विद्रोह की शुरुआत कैसे हुई थी
भारत में पुर्तगाली शक्ति का उदय और उनके विनाश का कारण
मुस्लिम लीग की स्थापना के पीछे का इतिहास एवं इसके उदेश्य
भारत में डचों के उदय का इतिहास और उनके पतन के मुख्य कारण